रुड़की आइआइटी की रिपोर्ट ने नैनीताल के सूखाताल में पक्के निर्माण पर उठाए सवाल, कहा, विनाशकारी होगा प्रभाव
IIT Roorkee की रिपोर्ट में साफ कहा गया है कि सूखाताल में स्थायी निर्माण नहीं होना चाहिए। यदि पक्का निर्माण कर सूखाताल से रिसाव की चेन को बाधित कर दिया गया तो इसका नैनी झील के अस्तित्व पर प्रभाव पड़ेगा।
जागरण संवाददाता, नैनीताल : हाई कोर्ट ने नैनीताल की सूखाताल झील में निर्माण का स्वत: संज्ञान लेती जनहित याचिका पर सुनवाई करते हुए अगली तिथि 22 नवंबर नियत कर दी है। रुड़की आइआइटी ने सूखाताल में निर्माण किए जाने पर सवाल खड़े किए हैं।
हाई कोर्ट दाखिल की गई है रिपोर्ट
गुरुवार को मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति विपिन सांघी व न्यायमूर्ति आरसी खुल्बे की खंडपीठ में न्यायमित्र कार्तिकेय हरिगुप्ता ने अदालत को बताया कि सूखाताल में निर्माण से विनाशकारी पर्यावरणीय प्रभाव हो सकता है। यहां तक कि राज्य सरकार की ओर से दाखिल जवाब में संलग्न आइआइटी रुड़की की रिपोर्ट का हवाला दिया है।
नैनी झील पर पड़ेगा प्रभाव
रिपोर्ट में साफ कहा गया है कि सूखाताल में स्थायी निर्माण नहीं होना चाहिए। झील की सतह पर अभेद्य निर्माण सामग्री का उपयोग नहीं किया जाना चाहिए। सूखाताल से ही नैनी झील में 40-50 प्रतिशत पानी की आपूर्ति होती है। यदि पक्का निर्माण कर सूखाताल से रिसाव की चेन को बाधित कर दिया गया तो इसका नैनी झील के अस्तित्व पर प्रभाव पड़ेगा।
अतिक्रमण, निर्माण व कचरे के डंपिंग से संकट
दरअसल, सौ से अधिक बुद्धिजीवियों ने इसी साल हाई कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश को हस्ताक्षरयुक्त पत्र भेजा था। जिस पर दो मार्च को स्वत: संज्ञान लेते हुए सुनवाई हुई थी। पत्र में कहा गया था कि अतिक्रमण, निर्माण व कचरे के डंपिंग के परिणामस्वरूप सूखाताल झील के तल और नैनी झील को रिचार्ज करने की क्षमता में अत्यधिक गिरावट आई है।
- 2002 से 2016 के बीच नैनी झील दस बार न्यूनतम जलस्तर पर पहुंच गई।
- 2020 में हाई कोर्ट ने सूखाताल झील क्षेत्र में अतिक्रमण करने वाले 44 भवनों का अतिक्रमण हटाने का आदेश पारित किया था, लेकिन अब तक काेई कार्रवाई नहीं हुई।
- सूखाताल को पर्यटन की दृष्टि से विकसित किया जा रहा है। बेरोकटोक कंक्रीट के काम से विकास के विनानशकारी परिणाम इस संवेदनशील पहाड़ी पर महसूस किए जा सकते हैं।
- सूखाताल झील हर दिन नैनी झील को 18 से 20 मिलियन लीटर पानी उपलब्ध कराती है।