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भीष्म पितामह-युधिष्ठिर संवाद से पर्यावरण संरक्षण का संदेश, उत्तराखंड में यहां बनी महाभारत वाटिका

मुख्य वन संरक्षक संजीव चतुर्वेदी ने आम लोगों को पर्यावरण संरक्षण के प्रति जागरूक करने के लिए पौधों के धार्मिक ऐतिहासिक औषधीय दुर्लभता व सजावटी महत्व को अलग-अलग वाटिकाओं के माध्यम से उभारा है। इसके तहत रामायण वाटिका कृष्ण वाटिका बुद्ध वाटिका शहीद वाटिका सर्वधर्म सद्भाव वाटिका का निर्माण किया।

By Prashant MishraEdited By: Published: Tue, 07 Dec 2021 04:38 PM (IST)Updated: Tue, 07 Dec 2021 06:02 PM (IST)
भीष्म पितामह-युधिष्ठिर संवाद से पर्यावरण संरक्षण का संदेश, उत्तराखंड में यहां बनी महाभारत वाटिका
महाभारत काल में मिलने वाली पेड़-पौधों की प्रजातियों का एक बोर्ड के माध्यम से यहां ब्यौरा भी दिया गया है।

हल्द्वानी से गोविंद बिष्ट। धर्म और इतिहास के साथ पर्यावरण का रिश्ता जोड़ इसके संरक्षण की दिशा में उत्तराखंड वन अनुसंधान केंद्र्र ने अनूठा प्रयास किया है। हल्द्वानी स्थित मुख्यालय परिसर में महाभारत वाटिका का निर्माण हो चुका है। वाटिका के जरिये बताया गया है कि कैसे बाणों की शैया पर लेटे भीष्म पितामह ने युधिष्ठिर को पेड़-पौधों का महत्व बताया था। तब भीष्म ने पेड़-पौधों को पूर्वजों व संतानों से जोड़ा था। महाभारत काल में मिलने वाली पेड़-पौधों की प्रजातियों का एक बोर्ड के माध्यम से यहां पूरा ब्यौरा भी दिया गया है।

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पौधों के अलग-अलग महत्व बताए

अनुसंधान केंद्र के मुख्य वन संरक्षक संजीव चतुर्वेदी ने आम लोगों को पर्यावरण संरक्षण के प्रति जागरूक करने के लिए पौधों के धार्मिक, ऐतिहासिक, औषधीय, दुर्लभता व सजावटी महत्व को अलग-अलग वाटिकाओं के माध्यम से उभारा है। इसके तहत रामायण वाटिका, कृष्ण वाटिका, बुद्ध वाटिका, शहीद वाटिका, सर्वधर्म सद्भाव वाटिका व डायनासोर पार्क आदि का निर्माण किया।

इस क्रम में अब महाभारत काल से भी पर्यावरण को जोड़ा गया है। नवनिर्मित वाटिका में लगाए गए बोर्ड पर उन 37 प्रजातियों की जानकारी दी गई है जिनका महाभारत में वर्णन है। इनमें से शमी, पीपल, बरगद, सीरस, बांस, बहेड़ा, गूलर, धाक, कटहल, अमलतास आदि को यहां रोपित भी गया है।

महाभारत में है शमी का वर्णन

महाभारत के मुताबिक अज्ञातवास के समय पांडवों ने अर्जुन के गांडीव समेत अन्य अस्त्र-शस्त्रों को विराटनगर में यमुना नदी के किनारे सफेद कपड़े में लपेट शमी के पेड़ में छुपा दिया था। फिर विजयादशमी के दिन अस्त्र-शस्त्रों को बाहर निकाला गया। इसके बाद कौरवों के विरुद्ध पांडव युद्ध में उतरे। अनुसंधान केंद्र की नर्सरी में तीरों पर लेटे भीष्म पितामह की प्रतिमा के साथ बोर्ड पर उनके व युधिष्ठिर के मध्य हुए संवाद को आकर्षक तरीके से प्रस्तुत किया गया है।

