उत्तराखंड में वन्यजीवों और आंधी-तूफान से फसल क्षति भी आपदा के दायरे में, पढ़िए पूरी खबर
उत्तराखंड में जंगली जानवरों के साथ ही आंधी-तूफान से होने वाली फसल क्षति को अब आपदा की श्रेणी में शामिल किया जा रहा है।
देहरादून, केदार दत्त। जंगली जानवरों के साथ ही आंधी-तूफान से होने वाली फसल क्षति ने सरकार की पेशानी पर बल डाल दिए हैं। दोनों मामलों को अब आपदा की श्रेणी में शामिल किया जा रहा है। आपदा प्रबंधन विभाग ने इसका मसौदा तैयार कर लिया है, जिसे 23 अक्टूबर को होने वाली राज्य मंत्रिमंडल की बैठक में रखा जाएगा। राज्य में हर साल वन्यजीवों से औसतन 260 हेक्टेयर से ज्यादा फसल क्षति होती है। इसके अलावा प्री-मानसून व मानसून सीजन में आंधी-तूफान भी किसानों की कमर तोड़कर रख देते हैं। अब इनके आपदा में शामिल होने से किसानों को केंद्र के मानकों के अनुरूप वक्त पर क्षतिपूर्ति मिल सकेगी।
केंद्र सरकार की गाइडलाइन है कि राज्य स्थानीय स्तर की ऐसी आपदाएं, जिनसे बड़े पैमाने पर नुकसान होता है, उसे वे राज्य आपदा मोचन निधि में शामिल कर सकते हैं। इस क्रम में राज्य सरकार ने 2017 में आकाशीय बिजली (वज्रपात) को आपदा में शामिल किया। अब वन्यजीवों के साथ ही आंधी-तूफान से फसल क्षति को इस श्रेणी में लाया जा रहा है। असल में 71 फीसद वन भूभाग वाले राज्य में वन्यजीव फसलों को भारी क्षति पहुंचा रहे हैं।
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वन विभाग के आंकड़ों पर नजर दौड़ाएं तो वर्ष 2012-13 से इस साल अगस्त तक वन्यजीवों ने 2080.211 हेक्टेयर क्षेत्र में फसलों को नुकसान पहुंचाया। हालांकि, गैर अधिकारिक आंकड़े इसे कहीं अधिक बताते हैं। वन्यजीवों से फसल क्षति के मुआवजे के लिए किसानों को वन विभाग की चौखट पर एड़ियां रगड़नी पड़ती है।
वहीं, प्रतिवर्ष आंधी-तूफान से फलों समेत अन्य फसलों को भारी क्षति से किसानों की मेहनत पर पानी फिर रहा है। पलायन आयोग की रिपोर्ट पर गौर करें तो गांवों से पलायन के पीछे ये भी वजह हैं।
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किसानों की इन मामलों में क्षतिपूर्ति से जुड़ी दिक्कतें अब दूर हो जाएंगी। सरकार ने दोनों मामले आपदा में शामिल करने का निर्णय लिया है। सूत्रों के मुताबिक आपदा प्रबंधन विभाग ने इसका मसौदा तैयार कर लिया है। कैबिनेट की मंजूरी मिलने पर इसे राज्य में लागू कर दिया जाएगा।
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