सिख समुदाय बंदी छोड़ दिवस के रूप में मनाता है दीपावली, जानिए क्या है इतिहास
दीपावली हिंदू और सिख भाईचारे का खूबसूरत पर्व है। नवरात्र से धार्मिक कार्य प्रारंभ हो जाते हैं और दीपावली तक चलते हैं। वहीं सिख धर्म में दीपावली का पर्व बंदी छोड़ दिवस के रूप में मनाया जाता है। यह पर्व सिखों के तीन त्योहारों में से एक है।

जीवन सिंह सैनी, बाजपुर : दीपावली हिंदू और सिख भाईचारे का खूबसूरत पर्व है। नवरात्र से धार्मिक कार्य प्रारंभ हो जाते हैं और दीपावली तक चलते हैं। वहीं सिख धर्म में दीपावली का पर्व बंदी छोड़ दिवस के रूप में मनाया जाता है। यह पर्व सिखों के तीन त्योहारों में से एक है। इनमें पहला माघी, दूसरा बैसाखी और तीसरा बंदी छोड़ दिवस। गुरुद्वारा साहिब में विशेष तौर पर धार्मिक समागम किए जाते हैं। इस दिन को बड़ी ही धूमधाम से मनाया जाता है, क्योंकि इस दिन बुराई पर अच्छाई की जीत हुई थी।
इसलिए मनाया जाता है बंदी छोड़ दिवस
माना जाता है कि इस दिन पीरी के मालिक छठे पातशाह श्री गुरु हरगोविंद सिंह साहिब जी को जब मुगल शासक जहांगीर ने गिरफ्तार किया था, तब गुरु साहिब ने रिहाई के समय अपने साथ 52 अन्य राजाओं को भी रिहा करवाया था। इन राजाओं की रिहाई के लिए भाई हरिदास ने एक ऐसा चोला तैयार करवाया जिसमें 52 कलियां थीं। इसके बाद हर एक राजा ने एक कली पकड़ी और किले से बाहर आ गए। इसके चलते गुरु साहिब को बंदी छोड़ दाता कहा गया है। इस रिहाई वाले दिन को ही बंदी छोड़ दिवस के रूप में मनाया जाता है।
समागम का होता है आयोजन
इस दिन सिख संगत और सिख संगठनों द्वारा खासतौर पर धार्मिक समागमों का आयोजन किया जाता है। समागम में कीर्तन और कथा करवाए जाते हैं। इस दिन के ऐतिहासिक महत्व से अवगत कराया जाता है, लेकिन इन समागमों को करने का तब ही महत्व है जब सभी लोग गुरुजी द्वारा दिखाए गए सच के रास्ते पर चलें।
इस दिन होती है आतिशबाजी, जलाए जाते हैं दीप
इस दिन बड़े स्तर पर आतिशबाजी होती है और साथ ही गुरुद्वारों में दीप जलाए जाते हैं। श्री मुक्तसर साहिब के श्री दरबार साहिब, गुरुद्वारा तरनतारन साहिब, गुरुद्वारा श्री तंबू साहिब, गुरुद्वारा टिब्बी साहिब और गुरुद्वारा शहीद साहिब में खासतौर पर दीप जलाए जाते हैं। वहीं बंदी दिवस के मौके पर श्रद्धालु गुरुद्वारे में नतमस्तक होने के लिए पहुंचते हैं।
20वीं सदी में दिया गया बंदी छोड़ दिवस का नाम
बंदी छोड़ दिवस सिख त्योहार है, जोकि दीपावली के दिन पड़ता है। दीपावली त्योहार सिख समुदाय द्वारा ऐतिहासिक रूप से मनाया जाता है। गुरु अमरदास जी ने इसे सिख उत्सव माना है। 20वीं सदी से सिख धार्मिक नेताओं द्वारा दीपावली को बंदी छोड़ दिवस कहा जाने लगा। शिरोमणि गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी द्वारा इसे मान लिया गया। इस नाम का सम्बद्ध गुरु हरगोविंद साहिब जी की रिहाई से है जिन्हें जहांगीर द्वारा स्वतंत्र किया गया था। बंदी छोड़ दिवस को दीपावली के समान ही मनाया जाता है जिसमें घरों और गुरुद्वारा साहिबों को रोशन किया जाता है। उपहार देना और परिवार के साथ समय बिताना होता है।
कमेंट्स
सभी कमेंट्स (0)
बातचीत में शामिल हों
कृपया धैर्य रखें।