ऐतिहासिक बालेश्वर मंदिर को मंदिरमाला मिशन में शामिल करने की मांग
संवाद सूत्र, थल : पौराणिक महत्व के ऐतिहासिक थल स्थित बालेश्वर महादेव मंदिर को मानसखंड मंदिरमाला मिशन में शामिल नहीं किए जाने पर क्षेत्र की जनता ने नाराजगी प्रकट की है। इस संबंध में क्षेत्रवासियों ने प्रदेश सरकार को ज्ञापन भेजकर शीघ्र बालेश्वर मंदिर को भी कुमाऊं के मंदिर माला मिशन से जोड़ने की मांग उठाई है। प्रदेश सरकार द्वारा पर्यटन को बढ़ावा देने के लिए गढ़वाल में चारधाम की तरह कुमाऊं मंडल में नया मानसखंड कारिडोर बनाया जा रहा है। मिशन के तहत कुमाऊं मंडल के सभी छह जनपदों के 30 पौराणिक मंदिरों को चिह्नित किया गया है, लेकिन थल के बालेश्वर मंदिर को इसमें शामिल नहीं किया गया है। जिस पर क्षेत्र की जनता नाराजगी प्रकट की है। इस संबंध में थल रामलीला कमेटी के पदाधिकारियों, भाजपा कार्यकर्ताओं, जनप्रतिनिधियों ने थल भ्रमण पर आए डीडीहाट के विधायक बिशन सिंह चुफाल से मुलाकात कर उन्हें इस आशय का एक ज्ञापन सौंपकर बालेश्वर मंदिर को भी मंदिरमाला मिशन में शामिल करने की मांग की। विधायक चुफाल ने बताया कि वह शीघ्र मुख्यमंत्री के सम्मुख यह मसला रखेंगे। ज्ञापन सौंपने वालों में रामलीला कमेटी के सचिव अर्जुन सिंह रावत, भाजपा मंडल अध्यक्ष कमल कन्याल, कमेटी के मीडिया प्रभारी सुनील सत्याल, क्षेत्र पंचायत सदस्य सूरज सिंह रावत, तेन सिंह चुफाल आदि मौजूद थे। ====== चंद राजा उद्योत चंद ने की थी बालेश्वर मंदिर की स्थापना मान्यता है कि त्रेता युग में वानर राज बाली ने रामगंगा, क्रांति व बहुला नदी के संगम पर एक पांव में खड़े होकर भगवान शिव की घोर तपस्या की थी। प्रसन्न होकर शिव ने बाली को बाल रूप में दर्शन देकर स्वयंभू शिवलिंग में समाहित हो गए और यह फिर बालेश्वर या बालीश्वर मंदिर के नाम से प्रसिद्ध हुआ। चंद राजा के शासन काल में 12वीं सदी में उद्योत चंद राजा ने मंदिर की स्थापना की थी। प्राचीन काल में यही से पवित्र कैलाश मानसरोवर की यात्रा शुरू होती थी। राजा उद्योत चंद ने कोटिगांव के पुजारियों को ताम्रपत्र भी दिया था, जो आज भी धरोहर के रूप में उनके पास मौजूद है। स्कंदपुराण के मानसखंड के 108वें अध्याय में भी प्राचीन बालेश्वर महादेव मंदिर की महिमा का उल्लेख किया गया है कि यहां दर्शन करने मात्र से काशी के बराबर फल मिलता है। त्रिवेणी संगम पर स्थित इस मंदिर में माघ माह में स्नान करने से सारे अरिष्टों का परिहार हो जाते हैं। संगम में डुबकी लगाने से मानव के सारे पाप धुल जाते हैं। उत्तर भारत में चार देवालयों में शुमार इस देवालय में वर्ष भर में उत्तरायणी, शिवरात्रि और बैशाखी पर्व पर भव्य मेला लगता है। इसके बाद भी इसे मानसखंड मंदिरमाला मिशन में शामिल नहीं किया गया है।
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