Surya Grahan 2025: 4.33 घंटे का होगा आज लगने वाला वर्ष का सूर्य ग्रहण, नैनीताल के खगोल विज्ञानी ने बताया कब होगा अगला
रविवार रात लगने वाला आंशिक सूर्य ग्रहण भारत में नहीं दिखेगा। एरीज के वैज्ञानिक डॉ. शशिभूषण पांडेय के अनुसार यह ग्रहण 4.33 घंटे का होगा और 2029 तक भारत से कोई सूर्य ग्रहण नहीं दिखेगा। अगले वर्ष के दो ग्रहण भी भारत में दृश्यमान नहीं होंगे। दिल्ली एनसीआर में दिखी रहस्यमय रोशनी का कारण अभी अज्ञात है जिसकी जांच जारी है।

जागरण संवादाता, नैनीताल। रविवार रात लगने जा रहा आंशिक सूर्य ग्रहण दुनिया के कई हिस्सों में देखा जा सकेगा। रात के समय होने जा रही इस अदभुत खगोलीय घटना को भारत से नहीं देखा जा सकेगा।
आर्यभट्ट प्रेक्षण विज्ञान शोध संस्थान एरीज के वरिष्ठ खगोल विज्ञानी डॉक्टर शशिभूषण पांडेय ने बताया कि भारतीय समय के अनुसार सूर्य ग्रहण रात लगभग 11 बजे लगना शुरू होगा। 4.33 घंटे अवधि वाला यह आंशिक सूर्य ग्रहण होगा, जो सुबह 3.33 बजे समाप्त होगा।
भारत में नहीं दिखाई देगा आंशिक सूर्य ग्रहण
विज्ञानी अध्ययन के लिहाज से आंशिक सूर्य ग्रहण का महत्व नहीं है। अलबत्ता ग्रहण के पूर्वानुमान की पुष्टि हो जाती है।
- पूर्ण सूर्य ग्रहण के दौरान सूर्य के कोरोना का अध्ययन करने का मौका वैज्ञानिकों को मिलता है।
- आने वाले वर्षों में 2029 तक भारत से कोई भी सूर्य ग्रहण नहीं देखा जा सकेगा, जबकि दो अगस्त 2027 को लगने वाला ग्रहण भारतीय समय के अनुसार देर शाम लगेगा, जिसके दिखाई देने की संभावना कम ही रहेगी।
- अगले वर्ष पहला सूर्य ग्रहण 17 फरवरी को लगेगा और दूसरा 12 अगस्त को लगेगा, जो भारत में नहीं दिखाई देंगे।
- यह सूर्य ग्रहण ऑस्ट्रेलिया के दक्षिणी भाग, न्यूजीलैंड, फिजी, अंटार्कटिका, प्रशांत महासागर व अटलांटिक महासागर में दिखाई देगा।
रहस्य बरकरार है दिल्ली−एनसीआर के आसमान में दिखी रोशनी का
नैनीताल। दिल्ली एनसीआर में शु्क्रवार की देर रात आसमान में उल्का पिंड अथवा सैटेलाइट से उत्पन्न हुई रोशनी के रहस्य का खुलासा नहीं हो पाया है। एरीज के वरिष्ठ खगोल विज्ञानी डॉक्टर शशिभूषण पांडेय ने बताया कि चंद सेकंड दिल्ली−एनसीआर में उत्पन्न रोशनी की चर्चा इंटरनेट पर पूरे दिन रही और लोग रोशनी को लेकर कयास लगाते रहे। यह घटना आधी रात के बाद हुई।
कृत्रित सैटेलाइट के कचरे की भी हो सकती है घटना
इस घटना की अभी तक कोई आधिकारिक पुष्टि नहीं हुई है। यह घटना खगोलीय भी हो सकती है और कृत्रिम सैटेलाइट के कचरे की भी हो सकती है। इस तरह की घटना अंतरिक्ष उल्का पिंड या किसी छोटे आकार का क्षुद्रग्रह हमारे आसमान के वातावरण से टकराकर जल उठता है और जलकर नष्ट हो जाता है।
इसके अलावा पृथ्वी के ऑर्बिट में भेजे गए सैटेलाइट के निष्क्रिय हो जाने के बाद टुकड़े पृथ्वी के वातावरण से टकराने के बाद फायर बॉल की घटना संभव होती है। अभी तक इसकी पुष्टि नहीं हो सकी है। विज्ञानी घटना की विवेचना कर रहें।आसमान में होने वाली इस तरह की घटनाओं का कई स्पेस एजेंसियां नजर रखती हैं। इस घटना का जल्द खुलासा हो जाएगा।
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