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    अटूट आस्था का केंद्र है पिथौरागढ़ के अस्कोट का मल्लिकार्जुन मन्दिर

    गोविद भंडारी अस्कोट सीमांत जिले के ऐतिहासिक क्षेत्र अस्कोट के अंगलेख चोटी पर स्थित श्री मल्लिकार्जुन मन्दिर लोगों की अपार श्रद्धा का केंद्र है।

    By JagranEdited By: Updated: Mon, 28 Feb 2022 05:43 PM (IST)
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    अटूट आस्था का केंद्र है पिथौरागढ़ के अस्कोट का मल्लिकार्जुन मन्दिर

    गोविद भंडारी, अस्कोट : सीमांत जिले के ऐतिहासिक क्षेत्र अस्कोट के अंगलेख चोटी पर स्थित श्री मल्लिकार्जुन महादेव मंदिर श्रद्धालुओं की अटूट आस्था का केंद्र है। यहां स्थित स्वयं-प्रस्फुटित शिवलिग भगवान शिव के द्वादश ज्योतिर्लिंगों में से एक श्री मल्लिकार्जुन का ही अंश माना जाता है।

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    19वीं शताब्दी की शुरुआत में अस्कोट रियासत पर राजा महेन्द्र पाल द्वितीय (1807-1828) का शासन था। बताते हैं उनके शासनकाल में एक चमत्कारिक घटना घटी। एक रात नेपाल की शिखर नामक पहाड़ी की चोटी से चमकीला ज्योतिपुंज उड़कर अस्कोट के धर्मशाला इलाके के समीप स्थित मंदिर पर आ गिरा। वहां जाकर देखने पर एक विशेष प्रकार का शंख व घंटी मिली। इस घटना के कुछ दिनों बाद क्षेत्र में एक और चमत्कारिक घटना घटी। अस्कोट की चंपाचल पहाड़ी की अंगलेख चोटी पर आसपास के गांवों से यहां चरने जाने वाले मवेशियों में से एक दुधारू गाय को प्रतिदिन अपने थनों से विशेष जगह पर दूध अर्पित करते देखा था। ग्वाला उस स्थान पर गया तो वहां स्वयं-प्रस्फुटित शिवलिग दिखा। इस यह सूचना राजपरिवार तक पहुंची तो इस पहाड़ी के ठीक सामने नेपाल स्थित शिखर पहाड़ी पर विराजमान अपने ईष्ट देव श्री मल्लिकार्जुन महादेव की लीला व कृपा मान सन 1822 में वहां श्री मल्लिकार्जुन महादेव मन्दिर का निर्माण कराया। साथ ही पूर्व में नेपाल के शिखर से चमकीले ज्योतिपुंज के रूप में आए शंख व घंटी को ले जाकर विधि-विधान से शुरू हुआ पूजा-अर्चना का क्रम जारी है।

    कालांतर में शनै: शनै: यह मंदिर सम्पूर्ण अस्कोट इलाके के साथ ही नेपाल सहित दूर-दूर के क्षेत्रों के लोगों के लिए अपार श्रद्धा,अगाध भक्ति व अटूट आस्था के एक प्रमुख धार्मिक स्थल के रूप में प्रसिद्ध हो गया। प्रति वर्ष कार्तिक मास की बैकुंठ चतुर्दशी को यहां एक विशाल मेला लगता है। महाशिवरात्रि व अन्य धार्मिक पर्वों पर भी यहां श्रद्धालु उमड़ते हैं।

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    भारत-नेपाल की अटूट आस्था

    श्री मल्लिकार्जुन महादेव मन्दिर परिक्षेत्र धर्म व अध्यात्म का प्रमुख केन्द्र होने के साथ-साथ अद्भुत नैसर्गिक सौंदर्य से भी परिपूर्ण है। यहां से पूर्व में भारत-नेपाल अंतरराष्ट्रीय सीमा को रेखांकित करती महाकाली नदी के मनोहारी दृश्य, उत्तर दिशा में हिमाच्छादित गगनचुंबी पर्वत श्रंखलाओं, दक्षिण में तीतरी-बगड़ीहाट-गर्खा के हरे भरे सीढ़ीदार खेत-खलिहानों और पश्चिम में ऐतिहासिक नगरी अस्कोट के विहंगम ²श्य को निहारना मन-मस्तिष्क को अलौकिक सुख प्रदान करता है।