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    Sanskarshala Haldwani : डिजिटल माध्यम की लत घातक, आत्म अनुशासन से मिलेगी मुक्ति

    By ganesh pandeyEdited By: Skand Shukla
    Updated: Thu, 06 Oct 2022 10:37 AM (IST)

    Sanskarshala Haldwani डिजिटल उपकरणों पर हानिकारक निर्भरता ही डिजिटल एडिक्शन है। यह तब होती है जब तकनीक व्यक्ति के जीवन को नुकसान पहुंचाती है। इसके हानिकारक प्रभाव जानने के बावजूद उसे रोकना मुश्किल होता है। इससे तर्क संगत रूप से सोचने की क्षमता प्रभावित होती है।

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    शारीरिक, मानसिक, व्यवहारिक व सामाजिक क्षेत्र में नकारात्मक प्रभाव डाल रही डिजिटल लत

    हल्द्वानी : पिछले कुछ दशकों में डिजिटल तकनीक के क्षेत्र में तेजी से विकास व अाविष्कार हुए हैं। जिसके जरिये हम दुनिया तक अपनी पहुंच बना सकते हैं। डिजिटल युग ने हमें जोड़ा है तो कुछ मामलों में अलग-थलग भी किया है। लोगों में डिजिटल माध्यम इस कदर हावी हुआ है कि यह आदत या लत के रूप में हमारे मन-मस्तिष्क व व्यवहार में शामिल हो चुका है। जिसे ''डिजिटल एडिक्शन'', ''मोबाइल एडिक्शन'', ''इंटरनेट एडिक्शन'', ''स्क्रीन एडिक्शन'', ''वीडियो गेम एडिक्शन'' आदि नामों से जाना जा सकता है। हाल के वर्षों से सभी उम्र के लोगों में यह विश्वव्यापी समस्या बन गई है।

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    डिजिटल लत (एडिक्शन) है क्या

    डिजिटल उपकरणों पर हानिकारक निर्भरता ही डिजिटल एडिक्शन है। यह तब होती है जब तकनीक व्यक्ति के जीवन को नुकसान पहुंचाती है। इसके हानिकारक प्रभाव जानने के बावजूद उसे रोकना मुश्किल होता है। इससे तर्क संगत रूप से सोचने की क्षमता प्रभावित होती है। कई बार हम इसके हानिकारक परिणामों को जानने के बावजूद उन्हें खत्म करने के जरूरी व कारगर प्रयास नहीं करते। कुछ लोग डिजिटल एडिक्शन को ''ड्रग एडिक्शन'' के समान बताते हैं।

    डिजिटल एडिक्शन के लक्षण

    कुछ कसौटी से इसकी परख हो सकती है। समय गुजारने के लिए डिजिटल माध्यम का सहारा लेना। फोन का उपयोग करते हुए समय का पता न चलना। लोगों से बात करते हुए ज्यादा समय डिजिटल उपकरणों पर बिता देना। मोबाइल या अन्य डिजिटल उपकरण पर समय बिताने की अवधि दिन प्रतिदिन बढ़ना। अन्य कामों को छोड़कर या रोककर बीच-बीच में डिजिटल उपकरण देखना। वाहन चलाते समय भी इंटरनेट साइट्स को चेक करना।

    यह लगना कि डिजिटल उपकरण की वजह से दैनिक उपयोगी काम प्रभावित हो रहे हैं। कुछ देर के लिए भी मोबाइल पास न होने पर परेशान या बेचैन होना। बार-बार मोबाइल देखने की इच्छा। डिजिटल उपकरण खराब होने, नेटवर्क की समस्या रहने पर चिढ़चिढ़ा या तनावग्रस्त होना। हालांकि ये बीमारी की पहचान के मापदंड नहीं हैं, लेकिन इसको एडिक्शन के रूप में देखा जा सकता है। जब हम स्वयं में देखेंगे कि मैं इससे ग्रसित तो नहीं हो रहा हूं तभी सुधार के विषय में कदम बढ़ा सकेंगे।

    डिजिटल लत के दुष्प्रभाव

    डिजिटल लत शारीरिक, मानसिक, व्यवहारिक व सामाजिक क्षेत्र में नकारात्मक प्रभाव डाल रही। इससे सिर, हाथ, गर्दन, पीठ दर्द, आंखों में धुंधलापन, वाहन दुर्घटना का खतरा बना रहना है। उदासी, चिढ़चिढ़ापन, अवसाद, चिंता, आक्रामकता व व्यवहारिक समस्या। सामाजिक व पारिवारिक संबंधों में कटुता। कई बार वैवाहिक रिश्ते टूटने की कगार पर पहुंच जाते हैं। शैक्षिक व व्यवसायिक स्तर में गिरावट। आर्थिक नुकसान। स्थिति भयावह होने पर व्यक्ति आत्मघाती कदम उठा सकता है। जरूरी है कि डिजिटल माध्यम को अपने ज्ञान, विकास के लिए उपयोग करें न की इसका दुरुपयोग।

    ऐसे छूटेगी लत

    मोबाइल नोटिफिकेशन बंद रखें, ताकि ध्यान बार-बार उपकरण की तरफ न जाएं और आप काम पर फोकस करें। डिजिटल उपकरण देखने का समय तय करें। टाइमर लगाकर डिजिटल उपकरण का उपयोग करें, ताकि उसमें बिताए समय का पता चले। डिजिटल उपकरण देखने की तीव्र इच्छा होने पर कुछ अन्य कार्य प्रारंभ कर दें। मोबाइल को अपने साथ बिस्तर पर न रखें। उपकरण में सीमित व जरूरी ऐप डाउनलोड करें।

    आउटडोर एक्टिविटी बढ़ाएं। अपनी रुचि व पसंद का काम करें। सामाजिक संवाद बढ़ाएं। खाली समय में रिश्तेदार, पड़ोसी या दोस्तों के साथ समय व्यतीत करें। विद्यार्थी पढ़ाई के साथ शिक्षा आधारित सहयोगी गतिविधि को दिनचर्या में शामिल करें। मनोरंजन के लिए बच्चों को डिजिटल उपकरण देने के बजाय माता-पिता उन्हें समय दें। अभिभावक बच्चों के सामने स्वयं भी आदर्श प्रस्तुत करें। इसका सकारात्मक प्रभाव पड़ेगा।

    -डा. युवराज पंत, नैदानिक मनोविज्ञानी, डा. सुशीला तिवारी राजकीय चिकित्सालय हल्द्वानी