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    उत्तराखंड में लिव-इन रिलेशनशिप का रजिस्‍ट्रेशन अब आसान, UCC नियमों में होने जा रहा संशोधन

    Updated: Thu, 16 Oct 2025 03:16 PM (IST)

    उत्तराखंड सरकार समान नागरिक संहिता (UCC) के नियमों में बदलाव करने जा रही है, जिसका मुख्य उद्देश्य लिव-इन रिलेशनशिप रजिस्ट्रेशन प्रक्रिया को सरल बनाना है। सरकार वर्तमान प्रक्रिया की कमियों को दूर करके युवाओं के लिए रजिस्ट्रेशन को आसान बनाना चाहती है, ताकि अधिक से अधिक जोड़े रजिस्ट्रेशन करा सकें और सरकार के पास सही आंकड़े उपलब्ध हों।

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    हाईकोर्ट में पेश शपथपत्र में किया उल्लेख। प्रतीकात्‍मक

    जागरण संवाददाता, नैनीताल। उत्तराखंड में लागू समान नागरिक संहिता के मामले में राज्य सरकार ने हाई कोर्ट में शपथपत्र दाखिल कर साफ किया है कि यूसीसी नियमावली के प्रविधानों में संशोधन किया जा रहा है।

    महाधिवक्ता एसएन बाबुलकर की ओर से पेश 78 पेज के शपथपत्र में कहा गया है संशोधनों में रजिस्ट्रार की ओर से लिव-इन रिलेशनशिप संबंधी बयान को खारिज करने के निर्णय को चुनौती देने के लिए आवेदकों के लिए उपलब्ध समय को अस्वीकृति आदेश प्राप्त होने की तिथि को 30 दिन से बढ़ाकर 45 दिन करने का प्रस्ताव है।

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    रीति-रिवाजों और प्रथाओं के आधार पर पंजीकरण अस्वीकार करने संबंधी प्रस्तावित प्रविधानों को कड़ा कर दिया गया है, विशेष रूप से इन्कार करने की शक्ति को संहिता के प्रत्यक्ष उल्लंघन से जोड़ा गया है। मूल प्रावधान के अनुसार, 'यदि रजिस्ट्रार इस निष्कर्ष पर पहुंचता है कि रीति-रिवाज और प्रथाएं पंजीकृत व्यक्तियों के बीच विवाह की अनुमति नहीं देती हैं, तो वह लिव-इन संबंध को पंजीकृत करने से इनकार कर दिया जाएगा।

    अब, प्रस्तावित संशोधन के अनुसार, 'यदि रजिस्ट्रार इस निष्कर्ष पर पहुंचता है कि रीति-रिवाज और प्रथा पंजीकृत व्यक्तियों के बीच विवाह की अनुमति नहीं देती हैं, तो वह लिव-इन संबंध को पंजीकृत करने से इन्कार कर देगा, यदि यह संहिता की धारा 380 का उल्लंघन पाया जाता है।

    धारा-380 उन शर्तों को सूचीबद्ध करती है ,जिनके तहत लिव-इन संबंध पंजीकृत नहीं किया जा सकता है। यदि साथी 'निषिद्ध स्तर के संबंध' में हैं, यदि एक या दोनों पहले से ही विवाहित हैं या किसी अन्य लिव-इन संबंध में हैं, या यदि कोई नाबालिग है।

    शपथपत्र में लिव-इन रिलेशनशिप पंजीकरण और समाप्ति की प्रक्रिया को बेहतर बनाने, पुलिस के साथ सूचना साझा करने पर अधिक स्पष्टता लाने और अस्वीकृत आवेदनों के लिए अपील की अवधि बढ़ाने पर केंद्रित हैं। लिव-इन रिलेशनशिप पंजीकरण और पुलिस सूचना साझाकरण नियमों के तहत, संशोधित नियम रजिस्ट्रार और स्थानीय पुलिस के बीच सूचना साझा करने के दायरे को सीमित करता है, यह स्पष्ट करते हुए कि यह 'केवल रिकॉर्ड रखने के उद्देश्य' से है।

    लिव-इन रिलेशनशिप की समाप्ति की सूचना साझा करने के नियमों में, पंजीकरण प्रक्रिया की तरह ही, पुलिस के साथ समाप्ति विवरण साझा करने का स्पष्ट प्रावधान 'केवल रिकॉर्ड रखने के उद्देश्य से' किया गया है। मूल प्रावधान के अनुसार, रजिस्ट्रार लिव-इन रिलेशनशिप की समाप्ति का विवरण प्राप्त होने पर, 'इसे स्थानीय पुलिस थाने के प्रभारी अधिकारी के साथ साझा करेगा।

    प्रस्तावित संशोधनों में विभिन्न पंजीकरण और घोषणा प्रक्रियाओं में पहचान के प्रमाण के रूप में आधार कार्ड के अनिवार्य उपयोग से संबंधित परिवर्तन भी शामिल हैं। इन परिवर्तनों का मुख्य उद्देश्य उन मामलों में वैकल्पिक पहचान दस्तावेजों (पहचान प्रमाण) की अनुमति देकर लचीलापन लाना है। जहां मूल नियमों में आधार संख्या अनिवार्य थी, विशेष रूप से उन व्यक्तियों के लिए जो प्राथमिक आवेदक नहीं हैं।

    राज्य सरकार ने एक और संशोधन का भी प्रस्ताव किया है, जिसके अनुसार रजिस्ट्रार स्थानीय पुलिस थाने के प्रभारी अधिकारी और जिला पुलिस अधीक्षक की यह जिम्मेदारी होगी कि वह इसमें निहित सूचना (लिव-इन आवेदकों के संबंध में) की गोपनीयता सुनश्चिति करेंगे।