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अद्वैत की साधना के लिए अल्मोड़ा में स्थायी मठ बनाना चाहते थे स्वामी विवेकानंद

युग पुरुष स्वामी विवेकानंद हिमालय से बेहद प्रभावित थे। उनका मानना था कि चिंतन साधना व मठ के साथ हिमालय दर्शन के लिए अल्मोड़ा बेहतर स्थलों में से है। स्वामी का मत था कि हिमालय की ओर बढ़ता मानव मन खुद ही अध्यात्म में रम जाता है।

By Skand ShuklaEdited By: Published: Tue, 12 Jan 2021 07:34 AM (IST)Updated: Tue, 12 Jan 2021 12:27 PM (IST)
अद्वैत की साधना के लिए अल्मोड़ा में स्थायी मठ बनाना चाहते थे स्वामी विवेकानंद
अद्वैत की साधना के लिए अल्मोड़ा में स्थायी मठ बनाना चाहते थे स्वामी विवेकानंद

अल्मोड़ा, दीप सिंह बोरा : युग पुरुष स्वामी विवेकानंद हिमालय से बेहद प्रभावित थे। उनका मानना था कि चिंतन, साधना व मठ के साथ हिमालय दर्शन के लिए अल्मोड़ा बेहतर स्थलों में से है। स्वामी का मत था कि हिमालय की ओर बढ़ता मानव मन खुद ही अध्यात्म में रम जाता है। शिखर की ओर अगोचर व अनंत शक्ति के प्रति आसक्ति बढ़ जाती है। इसीलिए वह अल्मोड़ा के निर्जन में ऐसा मठ बनाना चाहते थे, जिसमें अद्वैत की शिक्षा व साधना हो सके। इसी मकसद से उन्होंने नगर के बद्रीलाल शाह 'ठुलघरिया' को 1896 में लंदन से पत्र भी लिखा था।

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उन्होंने प्रबुद्ध भारत पत्रिका का प्रकाशन भी शिक्षा के इसी गढ़ से शुरू किया। ...और युवा संत नरेंद्र अल्मोड़ा से स्वामी विवेकानंद बनकर लौटे। एकात्म मानववाद के प्रणेता स्वामी विवेकानंद के उनकी हिमालय पदयात्रा के तीन चरण कुमाऊं खासतौर पर अल्मोड़ा के लिए बेहद अहम रहे। 1890 से शुरू उनकी पदयात्रा के विभिन्न चरणों मेें युग पुरुष ने अल्मोड़ा में चिंतन व साधना तो कोसी, सिरौत व उत्तर वाहिनी शिप्रा नदी की त्रिवेणी दिव्य काकड़ीघाट को आत्मज्ञान के लिए उपयुक्त माना।

मठ के लिए लालाजी को लिखा पत्र

जुलाई 1890 में काकड़ीघट में आत्मज्ञान प्राप्त करने के बाद स्वामी विवेकानंद ने अल्मोड़ा में कसारदेवी के पास एक गुफा में अपने जीवन के चरम लक्ष्य की प्राप्ति को उग्र साधना की। विशेष शक्तिपुंज व सकारात्मक तरंगों के अनुभव लेकर लौटे। इस दौरान खजांची मोहल्ला निवासी बद्रीलाल शाह ठुलघरिया से मित्र अनुयायी बने। 21 नवंबर 1896 को उन्होंने बद्रीलाल शाह को 'डियर लालाजीÓ संबोधित करते हुए पत्र लिखा। बताया कि कैप्टन सेवियर व उनकी पत्नी समेत उनके तीन अंग्रेज शिष्य अल्मोड़ा में बस कर मठ बनाना चाह रहे। स्वामी विवेकानंद ने बद्रीलाल से ऐसी दर्शनीय पहाड़ी वाला स्थान उपलब्ध कराने का आग्रह किया, जहां से विराट हिमालय के दर्शन हो सकें। दूसरा पत्र स्वामी विवेकानंद सात अप्रैल 1897 में दार्जिलिंग से लिखा, जिसमें स्वास्थ्य की खराबी का हवाला देते हुए जल्द अल्मोड़ा पहुंचने की बात कही।

एक साल तक अल्मोड़ा से किया प्रकाशन

अल्मोड़ा की पहाडिय़ों के अभिभूत स्वामी विवेकानंद ने उस प्रेस को मद्रास से यहां शिफ्ट कर लिया, जहां से वह प्रबुद्ध भारत पत्रिका का प्रकाशन करते थे। इसके लिए उन्होंने नगर स्थित थामसन हाउस को किराए पर ले लिया। 1898 मेें पत्रिका की छपाई शुरू कर दी। पंडित स्वरूपानंद संपादक व शिष्य कैप्टन सेवियर को व्यवस्थापक बनाया। प्रकाशन में आने वाला खर्च सेवियर ही उठाते थे। मित्र अनुयायी बद्रीलाल शाह के पुत्र जवाहरलाल भी प्रेस में हाथ बंटाने लगे। इसी दौरान स्वामी विवेकानंद ने पहली बार हिंदी में वैदिक शिक्षण पर व्याख्यान भी दिया था। कविता भी यहीं गढ़ी- 'जागो फिर एक बार, आकुल विश्व तुम्हें निहार रहा...'। 

... और अधूरा ही रह गया सपना

स्वामी विवेकानंद को अल्मोड़ा क्षेत्र में वह मनचाहा स्थल नहीं मिला सका, जहां वह अपना स्थायी मठ बना सकते। एक वर्ष के बाद ही मार्च 1899 में उन्होंने थामसन हाउस से अपनी प्रेस व अस्थायी मठ मैबाट (वर्तमान मायावती) चंपावत शिफ्ट कर दिया। जो अब अद्वैत आश्रम मायावती के नाम से विख्यात है।

विवेकानंद चरित में रहस्यों का जिक्र

स्वामी विवेकानंद के विदेशी अनुयायियों ने अल्मोड़ा में कसारदेवी स्थित गुफा के रहस्यों व अनुभवों का जिक्र विवेकानंद चरित में किया है। उन्होंने लिखा है कि यहां की पहाडिय़ां चुंबकीय क्षेत्र से संपन्न हैं। यहां विशेष शक्तिपुंज है, जो व्यक्ति में सकारात्मक ऊर्जा का संचार करती है। स्वामी विवेकानंद दिन रात यहां ध्यानमग्न रहते थे। मुखमंडल अद्भुत तेज से जगमगा उठता था। ध्यानमग्न होकर ही आनंद की अनुभूति करने लगते।


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