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    सरकार की हीलाहवाली से बंद हो सकता है खनन, रोजगार का बढ़ेगा संकट

    By Skand ShuklaEdited By:
    Updated: Tue, 08 Jan 2019 06:53 PM (IST)

    कुमाऊं में खनन कारोबार रोजगार का बड़ा साधन है। वहीं सरकारी खजाना भरने में भी इससे मिलने वाला राजस्व अहम माना जाता है।

    सरकार की हीलाहवाली से बंद हो सकता है खनन, रोजगार का बढ़ेगा संकट

    हल्द्वानी, जेएनएन : कुमाऊं में खनन कारोबार रोजगार का बड़ा साधन है। वहीं सरकारी खजाना भरने में भी इससे मिलने वाला राजस्व अहम माना जाता है। वहीं जब बात पैरवी की आती है तो शासन की हीलाहवाली इसमें भी शुरू हो जाती है, जिस वजह से नंधौर में लगातार संकट के बादल आ रहे हैं। सरकारी लापरवाही का आलम अगर यही रहा तो भविष्य में नदियों में फावड़े-बेलचों की खनक बंद हो जाएगी, जिसका खामियाजा आम लोगों से लेकर सरकार तक को भुगतना पड़ेगा।

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    नंधौर में खनन से सरकार को रोजाना 25 लाख से अधिक राजस्व मिलता है तो हजारों लोगों की रोजी-रोटी भी चलती है। नंधौर सेंचुरी की स्थापना साल 2012 में हुई थी, जबकि खनन की शुरुआत व इंडस्ट्री एरिया की स्थापना इसके पहले ही हो गई थी। वहीं हाल में ईको सेंसेटिव जोन का नया फार्मूला तैयार करने के लिए सरकारी मशीनरी एकजुट तो हुई लेकिन शासन स्तर पर इसके पहुंचने के बाद एक बार फिर से यह मामला लटक गया। दरअसल, खनन व इंडस्ट्री को बचाने के लिए ईको सेंसेटिव जोन का दायरा दस किमी से ढाई किमी करने के कवायद चल रही है। क्योंकि राज्य की विषम परिस्थितियों के हिसाब से राज्य को इसके निर्धारण की अनुमति है। हालांकि राज्य सरकार को प्रस्ताव को माध्यम से केंद्रीय वन एवं पर्यावरण मंत्रालय में इसकी पैरवी करनी होगी। दलील व तथ्यों के आधार पर ही जोन के नए फार्मूले को मंजूरी मिल सकती है। वहीं अधिकारियों के मुताबिक शासन स्तर से इसे जल्द केंद्र को भेजा जाना है।

    इको सेंसेटिव जोन को समझें

    एक निश्चित दायरे को पर्यावरण एवं वन्यजीवों के लिहाजा से संवेदनशील मानकर उसे इको सेंसेटिव जोन घोषित किया जाता है। फैक्ट्री, रिसॉर्ट, स्टोन क्रशर समेत अन्य व्यावसायिक गतिविधियों का संचालन यहां प्रतिबंधित माना जाता है। किसी भी विकास कार्य को अमलीजामा पहनाने से पूर्व तमाम अनुमतियों से गुजरना पड़ेगा।

    सितारगंज व खटीमा के उद्यमी परेशान

    नंधौर सेंचुरी का एरिया नैनीताल, ऊधम सिंह नगर व चंपावत जिले तक पड़ता है। हालांकि अधिकांश उद्योग सितारगंज व खटीमा में स्थापित हैं। करीब दो सौ छोटे-बड़े उद्योग सेंसेटिव जोन से प्रभावित हो सकते हैं। वहीं बार-बार एनजीटी का आदेश आने की वजह से इनके चिंता बढ़ती जा रही है। उसके बावजूद पैरवी में दिलचस्पी नजर नहीं आ रही।

    नवंबर 2017 में बोर्ड को मंजूरी मिली थी

    नवंबर 2017 में स्टेट वाइल्ड लाइफ बोर्ड को मंजूरी मिली थी। इससे पूर्व नौ माह तक यह वजूद में नहीं था। राज्य में 13 पार्क व सेंचुरी है। इनका दो से दस किमी दायरा इको सेंसेटिव जोन है। सेंचुरी के आसपास इको सेंसेटिव जोन का निर्धारण करने में बोर्ड की अहम भूमिका होती है। केंद्र को भेजा जाने वाला प्रस्ताव इसी के माध्यम से तैयार होता है।

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