Trending

    Move to Jagran APP
    pixelcheck
    विज्ञापन हटाएं सिर्फ खबर पढ़ें

    घुघुते की माला ने ही बचाई राजा व उनके पुत्र की जान, जानिए लोकपर्व घुघुतिया की पूरी कहानी

    मकर संक्रांति पूरे देश में मनाया जाता है। बस इसके नाम में बदलाव होता है। पोंगल खिचड़ी से लेकर घुघुतिया तक। कुमाऊं में मकर संक्रांति को मनाये जाने वाले घुघुतिया त्योहार का विशेष महत्त्व है। उत्तराखंड में यह त्योहार अलग ही पहचान रखता है।

    By Prashant MishraEdited By: Updated: Sat, 15 Jan 2022 09:15 AM (IST)
    Hero Image
    इस त्योहार की कथा मुख्यतः कौवा और घुघुतिया राजा पर केंद्रित है।

    जागरण संवाददाता, बागेश्वर : कुमाऊं में मकर संक्रांति को मनाये जाने वाले ' घुघुतिया ' त्योहार का विशेष महत्त्व है।उत्तराखंड में यह त्योहार अलग ही पहचान रखता है। इस त्योहार की कथा मुख्यतः कौवा और घुघुतिया राजा पर केंद्रित है।

    विज्ञापन हटाएं सिर्फ खबर पढ़ें

    प्राचीन काल की बात है। कुमाऊं में चंद वंश का शासन था। राजा कल्याण चंद निःसन्तान थे। राजा ने बागेश्वर जाकर भगवान बागनाथ की पूजा की और मकर संक्रांति के दिन उन्हें पुत्ररत्न की प्राप्ति हुई। उसका नाम निर्भयचंद रखा गया।लेकिन उसकी मां उसे प्यार से घुघुती कहकर पुकारती थी। घुघुती के गले में एक मोतियों की माला थी। माला को देखकर घुघुती खुश रहता था। जब वह रोता तो उसकी मां उसे चुप कराने के लिए कहती थी ' काले कौवा काले, घुघुती की माला खाले ' घुघुती की मां की आवाज सुनकर इधर-उधर से कौवे का जाते और उसकी मां उन्हें पकवान देती। धीरे-धीरे कौवा और घुघुती एक दूसरे का मनोरंजन करने लगे। राजा के दरबार मे एक मंत्री घुघुती को मारना चाहता था, क्योंकि राजा की कोई दूसरी संतान नहीं थी।

    एक दिन राजा का मंत्री घुघुती को उठाकर दूर जंगल में ले गया। तभी उसके चारों ओर कौवे मंडराने लगे। कौवे घुघुती के गले की माला छीनकर राजमहल की ओर लाए। सब समझ गए कि घुघुती की जान खतरे में है। राजा तथा उसके अन्य मंत्री जंगल की ओर दौड़े। एक पेड़ के नीचे घुघुती अचेत पड़ा था। इस प्रकार कौवों ने घुघुती की जान बचाई और मंत्री को कठोर दंड दिया गया। तभी से मकर संक्रांति को लोग आटे के डिकरे बनाते और कौवों को खिलाते।

    दूसरी मान्यता के अनुसार प्राचीन काल में घुघुतिया नाम का एक राजा था। वह ज्योतिषियों में विश्वास करता था।एक दिन उसने अपनी मृत्यु के बारे में जानना चाहा। पहले तो सभी राजा के विचार को टालते रहे। लेकिन राजा की जिद पर आखिरकार ज्योतिषियों ने ग्रह नक्षत्रों की स्थिति को देखकर बताया कि मकर संक्रांति को कौवे के चोंच मारने से राजा की मृत्यु होगी। सभी इससे चिंतित रहने लगे।तब एक विचार आया कि मकर संक्रांति को आटे के डिकरे बनाकर कौवों को खिलाए जाएं और दिनभर कौवों को व्यस्त रखा जाय ताकि राजमहल की ओर कोई कौवा नहीं आ पाए।सभी ने आटे के पकवान घुघुते बनाए और बच्चे प्रातःकाल से ही काले कौवा काले, घुघुती की माला खाले की आवाज लगाने लगे।कौवे दिनभर घुघुते खाने में व्यस्त रहे।महल की ओर कोई भी कौवा नहीं आया। इस प्रकार राजा की मृत्यु टल गई।तभी से यह त्योहार धूमधाम से मनाया जाता है।