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    पं. राम सुमेर ने लाहौर पहुंचकर द्वि राष्ट्रवाद का किया था विरोध, तराई को बसाने में निभाई अहम भूमिका

    By Skand ShuklaEdited By:
    Updated: Mon, 22 Mar 2021 07:22 AM (IST)

    महज 21 वर्ष की उम्र में 1936 के लाहौर अधिवेशन में पं. राम सुमेर शुक्ल ने बोलना शुरू किया तो सब दंग रह गए। जिन्ना के द्वि राष्ट्रवाद के खिलाफ बिगुल बजा कर राष्ट्रीय स्तर पर पहचान बनाई। जुझारू और तेज तेवर के कारण वे अंग्रेजों को खटकने लगे थे।

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    पं. राम सुमेर ने लाहौर पहुंचकर द्वि राष्ट्रवाद का किया था विरोध, तराई को बसाने में निभाई अहम भूमिका

    किच्छा, जागरण संवाददाता : महज 21 वर्ष की उम्र में 1936 के लाहौर अधिवेशन में पं. राम सुमेर शुक्ल ने बोलना शुरू किया तो सब दंग रह गए। जिन्ना के द्वि राष्ट्रवाद के खिलाफ बिगुल बजा कर राष्ट्रीय स्तर पर पहचान बनाई। जुझारू और तेज तेवर के कारण वे अंग्रेजों को खटकने लगे। ब्रिटिश हुकूमत ने उन्हें जेल में बंद कर यातनाएं दीं, मगर उनके हौसले बुलंद रहे। आजादी के बाद उन्होंने तराई को बसाने और संवारने में अहम भूमिका निभाई। 

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    प. राम सुमेर शुक्ल के तेवर देख कर अंग्रेज भी भय खाते थे। अपनी फूट डालो राज करो की नीति खतरे में देख कर अंग्रेजों ने पं. राम सुमेर को नैनी जेल प्रयागराज व फतेहगढ़ जेल में नजरबंद कर दिया। लेकिन पंडित जी के हौसले नहीं डिगे। वह महात्मा गांधी से प्रभावित रहे। इसी कारण इलाहाबाद विश्वविद्यालय से कानून की डिग्री हासिल करने के बाद उन्होंने वकालत न कर आजादी की लड़ाई में सक्रिय भागीदारी का निर्णय लिया।  

    उनके जज्बे को देखते हुए युवा कांग्रेस के 31 दिसंबर 1943 को दिल्ली में आयोजित सम्मेलन में राष्ट्रीय अध्यक्ष चुन लिया गया। यहां से उन्होंने अंग्रेजों के खिलाफ लड़ाई को और तेज करते हुए राष्ट्रीय स्तर पर युवा शक्ति को लामबंद कर दिया। पं. राम सुमेर शुक्ल के पुत्र किच्छा विधायक राजेश शुक्ल बताते हैं कि 15 अगस्त 1947 को भारत के आजाद होने के बाद उन्होंने इलाहाबाद में वकालत शुरू की।

    इस बीच उत्तर प्रदेश के प्रथम मुख्यमंत्री प. गोविंद बल्लभ पंत ने उन्हें तराई को बसाने की जिम्मेदारी सौंपी। इसके बाद वह वकालत छोड़ कर रुद्रपुर आकर बस गए। उनको कालोनाइजेशन का अध्यक्ष बनाया गया। आजादी के बाद हुए बंटवारे का दंश झेलने वाले पश्चिम पाकिस्तान व पूर्वी पाकिस्तान से आए विस्थापितों को बसाने की महत्वपूर्ण जिम्मेदारी का निर्वहन करने के साथ ही उन्होंने स्वतंत्रता संग्राम सेनानी परिवारों को भी यहां बसाया।  

    उनके योगदान को देखते हुए उत्तर प्रदेश के तत्कालीन मुख्यमंत्री नारायण दत्त तिवारी ने किच्छा बाईपास का नामकरण 1984 में पं. राम सुमेर शुक्ल कर दिया। इसके बाद उनकी प्रतिमा भी स्थापित की गई। जिले में प. राम सुमेर शुक्ल के नाम पर मेडिकल कॉलेज के साथ ही किच्छा विधानसभा क्षेत्र के रामनगर गांव में कन्या हाई स्कूल भी है। 

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