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    200 साल से घराट को संरक्षित रखे हैं बौगाड़ के ग्रामीण, बारिश के बाद करते हैं संचालित

    By Skand ShuklaEdited By:
    Updated: Sun, 11 Oct 2020 07:06 PM (IST)

    बौगाड़ गांव के लोग 200 वर्ष पूर्व स्थापित घराट का संचालन कर सामूहिकता की मिसाल पेश कर रहे हैं। पिथौरागढ़ जिले के थल कस्बे से 20 किलोमीटर दूर स्थित इस गांव में घराट की स्थापना की गई थी।

    बौगाड़ गांव के लोग 200 वर्ष पूर्व स्थापित घराट का संचालन कर सामूहिकता की मिसाल पेश कर रहे हैं।

    पिथौरागढ़, जेएनएन : उदारीकरण के इस दौर में जब लाेग अपने में ही सिमटते जा रहे हैं तब ऐसे में बौगाड़ जैसे गांवों के लोग 200 वर्ष पूर्व स्थापित घराट का संचालन कर सामूहिकता की मिसाल पेश कर रहे हैं। पिथौरागढ़ जिले के थल कस्बे से 20 किलोमीटर दूर स्थित इस गांव में घराट की स्थापना की गई थी। गांव के लोगों ने हजारों कुंतल भार के घराट के पाट गांव तक पहुंचाए। गांव की वर्तमान पीढ़ी अपनी इस धरोहर को आज भी जीवित रखे हुए है।

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    गांव के लोग हर वर्ष बरसात के बाद इस घराट का संचालन शुरू करते हैं, इसके लिए नहरों की मरम्मत से लेकर घराट तक पानी पहुंचाने का काम सामूहिक रूप से ही किया जाता है। आठ किलोमीटर दूर स्थित गधेरे से पानी घराट तक पहुंचाया जाता है। सरकार से कोई मदद इस काम के लिए नहीं ली जाती है। गाड़-गधेरों में पानी कम होने तक घराट का संचालन होता है। गांव में रहने वाले 250 परिवार अपने वर्ष भर की उपभोग के लिए गेहूं, मड़वा सहित तमाम अन्न की पिसाई घराट से ही कर लेते हैं।

     

    गांव के लोगों को मशीनों में तैयार आटे में वो स्वाद नहीं मिलता जो घराट में तैयार आटे से मिलता है। गांव के लोग मशीनों से तैयार आटे का उपयोग नहीं करते हैं। ग्रामीणों का कहना है कि सुख सुविधाओं के इस दौर में घराट एक ऐसा माध्यम है जो उन्हें आपस में जोड़े रखने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। ग्रामीण इस बात से खासे आहत हैं कि सरकार ने घराटों को पुनर्जीवित करने की तमाम घोषणाएं की, लेकिन एक भी घोषणा धरातल में नही उतर सकी। आस-पास के कई गांवों में चलने वाले घराट अब बंद हो गए हैं।

     

    घराट समिति बौगाड़ के अध्यक्ष नंदन सिंह कार्की ने बताया कि गांव का घराट केवल अनाज की पिसाई का ही माध्यम नहीं है, बल्कि यह हमारी 200 वर्ष पुरानी धरोहर है। इसके जरिए गांव न केवल एकसूत्र में बंधा रहता है, बल्कि इससे हमें अपने पुरखों की विरासत को सहेजने का भी अवसर मिलता है। जब तक संभव होगा ग्रामीण इस घराट का संचालन अपने स्तर से करते रहेंगे।

     

    समय के साथ लुप्त हाे रही है परंपरा

    किसी समय आटा पीसने का एकमात्र साधन घराट ही होते थे। अब इक्का-दुक्का लोग ही घराट में आते हैं। हालांकि, अब इन्हें चलाने में भी संचालकों को परेशानियों का सामना करना पड़ रहा है। समय के अभाव में इस परंपरा को लोग भी भूलते जा रहे हैं। कभी घराटों के बाहर लोगों की कतारें लगती थीं। घराट बिना बिजली के चलते हैं और इनमें तैयार होने वाला आटा स्वास्थ्य के लिए भी लाभदायक होता है। गाड़-गधेरे के पानी से चलने वाले घराट पानी की के फोर्स से चलते हैं। यह आम तौर पर डेढ़ मंजिला घर की तरह होते हैं। ऊपर की मंजिल में बड़ी चट्टानों से काटकर बनाए पहिए लकड़ी या लोहे की फिरकियों पर पानी के वेग से घूमते हैं और चक्कियों में आटा पिसता है।

     

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