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    Banbhoolpura Violence: हाईकोर्ट ने की त्वरित टिप्पणी, कहा- 'तीन महीने में 12 गवाहों के दर्ज किए बयान'

    Updated: Fri, 30 Aug 2024 11:19 AM (IST)

    Banbhoolpura Violence हाईकोर्ट ने बनभूलपुरा उपद्रव में शामिल 50 लोगों को जमानत देने पर त्वरित टिप्पणी की। हाईकोर्ट ने पाया कि अपीलकर्ता 13 फरवरी व 16 फरवरी से न्यायिक हिरासत में हैं। 90 दिनों की अवधि समाप्त हो चुकी है। 16 अप्रैल को जब्त किए गए सामान को 18 मई को भेजा गया जब 90 दिनों की अवधि समाप्त हो चुकी थी।

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    Banbhoolpura Violence: जांच की धीमी गति पर हाईकोर्ट ने की त्वरित टिप्पणी। फाइल फोटो

    जासं, हल्द्वानी। Banbhoolpura Violence: हाईकोर्ट ने बनभूलपुरा उपद्रव में शामिल 50 लोगों को जमानत देने पर त्वरित टिप्पणी की। हाईकोर्ट ने कहा कि तीन महीने में केवल आठ सरकारी गवाहों व चार सार्वजनिक गवाहों के बयान दर्ज किए गए। जिस तरह से जांच चल रही है उससे पता चलता है कि जांच अधिकारी ने कितनी धीमी गति से जांच की है। वह भी ऐसे मामले में जब अपीलकर्ता न्यायिक हिरासत में पड़े हुए हैं।

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    हाईकोर्ट ने वकीलों की दलीलें सुनने, रिकार्ड खंगालने व निचली कोर्ट के रिकार्ड का निरीक्षण करने के बाद पाया कि अपीलकर्ता 13 फरवरी व 16 फरवरी से न्यायिक हिरासत में हैं। 90 दिनों की अवधि समाप्त हो चुकी है। इस दौरान जांच में कोई महत्वपूर्ण प्रगति नहीं हुई है। जिस तरह से जांच चली वह तब और स्पष्ट हो जाती है जब हम देखते हैं कि 13 को बरामद किए गए।

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    90 दिनों की अवधि समाप्त

    हथियारों को 45 दिनों की अत्यधिक व अनियंत्रित देरी के बाद केवल एक अप्रैल 2024 को एफएसएल भेजा गया। 16 अप्रैल को जब्त किए गए सामान को 18 मई को भेजा गया, जब 90 दिनों की अवधि समाप्त हो चुकी थी।

    हाईकोर्ट ने टिप्पणी करते हुए कहा कि जांच अधिकारी की ओर से दिए गए कारण हमें प्रभावित नहीं करते हैं कि जांच अभी भी पूरी होने के लिए अपीलकर्ता की हिरासत की आवश्यकता थी। यह काफी आश्चर्यजनक है कि जांच के लिए दिखाए गए कारणों में से एक यह है कि अभियोजन स्वीकृति का इंतजार किया जा रहा है।

    अपीलकर्ता को निरोध में बने रहने की अनुमति नहीं दे सकते

    हाईकोर्ट ने कहा है कि जीवन और स्वतंत्रता का अधिकार भारतीय संविधान के सबसे महत्वपूर्ण और पवित्र मौलिक अधिकारों में से एक है। विभिन्न कानूनों के नाम पर लोगों को हिरासत में रखना और जांच की तत्परता का पालन किए बिना, ऐसे कानून अपीलकर्ता को निरोध में बने रहने की अनुमति नहीं दे सकते।

    अपीलकर्ताओं को नहीं कर सकते परेशान

    हाईकोर्ट ने कहा है कि हमने जांच में तत्परता नहीं देखी। जांच सुस्त थी और ऐसी सुस्त जांच के लिए अपीलकर्ताओं को परेशान नहीं किया जा सकता है। यूएपीए की धारा 43डी(2)(बी) का प्रावधान। अधिनियम, 1967 90 दिनों की अवधि का अपवाद है और इसका सहारा तभी लिया जा सकता है जब 90 दिनों की अवधि के भीतर जांच पूरी करना संभव न हो।

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    यदि न्यायालय जांच की प्रगति और आरोपी को 90 दिनों की उक्त अवधि से अधिक हिरासत में रखने के विशिष्ट कारणों का संकेत देने वाली लोक अभियोजक की रिपोर्ट से संतुष्ट है तो वह इस अवधि को 180 दिनों तक बढ़ाने का आदेश दे सकता है। जैसा कि पहले लोअर कोर्ट रिकार्ड और केस डायरी के अवलोकन से कहा गया है।

    90 दिनों की अवधि के भीतर यह कानून की मंशा नहीं हो सकती कि जांच अधिकारी चुप रहा और तत्परता से जांच आगे नहीं बढ़ाई और केवल 90 दिनों की अवधि समाप्त होने पर वह अचानक एक आवेदन दायर करने के लिए अपनी नींद से जाग गया कि अतिरिक्त समय की आवश्यकता है।