अब चहचहाहट बनेगी हिमालयी परिंदों का 'आधार कार्ड'
योजना के तहत पक्षियों को उनकी आवाज व चित्र के माध्यम से ही उनके बारे में सबकुछ जान सकेंगे। इसके लिए विज्ञानियों ने अब तक 200 पक्षी प्रजातियों के 4500 से ज्यादा चित्र जुटा लिए हैं। वहीं 800 से ज्यादा चिडिय़ों का कलरव यानी ध्वनि रिकार्ड की जा चुकी है।

अल्मोड़ा से दीप सिंह बोरा। अब चहचहाते परिंदों की मधुर ध्वनि और तस्वीर ही उनके कुल, प्रजाति व परिवार आदि की समग्र पहचान बताएगी। राष्ट्रीय हिमालयी अध्ययन मिशन के तहत शोध विज्ञानियों ने पक्षियों की मौजूदा स्थिति और उनके संरक्षण के लिए डाटा जुटाकर वेबसाइट (birds.iitmandi.ac.in) तैयार कर ली है। जिसमें संबंधित पक्षी की रिकार्ड की गई आवाज का आडियो या वीडियो क्लिक करते ही स्क्रीन पर उसका सटीक ब्योरा मिल जाएगा। यानी एक तरह से यह पक्षियों का आधार कार्ड जैसा ही होगा।
(रिकार्ड की गई आवाज को अपलोड करते ही मिलेगी जानकारी)
राष्टï्रीय हिमालयी अध्ययन मिशन के तहत जीबी पंत संस्थान कोसी कटारमल अल्मोड़ा ने एक वर्ष पूर्व भारतीय तकनीकी संंस्थान मंडी (हिमाचल) को पक्षियों के सटीक आंकड़े जुटाने के मकसद से शोध परियोजना का जिम्मा दिया। आइआइटी के शोधार्थियों ने आधुनिक सेंसर, माइक्रोफोन, कैमरा आदि उपकरणों की मदद से अध्ययन शुरू किया। इसमें पक्षियों की स्थान विशेष में मौजूदगी, उनका रहन-सहन, खतरे एवं दीर्घकालीन जैवविविधता निगरानी तंत्र के बारे में समस्त जानकारी एकत्र की गई।
अब तक 800 से ज्यादा ध्वनि रिकार्ड
अभिनव प्रयोग के तहत शोध विज्ञानियों ने अब तक 200 पक्षी प्रजातियों के 4500 से ज्यादा चित्र जुटा लिए हैं। वहीं 800 से ज्यादा चिडिय़ों का कलरव यानी ध्वनि रिकार्ड की जा चुकी है। ध्वनि की तीव्रता का डेटाबेस तैयार कर वेबसाइट में अपलोड किया गया है। इसमें हिमाचल के अलावा उत्तराखंड की पक्षी प्रजातियां भी शामिल हैं। इस अभिनव प्रयोग से उत्तराखंड में विलुप्त होते वैस्टर्न ट्रेगोपैन व मोनाल परिवार की चीर फीजेंट समेत अन्य दुर्लभ पक्षियों के संरक्षण की दिशा में भी काम हो सकेगा।
पक्षी विज्ञान के लिए गूगल जैसा
यह वेबसाइट पक्षी विज्ञान की जानकारी के लिहाज से गूगल जैसी ही होगी। इसमें हजारों परिंदों को उनके चित्र व ध्वनि से ही पहचानने के साथ उनकी पूरी कुंडली भी मिलेगी। यदि हमारे पास किसी पक्षी की आवाज या फोटो उपलब्ध है तो इस वेबसाइट में अपलोड कर पूरी जानकारी एक क्लिक में ले सकते हैं।
(प्रो. किरीट कुमार, नोडल अधिकारी)
उत्तराखंड में जल्द शुरू होगा काम
हिमाचल के बाद अब उत्तराखंड, असम, मेघालय, मिजोरम आदि सघन जैवविविधता वाले प्रदेशों में पक्षी गणना, संरक्षण आदि से जुड़ी शोध परियोजना पर अध्ययन शुरू होगा।
राष्टï्रीय हिमालयी अध्ययन मिशन के नोडल अधिकारी प्रो. किरीट कुमार का कहना है कि यह शोध परियोजना हिमालयी जैवविविधता संरक्षण व प्रबंधन की दिशा में उल्लेखनीय है। हिमालयी राज्यों के लिए यह पक्षी जगत की वास्तविक स्थिति जानने और उनके संरक्षण के लिए नीति निर्माण मेंं सहायक साबित होगा। इसके जरिये हम दुर्लभ पक्षियों की मौजूदगी पता करके उनके संरक्षण की योजना बना सकेंगे।
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