उत्तराखंड में नए खतरे की आहट, अब धौली गंगा में बन रही झील; निचले इलाकों पर बरपा सकती है कहर
उत्तराखंड के चमोली जिले में धौली गंगा नदी पर एक झील बन रही है, जिसे भूविज्ञानी खतरे की घंटी मान रहे हैं। उनका कहना है कि अगर झील का आकार बढ़ता रहा तो निचले इलाकों में तबाही आ सकती है। अगस्त में भारी बारिश और हिमस्खलन के कारण तमंग नाले पर बना पुल बह गया, जिससे नदी का प्रवाह बाधित हुआ और झील का निर्माण हुआ। इस क्षेत्र की भूगर्भीय संरचना नाजुक होने के कारण निगरानी जरूरी है।

उत्तराखंड के सीमांत चमोली जिले की नीती घाटी में उभरता दिख रहा नया खतरा.
कमल किशोर पिमोली, जागरण श्रीनगर गढ़वाल। हिमालयी क्षेत्र में छोटी-सी हलचल बड़ी आपदा का रूप ले सकती है। इसी क्रम में उत्तराखंड के सीमांत चमोली जिले की नीती घाटी में नया खतरा उभरता दिख रहा है। यहां धौली गंगा नदी में झील बन रही है, जिसे भूविज्ञानी गंभीर खतरा मान रहे हैं। उनका कहना है कि झील यूं ही आकार लेती रही तो भविष्य में निचले इलाकों में बड़ी तबाही से इंकार नहीं किया जा सकता।
धौली गंगा को अलकनंदा जलग्रहण क्षेत्र की सबसे खतरनाक व विध्वंसक नदियों में गिना जाता है। वर्ष 1970 के ढाक नाला व तपोवन हादसों से लेकर हाल के वर्षों में ऋषि गंगा, रैणी, जोशीमठ, तमंग और झेलम गांव की आपदाएं इसका प्रमाण हैं। हेमवती नंदन बहुगुणा गढ़वाल केंद्रीय विश्वविद्यालय में भूगर्भ विज्ञान विभाग के अध्यक्ष प्रो. एमपीएस बिष्ट, जो वर्ष 1986 से इस क्षेत्र का भूगर्भीय सर्वे कर रहे हैं, बताते हैं कि हाल में 25 से 28 अक्टूबर के बीच सीमांत क्षेत्रों के भ्रमण के दौरान उन्होंने तमंग नाले के पास धौली गंगा नदी में झील का निर्माण होते देखा। प्रो. बिष्ट के अनुसार, झील की लंबाई लगभग 350 मीटर है।
ऐसे बनी झील
प्रो. बिष्ट के अनुसार, नीती घाटी में तमंग नाला और गांखुयी गाड धौली गंगा में आकर मिलते हैं। इस वर्ष अगस्त में हुई भारी वर्षा और एवलांच के दौरान तमंग नाले पर बना करीब 50 मीटर लंबा आरसीसी पुल बहकर धौली गंगा में जा गिरा। इससे नदी का प्राकृतिक प्रवाह बाधित हुआ और वहां पानी ठहरने लगा। हालांकि, झील से पानी का कुछ रिसाव हो रहा है, लेकिन खतरा बरकरार है। प्रो. बिष्ट बताते हैं कि इस क्षेत्र का भूगर्भीय ढांचा अत्यंत नाजुक है। यहां की ढलानों पर ग्लेशियरों की पुरानी मोरेन (मलबे की ढेरियां) मौजूद हैं, जो थोड़ी-सी नमी या झटके से खिसक जाती हैं। यही कारण है कि यहां बार-बार भूस्खलन, फ्लैश फ्लड और एवलांच जैसे घटनाक्रम होते रहते हैं।
निगरानी ही एकमात्र उपाय
प्रो. बिष्ट बताते हैं कि वर्ष 2001-02 में धौली गंगा और तमंग नाले के उफान से स्याग्री गांव को भारी नुकसान हुआ था, जबकि 2003 में यह गांव पूरी तरह मलबे में दब गया था। आज उस स्थान पर घना जंगल उग आया है, लेकिन खतरा वहीं का वहीं है। प्रो. बिष्ट कहते हैं, कि धराली जैसी आपदाओं की पुनरावृत्ति रोकने के लिए जरूरी है कि नदियों पर बनने वाली इस तरह की झीलों की नियमित निगरानी की जाए और आवश्यकता पड़ने पर इन्हें खाली किया जाए।

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