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    Indo China War 60 Year : अब चीन तक सीधी पहुंच, दगाबाजी की तो देखेगा नए भारत का 'दम'

    do China War 60 Year चीन से युद्ध के आज 60 साल पूरे हो गए। तब से अब तक भारत ने लंबा सफर कर लिया है। सीमा तक देश की पहुंच बनी है। सैन्य और संशाधन की दृष्टि से भारत काफी समृद्ध हो गया है।

    By Skand ShuklaEdited By: Updated: Thu, 20 Oct 2022 02:49 PM (IST)
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    Indo China War 60 Year : अब चीन तक सीधी पहुंच, दगाबाजी की तो देखेगा नए भारत का 'दम'

    अभिषेक राज, हल्द्वानी : Indo China War 60 Year : चीन से युद्ध के आज 60 साल पूरे हो गए। तब से लेकर अब तक काफी कुछ बदला। देश बदला। नेतृत्व में भी परिवर्तन हुआ। हम सामरिक रूप से मजबूत हुए। सीमाएं सुरक्षित हुईं। ऐसे में जिस चीन ने 20 अक्टूबर 1962 में दगाबाजी की अब तो उसकी सीमा तक हमने भी सीधी सड़क तैयार कर ली। अब अगर चीन ने हिमाकत की तो हमारा दम देखेगा। वैसे भी चालबाज चीन तब भी कुमाऊं की तरफ बढ़ने की हिम्मत नहीं जुटा सका था।

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    Indo China War 1962 : इसके लिए भले ही भौगोलिक परिस्थितियां जिम्मेदार हों लेकिन कुमाऊं के वीरों का अदम्य साहस ही चीनियों को सकते में डालने के लिए पर्याप्त रहा। पिथौरागढ़ का लिपुलेख दर्रा ही तिब्बत व चीन आने-जाने का सहज मार्ग है। यही कारण है कि यहां चीन लंबे समय से सामरिक मजबूती बढ़ाने में जुटा है। अब हमने भी लिपुलेख तक सड़क तैयार कर ली है। दारमा और जोहार में भी चीन से सटे सड़क पहुंचा दी है। अब 1962 जैसी 95 किमी पैदल चलने की लाचारी नहीं है।

    तब जिन ग्रामीणों ने पीठ पर गोला, बारूद ढोकर सीमा तक पहुंचाया था आज उनकी युवा पीढ़ी पूर्वजों का गुणगान करते नहीं थकती। इसका आभास चीन को भी है। इसके इतर टनकपुर से पिथौरागढ़ तक आलवेदर रोड, पिथौरागढ़ से तवाघाट तक एनएच, तवाघाट से लिपुलेख तक 12 मीटर चौड़ी सड़क की तैयारी हमें चीन सीमा पर और मजबूत बना रही है।

    हां, मजबूत हैं हम

    गर्बाधार-लिपुलेख मार्ग से चीन सीमा तक हमारी सीधी पहुंच हो गई। चंपावत जिले के टनकपुर से पिथौरागढ़ तक आलवेदर रोड बनकर तैयार है। भारतमाला परियोजना के तहत मुनस्यारी के मिलम से दुंग, टोपीधुरा होते हुए हिमाचल से लगे उत्तराखंड के चमोली जिले तक प्रस्तावित 76 किमी लंबी सामरिक सड़क की मंजूरी मिल गई है।

    यह पिथौरागढ़ और चमोली से लगती चीन सीमा के समानांतर तैयार होगी। इससे सीमा पर तैनात सैन्यबलों को बड़ी सहूलियत होगी। गश्त में भी आसानी होगी। आपात स्थिति में सभी संसाधन आसानी से चीन सीमा तक पहुंचाए जा सकते हैं।

    मोदी सरकार के सात साल में बदली तस्वीर

    • गर्बाधार-लिपुलेख मार्ग : चीन सीमा तक सीधी पहुंच हुई।
    • मिलम-चमोली मार्ग : पिथौरागढ़ से हिमाचल तक चीन सीमा के समानांतर सड़क की योजना मंजूर
    • पुल से पहुंच : चीन से जुड़ी सीमा पर सामरिक रूप से पांच पुलों का निर्माण पूरा
    • कालापानी : सुरक्षा पुख्ता की गई और गश्त भी बढ़ी

    माइग्रेशन में भी आसानी

    चमोली-पिथौरागढ़ मार्ग के निर्माण से उच्च हिमालयी गांवों से शीतकाल में होने वाला माइग्रेशन (अस्थायी विस्थापन) भी कम होगा। पर्यटन के द्वार खुलेंगे। बदरीनाथ तक की यात्रा सुगम होगी।

    नेपाल से सीधे जुड़ा सीमांत

    राष्ट्रीय सुरक्षा के मामले में संवेदनशील पिथौरागढ़ की नेपाल से सीधे संपर्क की उम्मीद परवान चढ़ी। जनवरी 2022 में भारत-नेपाल के मध्य काली नदी पर पहले मोटर पुल के निर्माण की मंजूरी मिली और सितंबर में इसका शिलान्यास हुआ है|

    आबाद हुआ दारमा गांव

    चीन सीमा को जोड़ने वाले सोबला- दारमा मार्ग का काम केंद्रीय लोक निर्माण विभाग ने वर्ष 2000 में पूरा कर लिया। इससे अब साल के छह माह तक चीन से सटा दारमा गांव आबाद रहता है।

    टनल से टक्कर

    चीन से लगी सीमा पर भारत में अभी तक समानांतर सड़क नहीं है। मात्र 26 किमी सड़क गुंजी से ज्योलिंगकोंग (आदि कैलास) तक वर्ष 2021 में बनी है। इस संबंध में चार वर्ष पूर्व भारत सरकार ने आइटीबीपी से सुझाव मांगा था। आइटीबीपी बरेली रेंज के तत्कालीन डीआइजी एपीएस निंबाडिया ने ज्योलिंगकोंग से टनल बना कर दारमा के विदांग व रामा को जोड़ने व दारमा के अंतिम गांव सीपू होकर दुंग तक सड़क निर्माण का सुझाव दिया था। इससे चीन सीमा से लगी तीनों घाटियां दारमा, व्यास व चौदास सड़क मार्ग से आपस में जुड़ जाएंगी।

    आंखों देखी

    मंगल सिंह गुंज्याल, गुंजी गांव के वयोवृद्ध व्यापारी ने बताया कि बात 23 मई 1951 की है। चीन ने देखते ही देखते तिब्बत पर कब्जा कर लिया। उस दिन मैं साथियों के साथ वहां की तकलाकोट मंडी में ही था। तब चीनी अधिकारियों ने हमें भारत जाने का आदेश दिया। हम लिपुलेख से कालापानी तक बर्फ में लोटते हुए ही पहुंचे। यहां सभी को चीन की करतूत की जानकारी दी।

    दीवान सिंह गुंज्याल, गुंजी गांव के वयोवृद्ध ने बताया कि धारचूला तो दूर डीडीहाट तक भी सड़क नहीं थी। सेना को सीमा तक पहुंचना था। ऐसे में सीमांत के ग्रामीण सेना का सहयोग कर देश के लिए मर मिटने को तैयार थे। हमने पीठपर लादकर सीमा तक गोला-बारूद व खाद्यान्न भी पहुंचाया। ग्रामीण मोर्चे पर भी जाने के लिए तैयार थे।

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