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टकराव टालकर हमें गुलदारों के साथ जीने की डालनी होगी आदत : पीसीसीएफ भरतरी

पर्वतीय क्षेत्रों में पर्यावरणीय क्षति के साथ वन क्षेत्रों में वन्यजीवों के आवास उजडऩे से भी हमले बढ़ रहे हैं। पीसीसीएफ ने निर्देश दिए कि मानव व पशु क्षति के मामलों में त्वरित कदम उठाएं। मुआवजा समय पर दें। जरूरत पडऩे पर वन्यजीव संस्थान देहरादून से विशेषज्ञ बुलाए जाएंगे।

By Prashant MishraEdited By: Updated: Sat, 14 Aug 2021 09:44 AM (IST)
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महाराष्ट्र की तर्ज पर राज्य में भी विलेज प्रोटेक्शन टास्क फोर्स गठित कर ग्रामीणों को जागरूक करने की जरूरत है।

जागरण संवाददाता, अल्मोड़ा : पहाड़ में चरम पर पहुंच चुके मानव गुलदार टकराव को थामने के लिए 'लिव विद लेपर्ड' की थीम पर काम होगा। लगातार बढ़ते संघर्ष को चुनौती मानते हुए पीसीसीएफ राजीव भरतरी ने कहा कि टकराव टालने व दोतरफा क्षति से बचने को गुलदारों के साथ जीने की आदत डालनी होगी। खास बात कि बीते एक डेढ़ दशक में संघर्ष तेज होने की असल वजह जानने को विभागीय विशेषज्ञ नए सिरे से अध्ययन भी करेंगे। ताकि कारगर उपाय तलाशे जा सकें।

पीसीसीएफ राजीव शुक्रवार को विवेकानंद पर्वतीय कृषि अनुसंधान केंद्र के सभागार में 'मानव वन्यजीव संघर्ष न्यूनीकरण' विषयक गोष्ठी में बोल रहे थे। वनाधिकारियों ने अपने अपने क्षेत्रों में गुलदा व भालुओं के हमलों पर चर्चा की। इस दौरान इंसानी जिंदगी के साथ ही वन्यजीव सुरक्षा पर भी गहन मंथन किया गया। पीसीसीएफ ने महाराष्ट्र की तर्ज पर राज्य में भी विलेज प्रोटेक्शन टास्क फोर्स गठित कर ग्रामीणों को जागरूक करने की जरूरत बताई।

चिंता जताई कि पर्वतीय क्षेत्रों में पर्यावरणीय क्षति के साथ वन क्षेत्रों में वन्यजीवों के आवास उजडऩे से भी हमले बढ़ रहे हैं। पीसीसीएफ ने निर्देश दिए कि मानव व पशु क्षति के मामलों में त्वरित कदम उठाएं। मुआवजा समय पर दें। जरूरत पडऩे पर जनचेतना को वन्यजीव संस्थान देहरादून से विशेषज्ञ बुलाए जाएंगे। पीसीसीएफ ने कहा, वर्षभर की कार्ययोजना बनाएं। टकराव रोकने को अभियान चला विद्यार्थियों, ग्रामीणों, सरपंचों व प्रशासन की सहभागिता बढ़ाएं।

क्या है लिव विद लेपर्ड

कोरोनाकाल में जैसे वायरस के साथ जीने की आदत डालने की विशेषज्ञ सलाह दी गई। इसी तरह मानव एवं वन्य जीव के बीच लंबे संघर्षों ने तय कर दिया है कि अब हमें वन्यजीवों के साथ जीना होगा। पारिस्थितिकी में तराई क्षेत्रों में बाघों व पर्वतीय भूभाग में गुलदारों के महत्व को स्थापित करते हुए प्रमुख वन संरक्षक राजीव भरतरी ने साफ किया कि जनसामान्य को वन्यजीवों के प्रकृति में वजूद को समझना होगा। यह मानना होगा कि मानव यदि उसकी मांद या जीवन में हस्तक्षेप न करे तो वह अन्य जीवों की तरह इंसानी जीवन के लिए चिंता का सबब नहीं बनेगा।

ऐसे होगा सहगमन

- वन क्षेत्रों को आग न लगाएं। अवैज्ञानिक दोहन या अनियोजित विकास से बचा जाय।

- गुलदारों के प्राकृतिक आवासों में मानवीय दखल न हो।

- प्रकृति ने मानव व वन्यजीवों को जो प्राकृतिक कॉरिडोर मुहैया कराए हैं, उनका ईमानदारी से पालन हो। मसलन पहाड़ में गुलदार व तराई भाबर क्षेत्र में टाइगर के पारंपरिक मार्गों पर अनावश्यक अतिक्रमण न किया जाय। पिंजड़ों यानी लैपर्ड और टाइगर जू के बजाय खुले वनों में बाघ या गुलदार संरक्षण हो।

अल्मोड़ा का अलग तैयार होगा डेटाबेस

अल्मोड़ा नगर क्षेत्र में गुलदारों की धमक पर भी वनाधिकारी गंभीर दिखे। यहां नए सिरे से अध्ययन कर गुलदारों के वास्तविक आंकड़े जुटाने का निर्णय लिया गया। इस दौरान सीसीएफ डा. तेजस्विनी पाटिल, वन संरक्षक दक्षिणी कुमाऊं कुबेर सिंह बिष्टï उत्तरी के प्रवीण कुमार शर्मा, डीएफओ अल्मोड़ा महातिम सिंह यादव, हिमांशु बागड़ी बागेश्वर, विनय भार्गव पिथौरागढ़, शिकारी सैफी आसिफ, हरीश धामी आदि मौजूद रहे।

ताड़ीखेत में मॉडल हाइटेक क्रू स्टेशन तैयार

साल दर साल विकट होती जा रही वनाग्नि की घटनाओं से निपटने को पीसीसीएफ राजीव भरतरी ने अभिनव प्रयोग किया है। जिले में तीन मॉडल हाइटेक क्रू स्टेशन ताड़ीखेत के साथ ही चंथरिया (द्वाराहाट) व अयारपानी (बिनसर अभयारण्य अल्मोड़ा) काम करेंगे। सामान्य स्टेशन में चार जबकि मॉडल क्रू में वॉकीटॉकी से लैस तेजतर्रार 16 वन कर्मी मुस्तैद रहेंगे। शुक्रवार को पीसीसीएफ ताड़ीखेत के मॉडल क्रू स्टेशन का जायजा भी लिया।