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    Uttarakhand News: दो मतदाता सूची में नाम वालों ने निर्वाचन आयोग को कानूनी पचड़े में फंसाया, अग्निपरीक्षा आज

    Updated: Mon, 14 Jul 2025 12:45 PM (IST)

    उत्तराखंड में पंचायत चुनाव प्रक्रिया के बीच दो मतदाता सूचियों में नाम वाले प्रत्याशियों के कारण राज्य निर्वाचन आयोग कानूनी विवादों में फंस गया है। हाईकोर्ट ने नामांकन प्रक्रिया पर रोक लगा दी है क्योंकि याचिकाकर्ता ने इसे लोकतांत्रिक सिद्धांतों का उल्लंघन बताया है। अब आयोग को कानूनी लड़ाई लड़नी पड़ रही है जिससे चुनाव चिह्न आवंटन में बाधा आ सकती है।

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    दो मतदाता सूची में नाम वालों ने निर्वाचन आयोग को कानूनी पचड़े में फंसाया

    किशोर जोशी, नैनीताल। राज्य के 12 जिलों में त्रिस्तरीय पंचायत चुनाव प्रक्रिया में जुटे राज्य निर्वाचन आयोग को पहली बार अग्निपरीक्षा के दौर से गुजरना पड़ रहा है। राज्य के इतिहास में पहली बार जहां चुनाव अधिसूचना पर रोक लगी, फिर सरकार की सक्रियता से रोक हटी, अब बीच चुनाव प्रक्रिया में ग्रामीण व शहरी दोनों मतदाता सूची में नाम वाले मतदाताओं के प्रत्याशी बनने से आयोग बड़ी कानूनी लड़ाई में उलझ गया है। 

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    इस कानूनी पचड़ों के कारण प्रत्याशी के चुनाव चिह्न आवंटन की प्रक्रिया रुकने के आसार बन गए हैं तो दो मतदाता सूची में नाम वाले प्रत्याशी उम्मीदवारी पर तो मतदाता मताधिकार के  अधिकार में उलझ गया है। 

    एक अनुमान के अनुसार राज्य में पंचायत चुनाव की मतदाता सूचियों में दो-दो निर्वाचक नामावली में नाम वाले करीब 20 से 30 प्रतिशत मतदाता हैं और ग्राम पंचायत, ग्राम प्रधान, क्षेत्र पंचायत व  जिला पंचायत सदस्य पदों के 100 से अधिक प्रत्याशी हैं। आयोग के सर्कुलर के बाद ऐसे प्रत्याशियों के नामांकन स्वीकार हो सके हैं। हाई कोर्ट के निर्णय से पूरी प्रक्रिया पर अघोषित तौर पर ब्रेक लग गया है।

    दरअसल रुद्रप्रयाग के सामाजिक कार्यकर्ता शक्ति सिंह बर्थवाल ने जनहित याचिका दायर कर कहा कि याचिकाकर्ता राज्य निर्वाचन आयोग की ओर से प्रत्याशियों के दाखिल नामांकन पत्रों की जांच और परीक्षण करने के कर्तव्यों की  उपेक्षा को उजागर करना चाहता है।

    लोकतांत्रिक सिद्धांतों का उल्लंघन करार दिया

    उन्होंने याचिका में गढ़वाल के एक दर्जन से अधिक प्रत्याशियों तथा ऐसे मतदाताओं के नाम का उल्लेख किया है, जिनके नाम ग्राम पंचायत व शहरी स्थानीय निकाय दोनों मतदाता सूचियों में शामिल हैं। 

    उन्होंने इसे उत्तराखंड पंचायती राज अधिनियम की धारा-9 की उपधारा (6)  व( 7) के साथ ही संविधान में अंतर्निहित लोकतांत्रिक सिद्धान्तों का उल्लंघन करार दिया। यह भी कहा कि  राज्य निर्वाचन आयोग के 10 दिसंबर 2019 के सर्कुलर के आधार पर 6 जुलाई को निर्वाचन अधिकारियों को जारी दिशा निर्देश उन परिस्थितियों पर निर्णय लेने के लिए विवेक प्रदान करता है, जहां उम्मीदवारों के नाम पंचायती राज अधिनियम की धारा 9 की उपधारा 6 व 7 का उल्लंघन कर दर्शाए गए हैं। 

    यहां तक कि इस आधार पर निर्वाचन अधिकारी धारा-9 का उल्लंघन करते हुए विभिन्न मतदाता सूची में दर्ज होने वाले प्रत्याशियों को पंचायत  चुनाव में नामांकन दाखिल करने की अनुमति दे रहे हैं। यही नहीं मतदाता सूचियों की शुद्धता को कमजोर कर रहे हैं। एक व्यक्ति , एक मत के सिद्धांत का उल्लंघन कर रहे हैं। 

    जो स्थानीय प्रतिनिधित्व की अवधारणा को विकृत करता है, इसलिए कि किसी विशिष्ट भौगोलिक क्षेत्र का प्रतिनिधित्व करने वाला व्यक्ति आमतौर पर उस क्षेत्र का निवासी होता है। 73 वें संविधान संशोधन अधिनियम 1992 में संविधान के अनुच्छेद 40 में पंचायतों को जोड़ा गया। 

    जनता की शक्ति के दर्शन के रूप में शासन के विकेंद्रीकरण और पंचायतों को शक्तियों का हस्तांतरण करने की परिकल्पना करता है। ग्रामीण क्षेत्रों में शहरी मतदाताओं को प्रत्याशी को अनुमति देने से निष्ठा व प्राथमिक हित प्रभावित होते हैं, जो ग्राम पंचायत के अधिकार क्षेत्र से बाहर हैं। 

    इससे गांव का वास्तविक प्रतिनिधित्व करने की क्षमता प्रभावित होती है।यदि शहरी क्षेत्र के मतदाता प्रत्याशी की भौतिक उपस्थिति कहीं और होगी तो कोई ग्राम सभा के प्रति वास्तव में कैसे जवाबदेह हो सकता है।

    आयोग दूसरी बार न्याय के कठघरे में 

    पहले कार्यकाल पूरा होने के छह माह तक प्रशासकों के हवाले, फिर दो माह तक नेतृत्व विहीन के बाद चुनाव की अधिसूचना जारी हुई तो आरक्षण नियमावली के उल्लंघन पर कोर्ट ने रोक लगा दी,  जो सरकार की सक्रियता के बाद हट सकी।

    अब आधी चुनाव प्रक्रिया के बाद फिर से रोक लग गई। जिससे आयोग को बड़ी कानूनी परीक्षा देने के लिए न्याय के मंदिर में दस्तक देनी पड़ी है। अब यदि सोमवार को रोक नहीं हटी तो राज्य में फिर से संवैधानिक संकट की स्थिति पैदा हो सकती है। 

    कोर्ट के निर्णय से  दो-दो मतदाता सूची में नाम वाले प्रत्याशियों की रातों की नींद हराम हो गई है। हाईकोर्ट में याचिकाकर्ता की ओर से कानूनी कड़ाई लड़ रहे युवा अधिवक्ता अभिजय नेगी के अनुसार निर्वाचन आयोग की ओर से अधिनियम का उल्लंघन किया गया, इसलिए कोर्ट ने रोक लगाई।

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