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    दुराचार के मामले में Nainital High Court की तल्‍ख टिप्पणी, कहा- 'हथियार के रूप में हो रहा कानून का इस्तेमाल'

    By kishore joshiEdited By: Nirmala Bohra
    Updated: Fri, 21 Jul 2023 10:10 AM (IST)

    Nainital High Court हाई कोर्ट ने दुराचार के एक मामले में याचिकाकर्ता के विरुद्ध दुराचार का केस खारिज करते हुए बेहद तल्ख टिप्पणी की है। न्यायाधीश न्याय ...और पढ़ें

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    Nainital High Court ने दुराचार के एक मामले में याचिकाकर्ता के विरुद्ध बेहद तल्ख टिप्पणी की है

    टीम जागरण, नैनीताल: हाई कोर्ट ने दुराचार के एक मामले में याचिकाकर्ता के विरुद्ध दुराचार का केस खारिज करते हुए बेहद तल्ख टिप्पणी की है कि कुछ महिलाएं दुराचार क़ानून का हथियार के तौर पर इस्‍तेमाल कर रही हैं और ऐसा बड़े पैमाने पर हो रहा है।

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    न्यायाधीश न्यायमूर्ति शरद कुमार शर्मा की एकलपीठ ने पांच जुलाई को पारित आदेश पारित कर यह टिप्पणी की है। आदेश में यह भी कहना है कि मॉडर्न समाज में जैसे ही महिला और पुरुष पार्टनर के बीच मतभेद होता है, सेक्शन 376 का दुरुपयोग किया जाने लगता है।

    सेक्शन 376 का दुरुपयोग

    भीमताल क्षेत्र की महिला की हल्द्वानी निवासी मनोज कुमार के बीच 2005 से दोस्ती थी। रिलेशन शुरू होने के 15 साल बाद महिला ने कहा था कि शादी का वादा कर उसके साथ दुष्‍कर्म किया गया और मुकदमा दर्ज कराया। मनोज की 2019 में दूसरी जगह शादी हो गई।

    कोर्ट ने कहा कि जब महिला को पता चल गया कि वह आदमी शादीशुदा है, उसके बाद भी महिला ने उसके साथ संबंध रखा। कोर्ट ने याचिकाकर्ता मनोज के याचिकाकर्ता खिलाफ, आपराधिक कार्रवाई व सम्मन आदेश को रद कर दिया। कोर्ट ने कहा है कि पहले वे खुद पुरुष मित्र के साथ होटलों से लेकर कई जगह अपनी मर्जी से जाती है, फिर जब किसी महिला व पुरुष साथी के बीच मतभेद पैदा होता है तो इस कानून का दुरूपयोग करती है।

    कोर्ट ने यहां कहा कि जो इस तरह के गलत व झूठे आरोप लगाती है तो ऐसी महिला को तो जेल भेज देना चाहिए। कोर्ट ने एक अन्य मामले में कहा कि एक युवती ले तो खुद अपने केस की पैरवी करते हुए कहा कि उसके मित्र पुरुष ने शादी का झांसा देकर कई जगह ले जाकर उसकी मर्जी के बिना शारीरिक संबंध बनाए।

    कोर्ट ने कहा कि शारीरिक संबंध उसके पंद्रह वर्ष पूर्व से बने आ रहे है। और एफआइआर अभी की जा रही है। आखिर क्यों। खुद अपनी मर्जी से जाती है। कोर्ट ने कहा कि ऐसे कई मामले सामने आ रहे है, जिसमें साफ नजर आ रहा है कि महिलाए इस कानून का दुरूपयोग कर रहीं है। कई महिलाएं यह जानते हुए कि उसका पुरुष मित्र पहले से ही शादीशुदा है उसके बाद भी संबंध बनाती है और बाद में शादी का झांसा देकर दुष्‍कर्म के नाम पर मुकदमा दर्ज करवाती है।

    कोर्ट ने कहा कि जो युवती ऐसा कर रही है, वह बालिग व समझदार है, बच्ची नहीं है, जो पुरुष के झांसे में आ जाती है। याचिकाकर्ता ने इस संबंध में सुप्रीम कोर्ट के निर्णय का हवाला देते हुए कहा कि एक मामले में सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट किया है कि जब किसी बालिग के साथ सहमति से शारीरिक संबंध बनाए जाते है तो वह दुष्‍कर्म की श्रेणी में नहीं होगा।

    आदेश के बिंदु

    वर्तमान मामले के तथ्य यह हैं कि यह वास्तव में एक शिकायतकर्ता का मामला है कि मई 2005 से पहले पिछले एक दशकों से अधिक समय से वह वर्तमान आवेदक के साथ अंतरंग रिश्ते में थी और उसके साथ उक्त रिश्ता इस हद तक चला गया था। जहां उन्होंने एक-दूसरे को शादी करने का आश्वासन दिया था। जैसे ही उनमें से किसी एक को नौकरी मिल जाएगी।

    शिकायतकर्ता महिला की ओर से यह तर्क दिया गया है कि उक्त बहाने से दोनों पक्षों के घर पर ही शारीरिक संबंध स्थापित हुआ, जो काफी समय तक स्थापित होता रहा और उसके बाद भी जब वर्तमान आवेदक ने किसी अन्य महिला से विवाह कर लिया। तब भी शिकायतकर्ता द्वारा आवेदक के साथ शारीरिक संबंध स्थापित किये गये।

    जब शिकायतकर्ता ने इस तथ्य को जानने के बाद भी स्वेच्छा से संबंध स्थापित किया था कि आवेदक पहले से ही एक विवाहित व्यक्ति है, तो सहमति का तत्व स्वयं ही इसमें समाहित हो जाता है और एक बार यह स्थापित हो जाता है कि सहमति मौजूद है और जो तत्काल मामले में काफी स्पष्ट है।

    जब 2015 से एफआइआर के पंजीकरण की तारीख तक, जब वर्तमान एफआइआर से पहले शिकायतकर्ता ने कोई शिकायत दर्ज नहीं की गई थी, जब किसी भी प्रकृति का कोई प्रतिशोध नहीं था।

    आइपीसी की धारा 376 के तहत अपराध के घटित होने के बारे में स्वीकार किया जाए। उस स्थिति में, यह शिकायतकर्ता की जिम्मेदारी थी, कि वह अपनी चिकित्सकीय जांच करा सकती थी कि क्या यह उसकी सहमति के खिलाफ किया गया अपराध था और एक प्रतिशोध जो उसके मेडिकल के बाद ही स्थापित किया जा सकता था।