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    गुरु मंत्र से ही सफलता का मुकाम पाया

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    Updated: Fri, 04 Sep 2015 10:33 PM (IST)

    जागरण संवाददाता, पिथौरागढ़ : सच्चा गुरु ही जीवन की राह दिखाता है। गुरु के बताए आदर्शो पर चलने से ही

    जागरण संवाददाता, पिथौरागढ़ : सच्चा गुरु ही जीवन की राह दिखाता है। गुरु के बताए आदर्शो पर चलने से ही मुकाम भी हासिल होता है। जीवन में प्रारंभिक शिक्षा में यदि सच्चे गुरु मिल जाएं तो जीवन धन्य हो जाता है। आज जिस स्थान पर पहुंचा हूं, उसमें गुरु मिश्रुमल चौहान का महत्वपूर्ण योगदान रहा है।

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    पिथौरागढ़ के एसपी रोशन लाल शर्मा ने गुरु के महत्व पर यह बात कही। उन्होंने बताया जीवन में अनुशासन, समर्पण, त्याग और कर्म सब कुछ उन्होंने अपने प्रथम गुरु मिश्रुमल चौहान से ही सीखा। शर्मा बताते हैं उनका गांव मेघाटूसोलन, उत्तराखंड और हिमाचल प्रदेश की सीमा से लगा है। आधा गांव उत्तराखंड तो आधा हिमाचल में है। आज भी गांव दूरस्थ की श्रेणी में है।

    जब उत्तराखंड उत्तर प्रदेश का हिस्सा था, तब गांव में मिडिल स्कूल सोलंग था। जहां पर शिक्षक के रूप में हिमाचल प्रदेश के रहने वाले मिश्रुमल चौहान उनके प्रथम गुरु रहे। मिडिल पास करने के बाद उनकी पढ़ाई देहरादून, शिमला और अन्य शहरों में हुई। परंतु दिलोदिगाम में प्रथम गुरु चौहान ही रचे-बसे रहे। शर्मा बताते हैं घर परिवार से दूर रह कर जिस तरह चौहान बच्चों को अपना समझ कर दिनरात शिक्षा देते थे, उससे जीवन में सदैव कर्म के प्रति समर्पित रहने का मार्गदर्शन मिला।

    बताया कि शिक्षक बहुत देखे, परंतु मिश्रुमल चौहान ने त्याग और मेहनत का मंत्र पढ़ाया। उनकी कृपा से ही आज पुलिस अधीक्षक पद पर हूं। बाल्यकाल में यदि उन जैसे शिक्षक नहीं मिले होते तो आज यहां नहीं पहुंच पाता। शर्मा बताते हैं उनके सच्चे गुरु 16 वर्ष पूर्व दुनिया छोड़ चुके हैं, परंतु उनके दिल में आज भी विराजमान हैं।

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    ::::::: रोचक प्रसंग-

    मन को छू गया गुरु का कार्य

    एसपी रोशन लाल शर्मा बताते हैं कि समाज में भेदभाव, अस्पृश्यता की भावना से मुक्ति दिलाने वाले उनके प्रथम गुरु मिश्रुमल चौहान ही थे। वह बताते हैं कि गुरु गांव के एक मकान में रात को भी बच्चों को बुलाकर कक्षाएं लगाकर पढ़ाते थे। उस दौरान छुआछूत का रोग भी था। एक बच्चे का बैग किसी के छू जाने से उस बच्चे ने बैग में रखा खाना खाने से मना किया। तब गुरु चौहान ने लड़के के बैग से खाना निकाल कर पहले खुद खाया और बताया कि मानवों में कोई भेदभाव नहीं होता है। वह प्रसंग आज भी याद है गुरुजी की इस पहल से भेदभाव का भाव ही मन से निकल गया था।