...तब भीष्म ने युधिष्ठिर से यह कहा

महाभारत के अनुशासन पर्व के 58वें अध्याय में भीष्म ने युधिष्ठिर से कहा था, 'अतीतानागते चोभे पितृवंश च भारत। तारयेद् वृक्षरोपी च तस्मात् वृक्षांश्च रोपयेत्'। यानी हे युधिष्ठिर! वृक्षों का रोपण करने वाला मनुष्य अतीत में जन्मे पूर्वजों और भविष्य में जन्म लेने वाली संतानों एवं अपने पितृवंश का तारण करता है। इसलिए उसे चाहिए कि पेड़-पौधे लगाए। दूसरे उपदेश में कहा गया, 'तस्य पुत्रा भवन्त्येते पादपा नात्र संशय। परलोगत: स्वर्ग लोकांश्चाप्नोति सोव्ययान्'। यानी मनुष्य द्वारा लगाए गए पौधे वास्तव में उसके पुत्र होते हैं, इस बात में कोई शंका नहीं है। जब उस व्यक्ति का देहावसान होता है तो उसे स्वर्ग एवं अन्य अक्षय लोग प्राप्त होते हैं।

बाघ वन के और वन बाघ के रक्षक

वर्तमान में बाघों की सुरक्षा को लेकर तमाम प्रोजेक्ट चलते हैं। महाभारत काल में भी बाघों को बचाने का संदेश दिया गया था। उद्योग पर्व में कहा गया है, 'निर्वनो वघ्यते व्याघ्रो निव्र्याघं छिद्यते वनम्। तस्माद्व्याघ्रो वनं रक्षेद्वयं व्याघ्रं च पालयेत्'। यानी वन न हो, तो बाघ मारा जाता है। यादि बाघ नहीं हो तो वन नष्ट हो जाता है। अत: बाघ वन की रक्षा करता है एवं वन बाघ की रक्षा करते हैं।

देश के अंतिम गांव माणा तक मुहिम

वन अनुसंधान केंद्र द्वारा लगातार नए प्रोजेक्ट धरातल पर उतारे जा रहे हैं। उत्तराखंड के हल्द्वानी से लेकर देश के अंतिम गांव माणा (चमोली) तक वनस्पतियों का संरक्षण किया गया है। हल्द्वानी में पुलवामा व गलवन हमले में शहीद हुए वीर जवानों की याद में वाटिका का निर्माण कर हर शहीद के नाम पर अलग-अलग पौधों का संरक्षण किया गया है। वहीं माणा गांव में ब्रह्मकमल समेत 40 दुर्लभ प्रजातियों को नर्सरी में लगाया गया है। इसके अलावा 124 साल बाद आर्किड की दुर्लभ प्रजाति लिपरिस पाइग्मिया को तप्तकुंड में ढूंढने की उपलब्धि को फ्रांस की प्रतिष्ठित शोध पत्रिका रिचर्डियाना ने प्रकाशित किया था। नैनीताल जिले के लालकुआं में देश के पहले ऐरोमेटिक गार्डन को भी संजीव चतुर्वेदी ने स्थापित कराया है।

रानीखेत में देश का पहला ग्रास प्रजाति संरक्षण केंद्र तैयार

रानीखेत स्थित कालिका वन अनुसंधान केंद्र्र में देश का पहला घास प्रजाति संरक्षण केंद्र हाल में अस्तित्व में आया है। फिलहाल यहां घास की 95 प्रजातियां उगाई गई हैं। इनमें सुगंध व औषधीय के साथ ही धार्मिक महत्व वाली प्रजातियों को जगह दी गई है। यह अनूठा जोन मानवजीवन एवं पर्यावरण केलिए बेहद अहम घास की विभिन्न किस्मों के संरक्षण तथा शोध व अध्ययन की राह भी दिखाएगा।

मुख्य वन संरक्षक संजीव चतुर्वेदी का कहना है कि महाभारत का अध्ययन करने के बाद इस वाटिका को तैयार किया गया है। धर्म में हमेशा पर्यावरण को बचाने का संदेश मिला है। कोशिश है कि लोग इस संदेश को अपने जीवन में उतारें। 

श्रीमद्भागवत कथावाचक पं नवीन चंद्र जोशी ने बताया कि महाभारत में भीष्म पितामह व युधिष्ठिर संवाद में हमें स्पष्ट रूप से पर्यावरण संरक्षण का संदेश मिलता है। इसके अलावा वेद-पुराणों में भी पर्यावरण संरक्षण की महत्ता पर विस्तार से बताया गया है। इनमें वृक्षों को पुत्रों के समान बताया गया है। हमें बच्चों के समान ही वृक्षों का पोषण करना चाहिए, जिससे कि प्रकृति व जीव सुरक्षित रह सकें।


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