बृहस्पति ग्रह से होगी दुर्लभ बाहरी धूमकेतु की निगरानी, जेम्स वेब और हबल दूरबीन खोजेगी ब्रह्मांड के रहस्य
वैज्ञानिक जेम्स वेब और हबल दूरबीनों की मदद से बृहस्पति ग्रह के पास से गुजरने वाले एक दुर्लभ धूमकेतु की निगरानी करेंगे। इस खगोलीय घटना से धूमकेतु की संरचना और उत्पत्ति को समझने में मदद मिलेगी। दूरबीनों द्वारा ली गई तस्वीरें और रासायनिक विश्लेषण वैज्ञानिकों को सौरमंडल के गठन और विकास के बारे में जानकारी देंगे। यह खोज ब्रह्मांड के रहस्यों को उजागर करेगी।

नासा की अंतरिक्ष दूरबीन जेम्स वेब और हबल दूरबीन भी रहस्य खोजने में जुटे।
जागरण संवादाता, नैनीताल। किसी दूसरे सौर मंडल से हमारे सौर मंडल में घुस आया दुर्लभ धूमकेतु-3आई /एटलस की निगरानी बृहस्पति ग्रह में स्थित अंतरिक्ष यान जूसी से की जाएगी। इसके साथ ही नासा और यूरोपियन स्पेस एजेंसी की अंतरिक्ष में स्थापित दूरबीनें भी इसकी धूमकेतु के रहस्य उजागर करने के लिए जुट गई हैं। वैज्ञानिक अध्ययन के लिहाज से यह धूमकेतु बेहद महत्वपूर्ण माना जा रहा है।
आर्यभट्ट प्रेक्षण विज्ञान शोध संस्थान एरीज के वरिष्ठ खगोल विज्ञानी डा शशिभूषण पांडे ने बताया कि धूमकेतु 3आई /एटलस एक दुर्लभ धूमकेतु है, जो हमारे सौर मंडल का सदस्य नहीं है, बल्कि किसी दूसरे सौर मंडल का है। इसके हमारे सौर मंडल में घुस आने की जानकारी इसी वर्ष जुलाई में मिली। तभी से इस पर विज्ञानी नजर बनाए हुए हैं।
गुरुवार को यह धूमकेतु सूर्य के सर्वाधिक करीब पहुंचा और मंगल ग्रह के करीब से होकर आगे गुजर चुका है। अब यह बृहस्पति ग्रह की ओर बढ़ रहा है। यह धूमकेतु इन दिनों दुनियाभर के विज्ञानियों के आकर्षण का केंद्र बना हुआ है। हमारे नजदीक से गुजरते समय इसके बारे में पता चला है कि यह धूमकेतुओं की तरह बर्फीला है और सूर्य के नजदीक से गुजरने पर वाष्पित होने से, इसकी हल्की पूंछ निकल आई। इसके बारे में अभी बहुत कुछ पता लगाना बेहद जरूरी है। जिससे दूसरे ग्रहों के धूमकेतुओं की प्रकृति, बनावट, भौतिक और रासायनिक पदार्थों का रहस्य उजागर हो सकेगा।
जिस कारण नासा और यूरोपियन स्पेस एजेंसी (ईसा) की अंतरिक्ष में स्थापित दूरबीनों से निगरानी शुरू करदी गई है। साथ ही सूदूर अंतरिक्ष में स्थित, बृहस्पति के चंद्रमाओं के रहस्यों को जानने में जुटा अंतरिक्ष यान जुपिटर आइसी मून्स एक्सप्लोरर भी इसकी जानकारी जुटाएगा। फिलहाल अगले कुछ दिन पृथ्वी से इसे देख पाना संभव नहीं है। लगभग मध्य नवंबर से पुनः देखा जा सकेगा। पृथ्वी से दूरबीन के जरिए देखा जा सकेगा।

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