महिला समूहों खादी से तैयार कर रहे मास्क, देश सेवा के साथ-साथ जनता की सुरक्षा का भी ध्यान
बाजपुर के ग्राम भीकमपुरी में मास्क बनाने में जुटी चेतना स्वयं सहायता समूह से जुड़ीं जनजाति समाज की महिलाएं। जागरण
जीवन सिंह सैनी, ऊधमसिंह नगर। कोरोना वायरस के खतरे ने बाजार में मास्क की शॉर्टेज के साथ-साथ कालाबाजारी भी बढ़ा दी है। 10 से 15 रुपये में मिलने वाला मास्क 50 रुपये तक में बिक रहा है। वहीं, ऊधमसिंह नगर जिले के बाजपुर क्षेत्र की महिला समूहों ने इस मुश्किल घड़ी में गांधी की खादी को कोरोना से आजादी का हथियार बना लिया है। स्वदेशी मास्क तैयार कर महिला समूह ब्लाक एवं ग्राम पंचायतों तक पहुंचा रही है। महिलाओं की इस मुहिम को प्रशासन ही नहीं आमजन भी सराह रहे हैं। ग्रामीण इलाकों में कोरोना से जंग में यही मास्क सुरक्षा कवच का काम कर रहे हैं।
राष्ट्रीय ग्रामीण आजीविका मिशन के तहत बाजपुर विकासखंड में 402 समूह गठित हैं। इनके द्वारा समय-समय पर मांग के अनुसार विभिन्न प्रकार की वस्तुएं बनाकर आमदनी का जरिया जुटाया जाता है। मांग के मुताबिक ये समूह अपना काम करते हैं। मिशन की ब्लॉक प्रबंधक सुनीता कश्यप द्वारा बाजार उपलब्ध कराया जाता है। इन दिनों कोरोना वायरस संक्रमण के चलते बाजार में मास्क की कमी को देखते हुए खंड विकास अधिकारी (बीडीओ) हर्र ंसह मेहरा के सहयोग से तीन महिला समूहों द्वारा मास्क बनाने का कार्य शुरू किया गया।
बाजपुर में खादी से बने मास्क कोतवाली पुलिस को निशुल्क भेंट करतीं दीदी संकल्प समिति की अध्यक्ष उमा जोशी (बाएं से चौथी) व सरोज (दाएं से दूसरी)। जागरण
पहले दीदी संकल्प समूह की अध्यक्ष उमा व सुनीता कश्यप ने समूहों से मास्क खरीद कर पुलिस व स्वास्थ्य विभाग में निशुल्क बांटे। उसके उपरांत ग्राम प्रधानों के माध्यम से गांव-गांव में इसकी उपलब्धता सुनिश्चित कराई गई। मांग बढ़ती गई तो अब 13 समूह मास्क बनाने के काम में जुटे हैं। मात्र चार दिन में महिलाओं द्वारा 900 मास्क बनाए गए हैं। खास बात यह है कि इन समूहों में अधिकांश जनजाति समाज की महिलाएं हैं।
यह समूह बना रहे है मास्क : राष्ट्रीय ग्रामीण आजीविका मिशन के तहत गठित महिला समूह चेतना च्योति भीकमपुरी, पूजा खालसा बरहैनी, इंद्रा, जानकी व पूजा मुंडियाकलां, उदय, प्रगति व उच्जवला महोली जंगल, विकास व एकता महेशपुरा, दशमेश बन्नाखेड़ा द्वारा किया जा रहा है।
ऐसे होता है निर्माण : खादी का एक मीटर कपड़ा 100 रुपये में आता है। इसमें डोरी वाले 32 और इलास्टिक वाले 37 मास्क बनते हैं। जिनकी लागत नौ से 11 रुपये आ रही है। यह सभी खादी कपड़े से बनाए जा रहे हैं। आवश्यकतानुसार डेटॉल में धोकर लंबे समय तक यह प्रयोग में लाए जा सकते हैं। जबकि कंपनियों में बने मास्क टिशू पेपर से बन रहे हैं। उनमें प्लास्टिक की मात्रा भी होती है। अब स्वदेशी मास्क की लगातार ग्रामीण क्षेत्रों से मांग आ रही है। एक मास्क पर समूह को चार से पांच रुपये की बचत हो रही है। जो आजीविका के लिए उचित माध्यम बन रही ह
अभी तक ग्राम भजुवा नगला में 237, रामजीवनपुर में 150, बरहैनी 100, चकरपुर में 80, स्वास्थ्य केंद्र में 50, कोतवाली में 35 मास्क दिए गए है। अभी एक हजार मास्क का आर्डर समूहों को मिला है। जैसे-जैसे माल तैयार हो रहा है ग्राम पंचायतों को उपलब्ध कराया जा रहा है।
-सुनीता कश्यप, ब्लॉक मिशन मैनेज
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