बागेश्वर में पिंडर नदी पार करने के लिए रस्सी और लट्ठों का सहारा ले रहे हैं चरवाहे
बारिश के दिनों में पर्वतीय जिलों में जन जीवन अस्त-व्यस्त हो जाता है। दुर्गम गांवों के लोगों को खासी मुसीबत झेलनी पड़ती है। नदी-नालों के उफान पर होने के कारण लोगों को आवागमन में काफी दिक्कतों का सामना करना पड़ता है।

बागेश्वर, जागरण संवाददाता : बारिश के दिनों में पर्वतीय जिलों में जन जीवन अस्त-व्यस्त हो जाता है। दुर्गम गांवों के लोगों को खासी मुसीबत झेलनी पड़ती है। नदी-नालों के उफान पर होने के कारण लोगों को आवागमन में काफी दिक्कतों का सामना करना पड़ता है। कुछ ऐसी ही मुसीबत आजकल झेल रहे हैं बागेश्वर जिले के लोग। पिंडर नदी को पार करने के लिए चरवाहों को रस्सी का सहारा लेना पड़ रहा है। यहां लकड़ी और रिंगाल के डंडों से बना पुल बीते महीने 18 जून को हुई अतिवृष्टि में बह गया। पिंडर पार बुग्यालों में कपकोट क्षेत्र के तमाम गांवों की भेड़ें चरने जाती हैं। ऐसे में चरवाहों को पिंडर नदी को पार करना पड़ता है। हालांकि द्वाली में पिंडर नदी पर झूला पुल निर्माण के लिए 2.30 करोड़ रुपये स्वीकृत है।
कफनी और पिंडर नदी को पार करने के हर साल लकड़ी के अस्थायी पुल बनाए बनाए जाते हैं। बारिश में पिंडर और कफनी का जलस्तर बढ़ने से यह पुल बह जाते हैं। हालांकि बरसात के कारण यहां साहसिक पर्यटकों का आना-जाना कम रहता है। लेकिन दानपुर घाटी के खाती, कुंवारी, जांतोली, बाछम, तीख, समडर, बदियाकोट आदि गांवों के भेड़ पालक बुग्यालों में रहते हैं। वह यहां भेड़ चराते हैं। भोजन आदि की कमी पड़ने पर वह पिंडर पार कर अपने गांव तक पहुंचते हैं। जून माह में अस्थाई पुल बह जाने के कारण वह रस्सी के डंडों के सहारे पिंडर नदी को पार कर रहे हैं।
खातीगांव निवासी तारा सिंह दानू ने बताया कि पुल बहने से लोगों को जान जोखिम में डालकर नदी पार कर रहे हैं। नदियों का जलस्तर बढ़ा तो आवागमन बाधित हो जाएगा। द्वाली में झूलापुल निर्माण के लिए 2.30 करोड़ रुपये की धनराशि स्वीकृत है। लेकिन अभी पुल का निर्माण नहीं हो सका है। कपकोट के अधिशासी अभियंता एसके पांडे ने बताया कि द्वाली में करीब 300 मीटर चट्टान को काटा जाना है। झूलापुल नवंबर तक बन जाएगा। झूलापुल बनने के साथ ही चट्टान से रास्ता बनाया जाएगा। बरसात के कारण फिलहाल काम नहीं हो सकता है।
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