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    उत्तराखंड के श्रीलंका टापू में फंसी 40 परिवारों की जिंदगी, लोग राम भरोसे

    Updated: Sat, 23 Aug 2025 01:25 PM (IST)

    उत्तराखंड के लालकुआं में स्थित श्रीलंका टापू में 40 परिवार बाढ़ और अलगाव में जीवन बिता रहे हैं। 1984 की बाढ़ ने इस क्षेत्र को अलग कर दिया और हर बरसात में यहाँ के लोगों का संपर्क बाकी दुनिया से कट जाता है। स्कूल अस्पताल और अन्य बुनियादी सुविधाओं से वंचित ग्रामीण राम भरोसे जीवन जीने को मजबूर हैं। हर साल कटाव के कारण उनके घर खतरे में हैं।

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    बरसात के तीन महीने बाढ़ व बेबसी में फंस रहती है जिदंगी. Jagran

    प्रकाश जोशी, जागरण, लालकुआं। लालकुआं से करीब 12 किलोमीटर दूर, खेतों और हरियाली के बीच बसा छोटा सा गांव श्रीलंका टापू। यहां करीब 40 परिवार रहते हैं। बारिश होते ही यह गांव बाकी दुनिया से अलग-थलग पड़ जाता है। बाढ़ और बेबसी के बीच लोगों की जिंदगी फंस जाती है।

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    स्कूल-अस्पताल से लेकर सामान्य जरूरतें पूरी कर पाना भी मुश्किल हो जाता है। 40 वर्षों से मुसीबत झेल रहे ग्रामीणों के लिए बरसात के तीन महीने कालापानी जैसी स्थिति रहती है। बाढ़ का खतरा अब आशियानों को छीनने की कगार तक पहुंच गया है। ऐसे में श्रीलंका टापू से पार पाने को छटपटाते लोग अब राम भरोसे हैं।

    आज भी डराता है 1984 का वह भयावह दिन 14 अक्टूबर 1984 को रविवार था। लोग अपने-अपने घरों में थे। बच्चे छुट्टी का आनंद ले रहे थे। तभी अचानक नदी गरज उठी। देखते ही देखते बिंदुखत्ता का एक हिस्सा पानी से कटकर अलग हो गया। लोग चीखने-चिल्लाने लगे। किसी को अपनी जान बचने की उम्मीद नहीं थी। बाद में प्रशासन ने हाथियों और हेलीकाप्टर के सहारे ग्रामीणों को बचाया था।

    बह गई कई एकड़ जमीन

    बाढ़ थमी तो लोग घरों को लौट तो आए और यह जगह हमेशा के लिए दुनिया से अलग हो गई। यही जगह धीरे-धीरे श्रीलंका टापू कहलाने लगी। 2011 की बाढ़ में स्कूल, सामुदायिक भवन और मंदिर बाढ़ में समा गए। कई एकड़ जमीन भी बह गई। प्रशासन ने तटबंध तो बनाए, लेकिन काम अधूरा छोड़ दिया। अब हर साल नदी गांव को और करीब खींच लाती है। इस बार भी कई एकड़ खेत नदी में बह गए।

    ग्रामीण कहते हैं, अब तो मकान भी खतरे में हैं। हम लोग बस भगवान के भरोसे हैं। बीमार को इलाज नहीं और बच्चों की शिक्षा भी ठप बरसात के मौसम में जहां चारों ओर हरियाली बिखर जाती है। वहीं श्रीलंका टापू के करीब 125 लोगों के सामने अंधेरा सा छाने लगता है। उनका संपर्क दुनिया से कट जाता है।

    बच्चों का स्कूल छूट जाता है। बीमार को इलाज नहीं मिल पाता। कई बार मजबूरी में ग्रामीण जान जोखिम में डालकर गौला के तेज बहाव को पार कर मरीज को अस्पताल पहुंचाते हैं। ग्रामीण मूलभूत सुविधाओं से वंचित हैं। बिजली भी नहीं है। सौर ऊर्जा के कुछ पैनल लगाए गए थे, लेकिन अब खराब हो चुके हैं।

    श्रीलंका टापू में इस बार भी भीषण भी कटाव हो रहा है। शासन- प्रशासन सुध नहीं ले रहा है लेकिन विपक्ष भी पूरी तरह से चुप्पी साधे हुए है। जिस कारण हम लोग राम भरोसे जी रहे हैं। - धरम सिंह कोरंगा, स्थानीय निवासी

    बरसात में हर रात डरावनी होती है। अंधेरे के बीच एक तरफ जंगली जानवरों का भय और दूसरी तरफ गौला नदी की बाढ़ का डर। कोई सुध लेवा नहीं है। लगता है कि क्या कभी हम सामान्य जीवन जी पाएंगे। - उमेश मेहरा, स्थानीय निवासी

    बरसात से पूर्व ही श्रीलंका टापू में शिविर लगाकर लोगों की समस्या का समाधान किया था। ग्रामीणों को तीन माह का राशन और अन्य जरूरत का सामान उपलब्ध कराया गया है। वहां पर अस्थाई हेलीपेड भी बनाया गया है। - रेखा कोहली, एसडीएम

    श्रीलंका टापू में सितारगंज की तरफ से बिजली की व्यवस्था के लिए प्रस्ताव भेजा जा रहा है। इसके साथ ही पूर्व में बाढ़ में बहे स्कूल को फिर से संचालित करने के प्रयास किए जा रहे है। नदी में पानी कम होते ही चैनेलाइजेशन और तटबंध निर्माण के साथ ही क्षतिग्रस्त मार्ग को दुरुस्त किया जाएगा। - डा. मोहन सिंह बिष्ट, विधायक