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    उपनल कर्मियों के वेतन पर हाईकोर्ट सख्त, सरकार को दिया अंतिम मौका; कहा- 'टालमटोल स्वीकार नहीं'

    Updated: Thu, 20 Nov 2025 07:07 PM (IST)

    नैनीताल हाईकोर्ट ने उपनल संविदा कर्मचारी संघ की याचिका पर सुनवाई करते हुए न्यूनतम वेतनमान लागू करने में देरी पर नाराजगी जताई। सरकार ने समान वेतन देने का आश्वासन दिया, लेकिन कोर्ट ने आदेश के अनुपालन में टालमटोल न करने की चेतावनी दी। कोर्ट ने कर्मचारियों के सड़क पर प्रदर्शन पर भी नाराजगी जताई और सरकार से 12 फरवरी तक अनुपालन रिपोर्ट पेश करने को कहा।

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    हाई कोर्ट ने कहा-न्यूनतम वेतनमान लागू करने के संबंध में टालमटोल स्वीकार नहीं

    जागरण संवाददाता, नैनीताल। हाई कोर्ट में उत्तराखंड उपनल संविदा कर्मचारी संघ की ओर से अवमानना याचिका की सुनवाई की। इस दौरान राज्य सरकार ने बताया कि कोर्ट के आदेश के अनुपालन में कर्मचारियों को समान कार्य के लिए समान वेतन जल्द दिया जाएगा जबकि दिसंबर माह से न्यूनतम वेतन लागू करने के संबंध में कोर्ट ने स्पष्ट किया कि कोर्ट के आदेश पर किसी भी प्रकार का विलंब या टालमटोल स्वीकार्य नहीं होगा ।

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    इस अवमानना याचिका में मुख्य सचिव आनंद वर्धन को प्रतिवादी बनाया गया है, इस दौरान सरकार की ओर से मुख्य स्थायी अधिवक्ता चंद्रशेखर रावत ने काेर्ट को बताया कि एक ओर न्यायालय में अवमानना वाद विचाराधीन है, तो दूसरी ओर कुछ कर्मचारी संघ की ओर से सड़क पर अराजक गतिविधियों को अंजाम दिया जा रहा है, इस पर कोर्ट ने सख्त नाराजगी जताते हुए कहा कि ऐसी गतिविधियां कानून की दृष्टि में उचित नहीं हैं, कोर्ट ने राज्य को इस प्रकार की परिस्थितियों पर नियंत्रण रखने को कहा। काेर्ट ने साफ किया कि या तो उपनल कर्मचारी न्यायालय के साथ ही सड़क की लड़ाई नहीं लड़ सकते।

    न्यायाधीश न्यायमूर्ति रवींद्र मैठाणी की एकलपीठ ने उपनल संविदा कर्मियों को न्यूनतम वेतन देने के निर्देश के अनुपालन के लिए राज्य की ओर से कैबिनेट की कमेटी गठन की जानकारी देने पर स्पष्ट किया कि आदेश का प्रत्यक्ष व प्रभावी अनुपालन सुनिश्चित किया जाए।

    एकलपीठ ने सर्वोच्च न्यायालय के आदेश के अनुपालन की स्थिति रिपोर्ट प्रस्तुत करने हेतु 12 फरवरी की तिथि निर्धारित की है। राज्य में 20 हजार से अधिक अधिक उपनल कर्मचारी हैं। उनको न्यूनतम वेतनमान देने, समान कार्य के लिए समान वेतन देने तथा विनियमितीकरण करने को लेकर हाई कोर्ट से 2018 में आदेश पारित हो चुका है, इसके बाद मामला सुप्रीम कोर्ट पहुंचा तो वहां भी राज्य सरकार की एसएलपी खारिज हो गई, इसके बाद हाई कोट में अवमानना याचिका दायर की गई थी।