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    पहाड़ के इस नौजवान ने बता दिया- सबसे बड़ा रिस्‍क है, रिस्‍क ना लेना nainital news

    By Skand ShuklaEdited By:
    Updated: Fri, 03 Jan 2020 05:02 PM (IST)

    हिमालयी राज्य की सबसे बड़ी चुनौती संकट व पीड़ा यानी पलायन। आंकड़े कहते हैं 1702 गांव अब तक वीरान हो चले हैं। ठीक उलट कुछ जिवट भी हैं जो महानगरों से वापस अपने गांव लौट रहे।

    पहाड़ के इस नौजवान ने बता दिया- सबसे बड़ा रिस्‍क है, रिस्‍क ना लेना nainital news

    अल्मोड़ा, दीप सिंह बोरा : हिमालयी राज्य की सबसे बड़ी चुनौती, संकट व पीड़ा यानी पलायन। आंकड़े कहते हैं 1702 गांव अब तक वीरान हो चले हैं। ठीक उलट कुछ जीवट लोग भी हैं जो महानगरों से वापस अपने गांव लौट रहे हैं। जहां लोग सारे संशाधनों के बावजूद बड़ा जोखिम लेने से डरते हैं, वहीं इन नौवजवानों ने ऐसे लोगों के सामने मिशालें पेश की हैं। अपने हुनर से ऊसर पड़ी जमीन को संवार छोटे स्टार्टअप से स्वरोजगार की बड़ी पटकथा लिख डाली। अल्‍मोड़ा जिले के ताकुला ब्लॉक के सुदूर गांव का ऐसा ही एक जुनूनी नौजवान रिवर्स माइग्रेशन का उम्‍दा उदाहरण बन अन्य युवाओं को अभावों के पहाड़ में कुछ नया कर गुजरने का जज्बा दे रहा।

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    जोखिम लिया और बदल दी तकदीर

    बसौली गांव के खीम सिंह नगरकोटी के महानगर की नौकरी छोड़ गांव लौटने की जोखिम भरी कहानी किसी प्रेरणा से कम नहीं। उच्चशिक्षा के बाद वर्ष 2010 में दिल्ली चला गया। एक सीएम फर्म में ऑडिटर की नौकरी मिली। वर्ष 2014 में विवाह हुआ। फिर पंतनगर औद्योगिक आस्थान पंतनगर स्थित लासा कंसल्टेंसी प्राइवेट लिमिटेड में एक्साइज व सर्विस टैक्स ऑडिटर बन गया। दो साल बाद उसे लगा कि गांव में मेहनत की जाए। फैसला जोखिम भरा था। चुनौतियां खूब।

    पत्थर सी जमीन पर खुद चलाया फावड़ा

    पहाड़ लौटे खीम सिंह ने कुछ दिन क्षेत्र के बड़े दुकानदारों का ऑडिट संभाला। साथ ही पैतृक जमीन की पैमाइश कराई। वर्षों से बंजर सात नाली भूमि पर होमस्टे के लिए मडहाउस का सपना बुना। मजदूरों की मनाही पर पत्थर सी कठोर जमीन पर खुद फावड़ा चलाया। माहभर में बंजर भूमि को सीढ़ीदार खेतों की शक्ल दे डाली। स्टार्टअप को लोन के लिए तीन माह तक सरकारी कार्यालयों के चक्कर लगाए। तब उम्मीद जगी।

    ...और तैयार कर डाला सुंदर टूरिस्ट स्पॉट

    बसौली गांव की जिस पहाड़ीनुमा भूमि पर खालिस घास थी, खीम सिंह ने दिन रात मेहनत से सुंदर टूरिस्ट स्पॉट बना डाला। शुरुआत में लाल मिट्टी के गारे से चार मडहाउस खड़े किए। एक इको फ्रेंडली रेस्तरां, स्टाफ रूम व रसोई बनाई। कुछ घासफंूस की झोपडिय़ां भी तैयार की। अगली चुनौती थी मुख्य रोड तक मार्ग की। उसका जुनून देख अन्य ग्रामीणों ने अपनी जमीन दी। फावड़ा गैंती चला खीम सिंह ने करीब 300 मीटर लंबा मार्ग भी बनाया। जिससे सैलानी यहां तक पहुंचने लगे हैं।

    तुलसी व लैमनग्रास की चाय से स्वागत

    मडहाउस व हट बनाने के बाद खाली खेतों पर दूब उगाई। तेजपत्ता, लैमनग्रास, एलोवेरा, तुलसी आदि औषधीय पौधों की फुलवारी बनाई। पर्यटकों को यहीं की तुलसी व लैमनग्रास की चाय परोसी जाती है।

    ध्यान योग केंद्र भी

    मडहाउस के पास ही खाली भूखंड पर ध्यान योग केंद्र भी बनाया है। रात को कैंपफायर भी। खीम सिंह ने अपने भाई देवेंद्र व गांव के कुछ अन्य युवाओं को यहां रोजगार से भी जोड़ा है।

    साथ में मशरूम उत्पादन से बढ़ा रहे आय

    होमस्टे के साथ ही खीम सिंह ने पैतृक जर्जर मकान को मिट्टी से लीप मशरूम उत्पादन भी शुरू किया है। पहले ही सीजन में ढाई सौ प्रति किलो की दर से करीब डेढ़ सौ किलो मशरूम बेचा। इस रकम से वह अपने खुद के टूरिस्ट स्पॉट को संवार साथियों का वेतन निकालता है।

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