बढ़ते तापमान और घटती बर्फबारी से अल्पाइन वनस्पतियों पर गंभीर संकट
अंतरराष्ट्रीय कार्यशाला में वैज्ञानिकों ने हिमालयी क्षेत्र में जलवायु परिवर्तन के खतरों पर चिंता जताई। गढ़वाल विवि की डा. विजयलक्ष्मी ने बताया कि घटती बर्फबारी और बढ़ते तापमान से अल्पाइन वनस्पतियां खतरे में हैं। डा. रंजीत कुमार ने वायु प्रदूषण को गंभीर समस्या बताया, जिससे हर साल लाखों लोग मरते हैं। डा. बुटोला ने क्लाइमेट स्मार्ट फोरेस्ट्री को भविष्य के लिए आवश्यक बताया।

जागरण संवाददाता, श्रीनगर गढ़वाल। जलवायु संकट हिमालय की जैव विविधता पर गहरा असर डाल रहा है। घटती बर्फबारी और बढ़ते तापमान के कारण गढ़वाल हिमालय की अल्पाइन वनस्पतियां संकट का सामना कर रही हैं। यह जानकारी हिमालय की पारिस्थितिकी पर शोध करने वाली गढ़वाल विवि के हाइएल्टीट्यूड प्लांट फिजियोलाजी रिसर्च सेंटर (हैप्रेक) की विज्ञानी डा. विजयलक्ष्मी ने अंतरराष्ट्रीय कार्यशाला में दी। उन्होंने चेतावनी दी कि यदि इस स्थिति को तुरंत नियंत्रित नहीं किया गया, तो उच्च हिमालयी क्षेत्र के पारिस्थितिकी तंत्र को काफी नुकसान पहुंच सकता है।
हेमवती नंदन बहुगुणा गढ़वाल केंद्रीय विश्वविद्यालय के भौतिक विज्ञान विभाग की ओर से आयोजित तीन दिवसीय अंतरराष्ट्रीय कार्यशाला में दूसरे दिन मंगलवार को जलवायु परिवर्तन, हिमालयी पारिस्थितिकी, पारंपरिक ज्ञान, एयरोसोल विज्ञान, वन प्रबंधन और जैव विविधता संरक्षण जैसे विषयों पर नौ सत्र आयोजित किए गए।
इस दौरान देश के विभिन्न उच्च शिक्षण संस्थानों से आए विज्ञानियों ने हिमालयी क्षेत्र में जलवायु परिवर्तन के दुष्प्रभावों पर चिंता व्यक्त की। कार्यशाला संयोजक व वरिष्ठ भौतिक विज्ञानी डा. आलोक सागर गौतम ने उनसे विभिन्न पहलुओं पर संवाद किया।
दयालबाग शोध संस्थान आगरा के वरिष्ठ विज्ञानी डा. रंजीत कुमार ने ग्लोबल एयर क्राइसेस पर किए जा रहे शोध कार्यों का उल्लेख करते हुए कहा कि वायु प्रदूषण केवल एक वैज्ञानिक या तकनीकी समस्या नहीं है, बल्कि यह हमारी बदलती जीवनशैली, संस्कृति और ज्ञान परंपरा से भी गहराई से जुड़ा हुआ है।
उन्होंने विश्व स्वास्थ्य संगठन के आंकड़ों का हवाला देते हुए बताया कि हर वर्ष वायु प्रदूषण से संबंधित बीमारियों के कारण 70 लाख लोग जान गंवाते हैं। डा. रंजीत ने पारंपरिक पारिस्थितिकी ज्ञान के आधुनिक विज्ञान के साथ समन्वय की आवश्यकता पर जोर देते हुए कहा कि जब ये दोनों मिलकर काम करते हैं, तो परिणाम अधिक प्रभावी और अनुकूल होते हैं।
विज्ञानी डा. दीनमणि लाल ने एयरोसोल, क्लाउड और लाइटनिंग विषय पर चर्चा करते हुए बताया कि एयरोसोल व वायुमंडलीय प्रक्रियाओं के बीच जटिल संबंध हैं। अधिक एयरोसोल सांद्रता से स्थानीय स्तर पर आंधी-तूफान की तीव्रता में वृद्धि होती है। डा. जितेंद्र बुटोला ने मानव जनित जलवायु परिवर्तन के गहन प्रभावों और उनके समाधान पर शोध पत्र प्रस्तुत किया।
उन्होंने कहा कि जलवायु परिवर्तन केवल पर्यावरण को ही नहीं, बल्कि मानव स्वास्थ्य, कृषि और जैव विविधता को भी प्रभावित कर रहा है। क्लाइमेट स्मार्ट फोरेस्ट्री को भविष्य की आवश्यकता बताते हुए उन्होंने कहा कि यह वनों की उत्पादकता, जैव विविधता और स्थानीय समुदायों की आजीविका के बीच संतुलन स्थापित करने में महत्वपूर्ण हो सकती है।
डा. विक्रम नेगी ने हिमालयी वनस्पतियों पर जलवायु परिवर्तन के प्रभावों पर अपना शोध पत्र प्रस्तुत किया। आगरा, दिल्ली, पुणे, देहरादून, लखनऊ, बरेली और उत्तराखंड के विभिन्न उच्च शिक्षण संस्थानों से आए विज्ञानियों ने भी कार्यशाला के विभिन्न सत्रों में भाग लिया और शोधार्थियों के प्रश्नों का उत्तर देकर उनकी जिज्ञासा को शांत किया।
कमेंट्स
सभी कमेंट्स (0)
बातचीत में शामिल हों
कृपया धैर्य रखें।