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    सुशीला तिवारी अस्पताल में एक सप्ताह में दूसरी बार खराब हो गई एमआरआइ मशीन

    एसटीएच की एमआरआइ मशीन को 15 वर्ष से अधिक का समय हो गया है। जबकि सामान्य रूप से एक मशीन की लाइफ 10 वर्ष तक होती है। पिछले पांच वर्ष से नई मशीन खरीदने की चर्चा हो रही है। प्रस्ताव भी भेजा जा चुका है।

    By ganesh joshiEdited By: Skand ShuklaUpdated: Tue, 29 Nov 2022 09:01 AM (IST)
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    हांफने लगी 15 साल पुरानी मशीन, नई मशीन कब तक आएगी पता नहीं

    जागरण संवाददाता, हल्द्वानी : सुशीला तिवारी अस्पताल में एमआरआइ मशीन एक सप्ताह में दूसरी बार खराब हो गई है। इसकी वजह से मरीजों की मुसीबतें भी बढ़ गई हैं। सबसे अधिक परेशानी भर्ती मरीजों को झेलनी पड़ रही है। एमआरआई के लिए अब मरीजों को निजी पैथलॉजी में कई गुना अधिक खर्च करना होगा।

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    एसटीएच की एमआरआइ मशीन को 15 वर्ष से अधिक का समय हो गया है। जबकि सामान्य रूप से एक मशीन की लाइफ 10 वर्ष तक होती है। पिछले पांच वर्ष से नई मशीन खरीदने की चर्चा हो रही है। प्रस्ताव भी भेजा जा चुका है, लेकिन अभी तक नई मशीन नहीं लग सकी है। 24 नवंबर को मशीन खराब हो गई थी। दो दिन मशीन को जैसे-तैसे ठीक किया जा सका।

    चार दिन बाद सोमवार को एमआरआइ मशीन ने फिर से दगा दे दिया है। हड्डी वार्ड में भर्ती बागेश्वर के एक मरीज को एमआरआइ की सलाह दी गई थी, लेकिन अस्पताल में मशीन खराब होने की वजह से उसे निजी डायग्नोस्टिक सेंटर में जांच के लिए बाहर जाना पड़ा।

    आयुष्मान कार्ड धारक गरीब मरीज की निश्शुल्क जांच हो जाती। उसे निजी डायग्नोस्टिक सेंटर में पांच हजार रुपये से अधिक खर्च करने पड़े। राजकीय मेडिकल कालेज के प्राचार्य प्रो. अरुण जोशी ने बताया कि मशीन पुरानी होने की वजह से जल्दी खराब हो रही है। इसे जल्द ठीक कराने के लिए इंजीनियर बुला लिए गए हैं। नई मशीन के लिए भी प्रक्रिया चल रही है।

    हांप रही है एमआरआइ मशीन

    एसटीएच में 15 वर्ष पुरानी एमआरआइ मशीन (MRI) अब हांफने लगी है। पिछले कई वर्षों से छह महीने से पहले ही खराब हो जाती है, जिसे ठीक करने में दो से चार दिन तक लग जाते हैं। एकमात्र मशीन होने के चलते सबसे अधिक नुकसान गरीब मरीजों को उठाना पड़ता है।पिछले पांच साल से नई मशीन लगाने की प्रक्रिया चल रही है, लेकिन अभी तक कुछ भी नहीं हुआ।

    गौरतलब

    15 वर्ष पुरानी एमआरआइ मशीन अक्सर दे देती है धोखा

    40 मरीजों की प्रतिदिन हो जाती है एमआरआइ जांच

    45 से अधिक मरीजों की हो जाता है अल्ट्रासाउंड

    01 प्लास्टिक सर्जन ने भी दे दिया इस्तीफा

    01 रेडियोलाजिस्ट ही रेडियो डायग्नोसिस विभाग में कार्यरत

    1500 से 1800 मरीज प्रतिदिन पहुंचते हैं ओपीडी में

    500 से अधिक मरीज एक बार में रहते हैं भर्ती

    30 से अधिक मरीज बर्न के प्रतिमाह पहुंचते हैं अस्पताल

    400 डाक्टरों के सापेक्ष 180 ही कार्यरत

    320 स्टाफ नर्स के सापेक्ष 250 ही कार्यरत

    बढ़ते मरीजों की संख्या और केवल एक रेडियालाजिस्ट

    दुर्भाग्य देखिए कि पहले तीन महीने तक रेडियो डायग्नोसिस विभाग बिना रेडियोलाजिस्ट का रहा। जागरण ने इस मुद्दे को प्रभावी तरीके से उठाया। अब केवल एक रेडियाेलाजिस्ट की तैनाती है। जबकि अस्पताल में कुमाऊं के अतिरिक्त पश्चिमी उत्तर प्रदेश के मरीजाें दबाव है। ऐसे में व्यवस्था का अंदाजा लगाया जा सकता है।