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    तराई में तस्करों के टारगेट पर दुर्लभ पेंगोलिन, अंतरराष्‍ट्रीय बाजार में लाखों में बिकते हैं खाल और मांस

    By Skand ShuklaEdited By:
    Updated: Fri, 20 Sep 2019 11:43 AM (IST)

    तराई के जंगलों में वन्य जीव खैर और शीशम की लकडिय़ों के बाद अब सक्रिय तस्करों की नजर दुर्लभ प्रजाति के पेंगोलिन पर है।

    तराई में तस्करों के टारगेट पर दुर्लभ पेंगोलिन, अंतरराष्‍ट्रीय बाजार में लाखों में बिकते हैं खाल और मांस

    रुद्रपुर, जेएनएन : तराई के जंगलों में वन्य जीव, खैर और शीशम की लकडिय़ों के बाद अब सक्रिय तस्करों की नजर दुर्लभ प्रजाति के पेंगोलिन पर है। यही कारण है कि बाघ की तरह ही शेड्यूल एक का वन्य जीव पेंगोलिन की तस्करी धड़ल्ले से हो रही है। एक माह में ही एसटीएफ और वन विभाग ने सात तस्करों को गिरफ्तार कर दो पेंगोलिन को बरामद किया है। 

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    पेंगोलिन सिर्फ भारत में ही नहीं, बल्कि अन्य देशों में भी संकटग्रस्त की सूची में है। इसे बचाने के लिए हर साल फरवरी माह में विश्व पेंगोलिन दिवस मनाया जाता है। अंतरराष्ट्रीय प्रकृति संरक्षण संघ ने भी इसे संकटग्रस्त प्रजाति में शामिल किया है। भारत में इसका शिकार करना गैर कानूनी है। इसकी खाल की दक्षिण पूर्व एशिया के देशों में काफी डिमांड है। इसके चलते इसकी कीमत और तस्करी में भी इजाफा हुआ है। वन विभाग के अधिकारियों के मुताबिक पेंगोलिन की खाल के अलावा इसके मांस की मांग है। पेंगोलिन को तस्कर प्रतिकिलो 50 हजार से अधिक रुपये में बेचते हैं। यही कारण है कि तराई के जंगलों में भी पाए जाने वाले इस पेंगोलिन पर तस्करों की नजर है। अगस्त माह में वन विभाग और एसटीएम ने तीन तस्करों को गिरफ्तार कर उनके पास से 15 किलो का दुर्लभ प्रजाति का पेंगोलिन बरामद किया था। इसके बाद सितंबर माह में भी चार तस्करों के पास से 18 किलो का पेंगोलिन बरामद हुआ। जबकि पूछताछ में तस्करों ने अपने कई और साथियों के सक्रिय होने की बात भी कबूल की है। ऐसे में अब एसटीएम, वन विभाग तस्करों की जानकारी जुटाने में जुट गई है। 

    पेंगोलिन की खासियत

    वन्यजीव पेंगोलीन के कई नाम है, इसे वज्रशल्क, सल्लू सांप, सालरगोड़ा, चींटीखोर भी कहा जाता है। इसके शरीर पर केरोटिन की बनी शल्क नुमा संरचना होती है जिससे यह दूसरे प्राणियों से अपनी रक्षा करता है। पेंगोलिन संकटग्रस्त प्रजातियों में शामिल है। अंधविश्वास से जुड़ी प्रथाओं के कारण इनका अक्सर शिकार किया जाता है। पेंगोलिन की खाल का इस्तेमाल जहां ड्रग्स, बुलेट प्रुफ जैकेट में इस्तेमाल किया जाता है। वहीं कई देशों में इसका मांस भी बड़े चाव से खाया जाता है।

    दुर्लभ स्तनधारी जीव में होती है गिनती 

    भारत में एक ऐसा दुर्लभ स्तनधारी वन्यजीव जो दिखने में अन्य स्तनधारियों से बिल्कुल अलग व विचित्र आकृति का जिसके शरीर का पृष्ठ भाग खजूर के पेड़ के छिलकों की भाँति कैरोटीन से बने कठोर व मजबूत चौड़े शल्कों से ढका रहता है। दूर से देखने पर यह छोटा डायनासोर जैसा प्रतीत होता है। अचानक इसे देखने पर एक बार कोई भी व्यक्ति अचम्भित व डर जाता है। धुन का पक्का व बेखौफ परन्तु शर्मीले स्वभाव का यह वन्य जीव और कोई नहीं बल्कि भारतीय पैंगोलिन है। गहर-भूरे, पीले-भूरे अथवा रेतीले रंग का शुण्डाकार यह निशाचर प्राणी लम्बाई में लगभग दो मीटर तथा वजन में लगभग पैंतीस कि.ग्रा. तक का होता है। चूँकि इसके शरीर पर शल्क होने से यह 'वज्रशल्‍क' नाम से भी जाना जाता है तथा कीड़े-मकोड़े खाने से इसको 'चींटीखोर' भी कहते हैं। अस्सी के दशक पूर्व पहाड़, मैदान, खेत-खलिहान, जंगल तथा गाँवों के आस-पास रहने वाला यह शल्की-चींटीखोर रेगिस्तानी इलाकों के अलावा देश के लगभग हर भौगोलिक क्षेत्रों में दिखाई दे पड़ता था। लेकिन अब इनकी संख्या बहुत कम होने से यह कभी-कभार ही देखने को मिलता है। दरअसल इस पैंगोलिन प्रजाति का अस्तित्व अब बेहद खतरे में है।

    तराई व भावर में पेंगोलिन मिलन सुखद संकेत 

    पैंगोलिन हरिद्वार से लेकर खटीमा तक के जंगलों में मिलता है। हाल में इस इलाके में इसकी तस्करी में तेजी आई है। उत्तराखंड जैव विविधता बोर्ड ने इंडियन पैंगोलिन के अस्तित्व पर गहराते संकट को लेकर शोध कराया है। पैंगोलिन के बचाव के शोधकर्ता भास्कर भंडारी ने कई सुझाव दिए हैं। पैंगोलिन के शिकारियों पर सख्ती, शिकार करने वालों को कानून के तहत सजा दिलाने, शिकारियों की लगातार निगरानी, वनाग्नि से बचाने, इनके वास स्थलों को विकसित करने की जरूरत बताई है।

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