दीवा बले अंधेरा जाई, वेद पाठ मति पापा खाई...गुरुद्वारा साहिब में हुआ समागम
प्रकाश पर्व जो ज्ञान का प्रतीक है। ज्ञान वह जो आत्म कल्याणकारी होने के साथ ही जन कल्याणकारी भी हो। पुरातन कथाओं ने इस पर्व को मोह के प्रतीक रावण पर मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम की विजय से जोड़कर भी देखा जाता है।
संवाद सहयोगी, बाजपुर : गुरुद्वारा साहिब में बंदी छोड़ दिवस पर दीवान सजाया गया। जिसमें निशान साहिब के समक्ष दीये जला सुख-शांति की कामना की गई। दीवान हाल में हजूरी रागी भाई हरभजन सिंह के रागी जत्थे द्वारा दीपावली व बंदी छोड़ दिवस पर शब्द गायन करते हुए कहा- दीवा बले अंधेरा जाई, वेद पाठ मति पापा खाई..., उगवै सुरू न जावै चंद, जह गियान प्रगास अगिआन मिटंत..., बंद पाठ संसार की कार पडि-पडि पंडित करे विचार..., बिन बूझे सभ होई खुआर, नानक गुरमुखी उतरस पार...। अर्थात- दीया जलने से अंधेरा छट सकता है, लेकिन गुरमति ज्ञान का आत्मसात करने से पापों का नाश हो जाता है। उन्होंने कहा कि उगता सूरज धरती को प्रकाशमान कर सकता है, लेकिन शीतलता चंद्रमा ही प्रदान करता है। ऐसी शीतलता के बीच हम सबको अमावस की काली रात की तरह छाये पापों के घनघोर अंधेरे को मिटाने के लिए मन से उजाले का दीया जलाना चाहिए जिससे जो हमारा मन अंधकार में भटक रहा है वह प्रभु के बताए मार्ग पर गतिमान हो सके।
समागम के दाैरान हजूरी ग्रंथी भाई राजेंद्र सिंह द्वारा गुरु शब्द में बंदी छोड़ दिवस की गुरुग्रंथ साहिब में दिए गए विचार की व्याख्या की गई। इस मौके पर गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी की प्रधान बीबी मनमीत कौर, हरदयाल सिंह, जसवंत सिंह, महेंद्रपाल सिंह, सेवक सिंह, रेशम सिंह, प्रगट सिंह, बाज सिंह, कर्मजीत सिंह सैनी, जगजीत सिंह, अवतार सिंह, बरयाम चौधरी, कुलवंत सिंह आदि मौजूद थे।
52 राजाओं की मुक्ति का संदेश है बंदी छोड़ दिवस
प्रकाश पर्व जो ज्ञान का प्रतीक है। ज्ञान वह जो आत्म कल्याणकारी होने के साथ ही जन कल्याणकारी भी हो। पुरातन कथाओं ने इस पर्व को मोह के प्रतीक रावण पर मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम की विजय से जोड़कर भी देखा जाता है।
भगवान श्रीराम का जीवन भी लोक कल्याण को ही समर्पित था। वे लोक कल्याण के लिए ही जीते हैं, लेकिन इसी समय भारतीय इतिहास को नया मोड़ देने वाले छठवें गुरु श्री गुरु हरगोविंद सिंह जी महाराज आज ही के दिन ग्वालियर किले से मुक्त होकर अमृतसर लौटे। उन्होंने बादशाह जहांगीर से कह कर अपने साथ ही वहां कैद 52 राजपूत राजाओं को भी मुक्त कराया था। इस खुशी में उस समय अमृतसर दीयों की रोशनी से जगमगाया था, जोकि समय परिवर्तन के साथ पूरे विश्व में यह दिन सिख पंथ द्वारा बंदी छोड़ दिवस के रूप में मनाया जाता है।
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