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    Navratri: भूस्‍खलन में दब गया था मंदिर, देवी मां ने सपने में अमरनाथ से मांगी मदद; आज लगती है भक्‍तों की लंबी कतार

    Updated: Sat, 05 Oct 2024 07:57 PM (IST)

    Navratri 2024 मां नैना देवी मंदिर उत्तराखंड के नैनीताल में स्थित एक प्रसिद्ध शक्तिपीठ है। झील किनारे स्थित यह मंदिर भारत के 51 शक्तिपीठों में एक माना जाता है। यह मंदिर देवी सती की बायीं आंख के गिरने से बना माना जाता है। मंदिर में मां नैना की मनमोहक मूर्ति स्थापित है और यहां साल भर भक्तों का तांता लगा रहता है। नवरात्रि के दौरान यहां विशेष पूजा होती है।

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    Navratri 2024: वर्षभर भक्तों का तांता लगा रहता है। जागरण

    जागरण संवाददाता, नैनीताल। Navratri 2024: सरोवर नगरी में बस स्टेशन तल्लीताल से करीब दो किलोमीटर दूर झील किनारे मां नयना देवी मंदिर स्थापित है। यहां वर्षभर भक्तों का तांता लगा रहता है।

    खासकर नवरात्रि के साथ ही धार्मिक पर्वों पर आयोजित विशेष पर्व पर भक्तों की कतार लगती रही है। चारों ओर प्राकृतिक सौंदर्य से घिरे मंदिर में विराजित मां भक्तों की मुराद पूरी करती है और उन्हें आत्मसंतुष्टि पैदा होती है।

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    इतिहास

    • पुराणों में वर्णित है कि अत्री, पुलतस्य, और पुलह ऋषियों ने इस घाटी में तपस्या करते हुए तपोबल से मानसरोवर का पानी खींचा, नैनी झील के जल को मानसरोवर की तरह पवित्र माना गया है।
    • झील किनारे स्थित यह मंदिर भारत के 51 शक्तिपीठों में एक माना जाता है। पुराणों के अनुसार जब देवी सती के पिता दक्ष ने विशाल यज्ञ का आयोजन किया और उसमें अपने जमाता भगवान शिव को नहीं बुलाया तो इससे खिन्न होकर अगले जन्म में भी शिव की पत्नी बनने की कामना के साथ देवी सती ने यज्ञ कुंड में अपने प्राणों का उत्सर्ग कर दिया।
    • इस घटना से स्तब्ध व दु:खी होकर भगवान शिव अपने कर्तव्यों से विमुख होकर देवी सती का पार्थिव शरीर कंधे में टांगे ब्रह्मांड में भटकने लगे तो सृष्टि का संतुलन बिगड़ने से तीनों लोकों में हाहाकार मच गया।
    • इसके बाद भगवान विष्णु ने अपने सुदर्शन चक्र से सती के शव के खंड-खंड कर दिए।
    • देवी सती के शरीर के अंश जहां-जहां गिरे, कालांतर में शक्तिपीठ बन गए। मान्यता है कि नैनीताल में देवी सती की बांयी आंख गिरी, जो एक रमणिक सरोवर के रूप में रूपांतरित हो गई।

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    महात्म

    • 19 वीं शताब्दी में नैनीताल की खोज के बाद यहां के निवासी मोती राम साह ने सरोवर नगरी के किनारे नयना देवी का मंदिर बनाया।
    • यह मंदिर वर्तमान बोट हाउस क्लब व कैपिटल सिनेमा के मध्यम में था।
    • 1880 के भूस्खलन में यह मंदिर नष्ट हो गया।
    • बताया जाता है कि मां नयना देवी ने मोती राम साह के पुत्र अमरनाथ साह को स्वप्न में उस स्थान का पता बताया, जहां मूर्ति दबी पड़ी थी।
    • इसके बाद अमरनाथ साह ने मित्रों व बांधवों के सहयोग से देवी मूर्ति का उद्धार किया और नए सिरे से मंदिर का निर्माण किया।
    • वर्तमान मंदिर 1883 में बनकर तैयार हुआ। 21 जुलाई 1984 को श्री मां नयना देवी मंदिर अमर उदय ट्रस्ट का गठन होने के बाद मंदिर की व्यवस्थाएं न्यास के हाथों आ गई।
    • मां नयना देवी मंदिर में पूरे साल श्रद्धालुओं का तांता लगा रहता है, देश-विदेश से आने वाले पर्यटक मंदिर दर्शन करना कभी नहीं भूलते और श्रद्धालुओं की हर मनोकामना यहां पूरी होती है।

    मां नयना देवी श्रद्धालुओं की अगाध आस्था का केंद्र है। यहां पूरे साल भक्त आते रहते हैं, पर्व व त्यौहारों के साथ धार्मिक आयोजन के दौरान भक्तों की भीड़ उमड़ती है। नंदा देवी महोत्सव हो, मंदिर स्थापना दिवस सहित अन्य धार्मिक आयोजन के बीच श्रद्धालुओं की संख्या बढ़ जाती है। यहां आने वाले पर्यटक मां के दरबार में माथा टेकने जरूर आते हैं। मंदिर परिसर में मां नयना देवी के साथ ही पवनसुत हनुमान की मूर्ति, भैरब मंदिर, शिव मंदिर, राधा-कृष्ण मंदिर तथा दशावतार मंदिर तथा मंदिर परिसर में ही शिवलिंग स्थापित है। - बसंत बल्लभ पाण्डे, मुख्य पुजारी।

    अस्वीकरण: इस लेख में बताए गए उपाय/लाभ/सलाह और कथन केवल सामान्य सूचना के लिए हैं। दैनिक जागरण तथा जागरण न्यू मीडिया यहां इस लेख फीचर में लिखी गई बातों का समर्थन नहीं करता है। इस लेख में निहित जानकारी विभिन्न माध्यमों/ज्योतिषियों/पंचांग/प्रवचनों/मान्यताओं/धर्मग्रंथों/दंतकथाओं से संग्रहित की गई हैं। पाठकों से अनुरोध है कि लेख को अंतिम सत्य अथवा दावा न मानें एवं अपने विवेक का उपयोग करें। दैनिक जागरण तथा जागरण न्यू मीडिया अंधविश्वास के खिलाफ है।