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वन अनुसंधान केंद्र की पहल, शंकराचार्य और स्वामी विवेकानंद के तप वृक्षों का होगा संरक्षण

वन विभाग एक अनूठी पहल के तहत धार्मिक व ऐतिहासिक महत्व की वनस्पतियों का संरक्षण करने जा रहा है।

By Skand ShuklaEdited By: Published: Sun, 14 Apr 2019 03:43 PM (IST)Updated: Sun, 14 Apr 2019 03:43 PM (IST)
वन अनुसंधान केंद्र की पहल, शंकराचार्य और स्वामी विवेकानंद के तप वृक्षों का होगा संरक्षण
वन अनुसंधान केंद्र की पहल, शंकराचार्य और स्वामी विवेकानंद के तप वृक्षों का होगा संरक्षण

हल्द्वानी, गोविंद बिष्ट : वन विभाग एक अनूठी पहल के तहत धार्मिक व ऐतिहासिक महत्व की वनस्पतियों का संरक्षण करने जा रहा है। इनमें वे पेड़ भी शामिल हैं, जिसके नीचे बैठकर आदि गुरु शंकराचार्य व स्वामी विवेकानंद ने तप किया था। शंकराचार्य के तप वाला वृक्ष जोशीमठ में आज भी खड़ा है। इसके अलावा रीठा साहिब की पहचान माने जाने वाले रीठा के वृक्ष का भी संरक्षण होगा। देवभूमि में मौजूद इन विश्व प्रसिद्ध धरोहरों के संरक्षण का मुख्य उद्देश्य लोगों में पर्यावरण संरक्षण की अलख जगाना है।

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वन अनुसंधान केंद्र (एफटीआइ) हल्द्वानी अक्सर उन वनस्पतियों को बचाने की कोशिश करता है, जो विलुप्ति की कगार पर पहुंच चुकी हैं। प्रदेश में बड़ी संख्या में औषधीय वनस्पतियां होने के कारण इन पर भी खास फोकस रहता है। वन अनुसंधान केंद्र के संरक्षक संजीव चतुर्वेदी के मुताबिक, आस्था से जुड़े इन पेड़ों का संरक्षण जरूरी है। धार्मिक मान्यता व इतिहास होने के कारण अनुसंधान केंद्र यह काम कर रहा है। कोशिश है कि उत्तराखंड के अलावा बाहरी प्रदेशों में मौजूद इस तरह की वानस्पतिक धरोहर को आगे बढ़ाया जाए। बीज व अन्य तरीकों का इस्तेमाल कर इनकी पौध नर्सरी में तैयार कराई जा रही है।

इन धरोहर का होगा संरक्षण

काकड़ीघाट में स्वामी विवेकानंद का तप वृक्ष

अल्मोड़ा से 22 किमी पहले हाईवे किनारे स्थित काकड़ीघाट में साल 1890 में स्वामी विवेकानंद हिमालय यात्रा के तहत पहुंचे थे। नदी के तट पर स्नान के बाद वह पास मौजूद पीपल के पेड़ तले ध्यानमग्न हो गए। यहीं पर उन्हें ब्रह्मांड का ज्ञान प्राप्त हुआ था। साल 2010 में आए प्रलय के बाद यह वृक्ष सूखने लग गया। चार साल पहले पंतनगर कृषि विवि ने इसका क्लोन तैयार किया। अब वन अनुसंधान केंद्र नर्सरी में इसकी पौध तैयार करा रहा है।

आदि शंकराचार्य का कल्पवृक्ष आज भी मौजूद

पौराणिक कथाओं के मुताबिक आदि गुरु शंकराचार्य ने जोशीमठ में कल्पवृक्ष के नीचे कठिन तप किया था। यह पेड़ आज भी मौजूद है। जो फैलता जा रहा है। वन अनुसंधान केंद्र इसके बीजों का चयन कर उन्हें रोपित करेगा।

रीठासाहिब का रीठा भी नर्सरी में संरक्षित होगा

चपांवत जिले में स्थित रीठासाहिब गुुरुद्वारा सिखों का बड़ा धार्मिक स्थल है। मान्यता के मुताबिक गुरु नानक देव यहां भ्रमण को पहुंचे थे। इस दौरान वह रीठे के एक पेड़ के नीचे बैठे गए। इस बीच किसी ने उनसे भूख लगने की बात कही। जिस पर उन्होंने पेड़ से रीठा तोड़ कर खाने को दिया। रीठे को कड़वा माना जाता है, लेकिन नानक देव का स्पर्श होने पर यह मीठा हो गया। यह देख सभी लोग माथा टेकने लग गए। उसके बाद से गुरुद्वारे का नाम गुरुद्वारा रीठा साहिब पड़ गया।

नीम करौली बाबा का बरगद भी संरक्षित होगा

वन अनुसंधान केंद्र के मुताबिक काकड़ीघाट के पास नदी किनारे एक छोटा सा मंदिर है, जिसके नीचे बाबा नीम करौली महाराज अक्सर ध्यान लगाते थे। यह बरगद का विशालकाय पेड़ आज भी खड़ा है। एफटीआइ स्थित नर्सरी में धार्मिक महत्व के इस पेड़ को संरक्षित करने के उद्देश्य से पौध तैयार करवाई जाएगी।

मदन बिष्ट तैयार करेंगे पौध

वन अनुसंधान केंद्र के प्रभारी मदन बिष्ट की देखरेख में एफटीआइ स्थित देव वाटिका में इन धार्मिक महत्व के वृक्षों का संरक्षण होगा। इससे पूर्व वह कई दुर्लभ प्रजातियों की वनस्पति यहां तैयार कर चुके हैं।

सभी धर्मों से जुड़ी वन‍स्‍पतियों को शामिल किया जाएगा

संजीव चतुर्वेदी, वन संरक्षक अनुसंधान केंद्र  ने कहा कि धार्मिक मान्यताओं से जुड़ा होने के कारण लोगों का इन धरोहरों के प्रति खास लगाव है। लिहाजा इनके संरक्षण को लेकर काम किया जा रहा है। सभी धर्मों से जुड़ी वनस्पतियों को इसमें शामिल किया जाएगा।

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