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नैनीताल में ही है एशिया की सबसे बड़ी दूरबीन, एक जगह पर घूमकर कराती है पूरे ब्रह्मांड का दर्शन

Nainital News 3.6 व्यास मीटर का देवस्थल ऑप्टिकल टेलीस्कोप (DOT) को भारत बेल्जियम के साझा प्रयास से बनाया गया है। रशियन एकेडमी ऑफ साइंसेस ने भी इसमें मदद की थी। मकसद है तारों की संरचनाओं और उनके चुंबकीय क्षेत्र की संरचनाओं का अध्ययन करना।

By Rajesh VermaEdited By: Published: Mon, 17 Oct 2022 03:57 PM (IST)Updated: Mon, 17 Oct 2022 03:57 PM (IST)
NNainital news: यह टेलीस्कोप देवस्थल में स्थापित है।

राजेश वर्मा, नैनीताल। आर्यभट्ट प्रेक्षण विज्ञान शोध संस्थान (ARIES) आज अपने 104 सेमी व्यास वाले संपूर्णानंद ऑप्टिकल टेलीस्कोप की गोल्डेन जुबली यानी 50वीं सालगिरह मना रहा है। इस दूरबीन की मदद से एरीज ने ब्रह्मांड के कई गूढ़ रहस्यों से पर्दा उठाने में सफलता हासिल की है। मगर एरीज के पास केवल यही नहीं, और भी कई ऐसे टेलीस्कोप यानी दूरबीन हैं, जिनकी मदद से इसने से पूरी दुनिया में अलग पहचान बना ली है। ऐसा ही एक टेलीस्कोप है 3.6 मीटर व्यास का देवस्थल ऑप्टिकल टेलीस्कोप (DOT) ।

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2016 में हुआ था उद्घाटन

यह टेलीस्कोप एशिया का सबसे बड़ा टेलीस्कोप है, जिसका उद्घाटन 30 मार्च 2016 को प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और बेल्जियम के प्रधानमंत्री चार्ल्स माइकल ने एक साथ रिमोट के जरिए किया था। इस टेलीस्कोप के निर्माण की प्रक्रिया 1998 में शुरू हुई थी, जिससे बनकर स्थापित होने में 18 साल लग गए। यह टेलीस्कोप देवस्थल में स्थापित है। इसी जगह की नाम की वजह से ही इस दूरबीन का नाम भी पड़ा है। इससे पहले तमिलनाडु के कवालुर में स्थित वेणु बाप्पू वेधशाला में लगा टेलीस्कोप एशिया का सबसे बड़ा टेलीस्कोप था।

इसलिए बनाया गया यह टेलीस्कोप

DOT को भारत बेल्जियम के साझा प्रयास से बनाया गया है। रशियन एकेडमी ऑफ साइंसेस ने भी इसमें मदद की थी। मकसद है तारों की संरचनाओं और उनके चुंबकीय क्षेत्र की संरचनाओं का अध्ययन करना। भारत ने इस टेलीस्कोप को बनाने और इसमें लेंस लागने के लिए 2007 में बेल्जियम की कंपनी AMOS (Advanced Mechanical and Optical Systems) का सहयोग लिया था।

ऐसे करता है काम

इस टेलीस्कोप में 3.6 मीटर चौड़ा एक लेंस लगा है। जिसकी मदद से यह टेलीस्कोप अपने देखने वाले क्षेत्र से प्रकाश एकत्र करता और उसे 0.9 मीटर के सेकेंडरी लेंस पर फोकस कर देता है। वहां से यह विश्लेषण के लिए तीन अलग- अलग डिटेक्टरों पर मोड़ दिया जाता है। ये तीन डिटेक्टर हाई रेजोल्यूशन वाला स्पेक्ट्रोग्राफ, नीयर इंफ्रारेज इमेजिंग कैमरा औ लो रेजोल्यूशन वाला स्पेक्ट्रोस्कोपिक कैमरा हैं। इनकी मदद से एरीज के विज्ञानी तारों और तारा समूहों के भौतिक और रसायनिक गुणों, ब्लैक होल्स जैसे स्रोतों से निकलने वाले उच्च ऊर्जा विकिरण और एक्सो ग्रहों के बनने और उनके गुणों को समझकर ब्रह्मांड में होने वाली घटनाओं का अध्ययन करते हैं।

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इसलिए है महत्वपूर्ण

समुद्र सतह से करीब 2,500 मीटर की ऊंचाई पर एवं आसपास चार-पांच किमी के हवाई दायरे में कोई प्रकाश प्रदूषण न होने की वजह से भी डॉट न केवल देश, बल्कि दुनिया के खगोल वैज्ञानिकों के लिए भी महत्वपूर्ण मानी जा रही है। देवस्थल से प्राप्त ब्रह्मांड के चित्र यहां के दिन में नीले और रात्रि में गाढ़े अंधेरे (आसपास रोशनी न होने के कारण) के कारण इतने साफ और सटीक हैं कि देवस्थल सीधे ही दुनिया के सर्वश्रेष्ठ खगोल वैज्ञानिक केंद्रों में शामिल हो गया है। इस कारण बेल्जियम सहित दुनिया के अन्य देश तथा भारत के TIFR, आयुका व IIA बंगलुरु आदि बड़े संस्थान भी यहां अपने उपकरण लगा रहे हैं।

पहले वाराणसी में थी यह वेधशाला

आर्यभट्ट प्रेक्षण विज्ञान शोध संस्थान यानी एरीज की स्थापना की कहानी भी रोचक है। उत्तराखंड बनने से पहले यह राज्यस्तरीय वेधशाला थी, जिसे उतर प्रदेश राजकीय वेधशाला का नाम मिला था।

  • इसकी स्थापना वाराणसी के राजकीय संस्कृत कॉलेज परिसर (अब संपूर्णानंद संस्कृत विवि) में 20 अप्रैल 1954 को की गई थी।
  • वहां से वर्ष 1955 में इसे साफ और प्रदूषण रहित वातावरण के चलते नैनीताल में स्थानांतरित कर दिया गया था।
  • 1961 में इसे वर्तमान स्थल मनोरा पीक में स्थापित किया गया।
  • वर्ष 2000 में उतराखंड की स्थापना के साथ यह उतराखंड राज्य का संस्थान बन गया।
  • फिर पूर्व केंद्रीय विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी मंत्री बची सिंह रावत के प्रयासों से इसे 22 मार्च 2004 को यह एरीज के रूप में केंद्रीय संस्थान बना।

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