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मई 1937 में सांस्कृतिक नगरी अलमोड़ा पहुंचे थे गुरुदेव रवीन्‍द्रनाथ्‍ा टैगोर, जानिए

गुरुदेव रवींद्र नाथ टैगोर को पहाड़ का आतिथ्य खूब भाया था। वह ग्रीष्मकाल के दौरान मई 1937 में प्रख्यात कृषि वैज्ञानिक बोसी सेन के अतिथि बनकर अल्मोड़ा पहुंचे थे।

By Skand ShuklaEdited By: Published: Sun, 09 Jun 2019 06:13 PM (IST)Updated: Tue, 11 Jun 2019 09:54 AM (IST)
मई 1937 में सांस्कृतिक नगरी अलमोड़ा पहुंचे थे गुरुदेव रवीन्‍द्रनाथ्‍ा टैगोर, जानिए
मई 1937 में सांस्कृतिक नगरी अलमोड़ा पहुंचे थे गुरुदेव रवीन्‍द्रनाथ्‍ा टैगोर, जानिए

अल्मोड़ा, जेएनएन : गुरुदेव रवींद्र नाथ टैगोर को पहाड़ का आतिथ्य खूब भाया था। वह ग्रीष्मकाल के दौरान मई 1937 में प्रख्यात कृषि वैज्ञानिक बोसी सेन के अतिथि बनकर देवभूमि उत्तराखंड की सांस्कृतिक नगरी अल्मोड़ा पहुंचे थे। उन्होंने यहां छावनी क्षेत्र में स्थित भवन में कई दिनों तक प्रवास कर साहित्य साधना की। अनेक काव्य रचनाओं को अंतिम रूप दिया। जब भी देशी विदेशी पर्यटक यहां पहुंचते हैं, वह छावनी क्षेत्र स्थित टैगोर भवन का दीदार करते हैं। 

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मई, 1937 में गुरुदेव बरेली होते हुए अल्मोड़ा पहुंचे थे। कृषि वैज्ञानिक स्व. बोसी सेन की पत्नी व उस दौर की जानी मानी पत्रकार स्व. जी इमर्सन ने अपने संस्मरण में लिखा है कि सफर के दौरान टैगोर बहुत परेशान हो गए थे। लेकिन अल्मोड़ा पहुंचने के दो-ढाई घंटे के भीतर ही आश्चर्यजनक रूप से सामान्य हो गए। महाकवि टैगोर को अल्मोड़ा बहुत पसंद आया। जून में कोलकाता लौटने के बाद उन्होंने बोसी सेन को लिखे पत्र में बकायदा इसका उल्लेख किया है। उन्होंने उल्लेख किया है कि मुझे खेद है कि सद्भाव से ही जल्दबाजी के कारण आपकी बेहतर राय पर ध्यान नहीं दिया और पहाड़ से जल्दी उतर आया। 

जिस ऐतिहासिक भवन में कई दिनों तक रहकर गुरुदेव रवींद्र नाथ टैगोर ने कई महत्वपूर्ण रचनाओं का सृजन किया वह आज तक पर्यटक मानचित्र में शामिल नहीं हो पाया। सरकार ने 1961 में टैगोर शताब्दी वर्ष में छावनी परिषद के इस भवन को टैगोर भवन नाम देने के अलावा कुछ नहीं किया। साल 2007 से छावनी बोर्ड की ओर से टैगोर भवन को पर्यटन की दृष्टि से विकसित किए जाने के प्रस्ताव भेजे जा रहे हैं, लेकिन अब तक यह ऐतिहासिक स्थल विकसित होने की बाट जोह रहा है। इधर नगर के अनेक वरिष्ठजनों का मानना है कि यदि इस स्थल को विकसित करके व्यापक प्रचार प्रसार किया जाए तो यह पर्यटकों के लिए प्रमुख आकर्षण का केंद्र बन सकता है। 

इन रचनाओं का किया सृजन

कवि रवींद्र नाथ टैगोर को पहाड़ के अल्मोड़ा की आबोहवा इतनी भायी कि उन्होंने यहां कई दिनों तक साहित्य साधना की। गुरुदेव ने यहां सेजुति, नवजातक, आकाश-प्रदीप आदि रचनाओं को अंतिम रूप दिया। साथ ही विश्व परिचय नामक विज्ञान ग्रंथ की रचना भी उन्होंने यहीं की। 

पर्यटन स्‍थन को संवारने के लिए बोर्ड कर रहा प्रयास 

आकांक्षा तिवारी, मुख्य अधिशासी अधिकारी, कैंट बोर्ड, अल्मोड़ा ने बताया कि इस ऐतिहासिक स्थल को पर्यटन की दृष्टि से संवारने के लिए छावनी बोर्ड प्रयासरत है। बोर्ड की बैठक में इस स्थल पर टैगोर ग्लास हाउस बनाकर उसमें गुरुदेव की ओर से उस दौरान प्रयुक्त किया गया सोफा, उनकी कृतियां प्रदर्शित करने के साथ ही गुरुदेव की स्टेच्यू बनाने का प्रस्ताव है। बोर्ड की ओर से पारित प्रस्ताव छावनी परिषद के सेंट्रल कमांड ऑफिस भेजा गया है, बस बजट का इंतजार है। 

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