पहाड़ पर जलवायु परिवर्तन के कारण 50 प्रतिशत से अधिक जलधाराएं सूखीं, मचेगा हाहाकार
उत्तराखंड विज्ञान शिक्षा एवं अनुसंधान केंद्र व पवलगढ़ प्रकृति प्रहरी की ओर से नौला फाउंडेशन द्वारा पवलगढ़ में जल संरक्षण को लेकर पानी की आवाज सुनो कार्यशाला आयोजित किया गया।
रामनगर, जेएनएन : उत्तराखंड विज्ञान शिक्षा एवं अनुसंधान केंद्र व पवलगढ़ प्रकृति प्रहरी की ओर से नौला फाउंडेशन द्वारा पवलगढ़ में जल संरक्षण को लेकर पानी की आवाज सुनो कार्यशाला आयोजित किया गया। जिसमें वक्ताओं ने चेताया कि यदि समय रहते पानी का संरक्षण नहीं किया गया तो हाहाकार मचना तय है।
सेमिनार के आखिरी दिन रविवार को दूर दराज से आए वैज्ञानिकों व पर्यावरणविदों ने कार्यशाला में अपनी बात रखी। नौला फाउंडेशन के स्वामी वीत तमसो ने कहा कि पर्यावरण संरक्षण से संबंधित सारी चर्चाएं महज लेखों, बातों व सोशल मीडिया तक ही सीमित रह गई हैं। धरती पर अब 22 फीसद वन क्षेत्र ही बचा है। जो अपने आप में एक खतरे की घंटी है। पर्यावरण असंतुलन को रोकने के लिए भागीरथी प्रयास होते रहे हैं। लेकिन स्थिति जस की तस है। विकास यूसर्क के निदेशक वैज्ञानिक प्रो. दुर्गेश पंत ने कहा कि भारत जैसे देश में अधिकांश शहर आज प्रदूषण की चपेट में है। पर्यावरणीय संकेतों तथा विकास के सतत पोषणीय स्वरूप की अवहेलना कर अनियंत्रित आर्थिक विकास की आंच हिमालय तक आ चुकी है। हिमालय से निकली नदियों का पूरे देश से सीधा संबंध है। पर्यावरण में चमत्कारी रूप से विद्यमान तथा जीवन प्रदान करने वाली नदियां आज प्रदूषित होकर मानव जीवन के लिए खतरनाक और कुछ हद तक जानलेवा हो गई है। पवलगढ़ प्रहरी के संस्थापक मनोहर मनराल ने कहा देश में चुनाव चल रहे है। किसी ने पर्यावरण जैसे संवेदनशील मुद्दे को गंभीरता से नहीं लिया।
सदानीरा कोसी, गौला, दाबका नदियों के साथ साथ कई गधेरों का पानी सूखने की कगार पर हैं। यदि एक बार नदियां सूखने लगती हैं तो मानव का अस्तित्व खतरे में पड़ जाएगा। वरिष्ठ वैज्ञानिक डॉ. गिरीश नेगी ने कहा उत्तराखंड में नौले धारे सूख रहे हैं इसके लिए हम सब जिम्मेदार हैं। पर्यावरणविद किशन भट्ट कहना था कि जल स्रोत नौले, धारे, गधेरो के साथ वहां की जैव विविधता को भी बचाना जरूरी है। नौला फाउंडेशन के राष्ट्रीय अध्यक्ष बिशन सिंह ने कहा कि उनकी संस्था का मकसद नौलो धारो को संरक्षित करना ही है। डॉ. भारद्वाज ने कहा जलवायु परिवर्तन के कारण 50 प्रतिशत से ज्यादा जल धाराएं सूख चुकी है और जो बची है उनमें भी सीमित जल ही बचा है। स्थानीय जन भागीदारी में महिलाओं को भी अब आगे आना होगा और सरकार को हिमालय के लिए एक ठोस नीति बनानी होगी। पर्यटकों पर पर्यावरण शुल्क भी लगाने के साथ साथ प्लास्टिक पर पूर्णत: प्रतिबंध लगाना होगा। इस दौरान पर्यावरणविद डॉ. रीमा पंत, डॉ. नवीन जोशी, गिरीश नेगी, भूपेंद्र मनराल, बिशन सिंह, सुशीला सिंह, धीरेश जोशी, गजेंद्र पाठक, संदीप मनराल, सुमित बनेशी आदि थे।
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