मिर्च उत्पादकों की उम्मीदों पर सिस्टम का नमक, हम ऐसा क्यों कह रहे हैं इस खबर में पढ़ें
वकुंडई समेत आसपास के तमाम गांव मिर्च उत्पादन के लिए पूरे उत्तराखंड में विशिष्ट पहचान रखते हैं। लेकिन कोई व्यवस्था न होने के कारण काश्तकारों को कौड़ियों के भाव इस मिर्च को
कोटद्वार, अजय खंतवाल। पौड़ी जिले के दूरस्थ बीरोंखाल विकासखंड का देवकुंडई गांव इन दिनों चर्चाओं में है। बीते पांच अक्टूबर को इसी गांव की 11-वर्षीय वीरबाला राखी ने जान की परवाह किए बिना गुलदार के चंगुल से अपने मासूम भाई को बचाया था। विडंबना देखिए कि सिस्टम ने कभी राखी के इस गांव की ओर झांकने तक की जरूरत नहीं समझी। जबकि, देवकुंडई समेत आसपास के तमाम गांव मिर्च उत्पादन के लिए पूरे उत्तराखंड में विशिष्ट पहचान रखते हैं। लेकिन, विपणन की कोई व्यवस्था न होने के कारण काश्तकारों को कौड़ियों के भाव इस मिर्च को बेचना पड़ता है। ऐसे में धीरे-धीरे वह खेती से विमुख होने लगे हैं।
वीरबाला राखी के पिता दलवीर सिंह भी काश्तकार हैं। उनके खेतों में भी मिर्च की फसल लहलहाती है। पांच अक्टूबर को जिस वक्त गुलदार ने राखी व उसके भाई पर हमला किया, तब दोनों बच्चे मां के साथ मिर्च की गुड़ाई कर घर लौट रहे थे। दलवीर ही नहीं, इस क्षेत्र के अन्य काश्तकारों की आय का मुख्य जरिया भी मिर्च की खेती ही है। बावजूद इसके इन काश्तकारों को आज तक अपनी मेहनत का मोल नहीं मिल पाया है।
यही वजह है कि काश्तकार धीरे-धीरे खेतों से दूर होते जा रहे हैं। जबकि, सरकारी दस्तावेजों में बीरोंखाल ब्लॉक आज भी कृषि के लिए बेहतर माना जाता है, लेकिन यहां खेती को प्रोत्साहित करने के लिए कभी कोई ठोस योजना धरातल पर नहीं उतारी गई। नतीजा, काश्तकार जैसे-तैसे अपनी फसल को रामनगर मंडी पहुंचाकर औने-पौने दामों में बेच रहे हैं।
उद्यान विशेषज्ञ डॉ. एसएन सिंह ने बताया कि मिर्च के बीज पर काश्तकारों को सब्सिडी दी जा रही है। वह अगर अपनी समस्या से विभाग को अवगत कराएं तो निश्चित रूप से उसका समाधान निकाला जाएगा। काश्तकार चाहे तो विभाग विपणन की व्यवस्था भी करेगा।
800 क्विंटल से घटकर 200 क्विंटल पर आया उत्पादन
बीरोंखाल ब्लॉक के देवकुंडई, सकनोली, धारकंडई, बडियाना, ग्यूंलाड, पांड आदि गांवों के काश्तकार हर्षपाल, गंगाराम जोशी, देवेंद्र सिंह, रणवीर सिंह और यशपाल सिंह बताते हैं कि उनके गांवों में मिर्च की लखौर, जंजीर, दड़वा व बेर जैसी किस्में पैदा होती हैं। इनमें लखौर और जंजीर प्रजाति काफी तीखी होती है, जबकि दड़वा व बेर प्रजाति सामान्य। कुछ वर्ष पूर्व तक उनके गांवों में प्रतिवर्ष लगभग 800 क्विंटल तक मिर्च का उत्पादन होता था, जो वर्तमान में घटकर लगभग 200 क्विंटल तक रह गया है।
बिचौलियों के भरोसे काश्तकार
जंजीर और लखौरी मिर्च बाजार में 400 से 500 रुपये प्रति किलो के हिसाब से बिकती है, लेकिन काश्तकार को इतनी धनराशि नहीं मिलती। आर्थिक रूप से संपन्न काश्तकार तो मिर्च को बिक्री के लिए रामनगर मंडी में ले जाते हैं, लेकिन जिनकी आर्थिकी कमजोर है, उन्हें बिचौलियों के भरोसे रहना पड़ता है। नतीजा, उन्हें लागत भी नहीं मिल पाती।
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