Maharashtra Political Crisis : महाराष्ट्र राजनीतिक संकट ने ताजा कर दी उत्तराखंड की याद, देश में यहीं से शुरू हुआ BJP का ऑपरेशन लोटस
Maharashtra Political Crisis वर्तमान में उपजे महाराष्ट्र के सियासी संकट की तरह ही 2016 में उत्तराखंड में कांग्रेस की हरीश रावत सरकार भी अस्थिर हो गई है। हालांकि तब सुप्रीम को आदेश से हरीश रावत सरकार बचाने में सफल हो गए थे।

हल्द्वानी, स्कंद शुक्ल : Maharashtra Political Crisis : महाराष्ट्र में बीते पांच दिनों से उपजे सियासी संकट ने उत्तराखंड के 2016 के प्रकरण को ताजा कर दिया है। असल में 2016 में केन्द्र में मोदी सरकार के सत्ता में आने के बाद भाजपा की निगाहें उत्तराखंड पर टिक गई थीं। तब दो साल पहले 2014 में कांग्रेस ने सूबे में विजय बहुगुणा को हटाकर सत्ता हरीश रावत को सौंप दी थी। इसके बाद से ही पार्टी में असंतोष के स्वर मुखर होने लगे थे। भाजपा की निगाहें तभी से उत्तराखंड की सत्ता पर टिक गई थीं। 2016 में कांग्रेस के विधायकों की बगावत के साथ ही भाजपा ने यहां आपरेशन लोटस भी शुरू कर दिया। हालांकि तब सुप्रीम कोर्ट के हस्तक्षेप के कारण भाजपा को निराश होना पड़ा था।
क्या था उत्तराखंड सियासी संकट
उत्तराखंड में 2016 में पूर्व सीएम विजय बहुगुणा, मंत्री हरक सिंह रावत सहित नौ विधायकों ने हरीश रावत सरकार से बगावत कर दी और भाजपा में शामिल हो गए। इसके बाद सरकार अल्पमत में आ गई। अपने विधायकों के बगावत करने से सदमे में आए हरीश रावत सरकार बचाने में जुटे थे कि इसी दौरान उनका विधायकों की खरीद फरोख्त का स्टिंग आपरेशन का विडियो मीडिया में वायरल हो गया। इसे लेकर भाजपा को और अधिक हमलावर होने का मौका मिल गया। तब हरीश रावत सरकार पर कई तरह के भ्रष्टाचार के आरोप भी लगे।
सुप्रीम कोर्ट के आदेश से बच गई थी हरीश रावत सरकार
कांग्रेस के सामने जब बहुमत सिद्ध करने की बात आई तो तत्कालीन विधानसभा अध्यक्ष गोविंद सिंह कुंजवाल ने बागी नौ विधायकों के मत को आयोग्य घोषित कर दिया। इसके बाद कांग्रेस सरकार तो किसी तरह बच गई। लेकिन उसके बाद केन्द्र सरकार ने राज्य में राष्ट्रपति शासन लगा दिया। इसके विरोध में हरीश रावत सरकार सुप्रीम कोर्ट पहुंच गई। कोर्ट के आदेश पर बागी विधायकों को दूर रखते हुए शक्ति परीक्षण कराया गया। 11 मई 2016 को बहुमत परीक्षण में हरीश रावत की जीत हुई।
इन राज्यों में फूट का भाजपा को मिला फायदा
अरुणाचल प्रदेश
कहते हैं जब-जब किसी राज्य में सत्ता पक्ष में फूट हुई है, उसका सीधा फायदा भाजपा को हुआ है। 2014 में हुए विधानसभा चुनाव के बाद अरुणाचल प्रदेश में कांग्रेस ने पूर्ण बहुमत की सरकार बनाई। 16 सितंबर 2016 को कांग्रेस के मुख्यमंत्री पेमा खांडू ने 42 विधायकों के साथ पीपुल्स पार्टी ऑफ अरुणाचल प्रदेश ज्वाइन कर ली। इसके बाद PPA ने BJP के साथ मिलकर सरकार बना ली।
कर्नाटक
2018 में कर्नाटक विधानसभा चुनाव में भाजपा को 225 में से 105 सीटें मिलीं। भाजपा सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी। BJP नेता बीएस येदियुरप्पा ने सीएम पद की शपथ भी ले ली, लेकिन फ्लोर टेस्ट पास नहीं कर पाए। इसके बाद उपचुनाव हुए और फिर भाजपा की सरकार सत्ता में आई। कांग्रेस ने अपने 78 विधायकों के साथ दूसरे दल जेडीएस को मिलाया, जिसके पास 37 सीटें थीं और राज्य में सरकार बना ली। लेकिन दो साल भी पूरे नहीं हुए थे कि कांग्रेस में बगावती तेवर बाहर आने लगे। फिर 2019 में कांग्रेस के 14 विधायकों सहित तीन जेडीएस के विधायकों ने इस्तीफा दे दिया। इसके बाद भाजपा फिर सत्ता में आ गई।
मध्य प्रदेश
230 विस सीटों वाले मध्य प्रदेश में भी 2018 में बड़ा सियासी उलटफेर हुआ। तब कांग्रेस के 114 विधायक जीत कर आए। भाजपा के पास 109 विधायक थे। दोनों ही पार्टियां बहुमत से दूर थीं, लेकिन कांग्रेस के पास सपा-बसपा के साथ कुछ अन्य निर्दलियों का समर्थन भी था। ऐसे में कमलनाथ ने तमाम दलों को साथ में लेकर सरकार बना ली। लेकिन 2020 में ज्योतिरादित्य सिंधिया ने कांग्रेस से इस्तीफा दे दिया 22 विधायकों के साथ भाजपा ज्वाइन कर ली। इसके बाद कमलनाथ की सरकार गिर गई और एक बार फिर शिवराज सिंह चौहान की सरकार सत्ता में आ गई।
गोवा
गोवा में 2017 में हुए विस चुनावों में कांग्रेस को 17 और भाजपा को 13 सीटें मिलीं। सरकार बनाने के लिए 21 सीटों का आंकड़ा पार करना था। ऐसे में छोटे दलों के साथ मिलकर भाजपा ने मनोहर पर्रिकर को आगे कर सरकार बनाई। हैरानी की बात ये रही कि तब कांग्रेस को सरकार बनाने का न्योता नहीं मिला, जबकि जो जीएफपी पार्टी कांग्रेस के साथ चुनाव लड़ रही थी उसने अंत समय में भाजपा का साथ दे दिया।
मणिपुर
60 विधानसभा सीटों वाले मणिपुर में भी साल 2017 में कुछ ऐसा ही हुआ। भाजपा के पास उस समय 21 सीटें थीं, जबकि कांग्रेस के पास 28। लेकिन आखिरी समय में भाजपा ने घेराबंदी शुरू कर दी और स्थानीय दलों के साथ मिलकर सरकार बना ली। एन बिरेन सिंह को मुख्यमंत्री बना दिया गया। हैरानी की बात ये रही कि भाजपा को समर्थन देने वालों में एक कांग्रेस का विधायक भी शामिल था।
बिहार
बिहार में भी साल 2015 में भाजपा को हराने के लिए गठबंधन करने के बाद नीतीश कुमार की जेडीयू और लालू प्रसाद यादव की आरजेडी ने कांग्रेस के साथ मिलकर चुनाव लड़ा। इस महागठबंधन की सरकार भी बनी। लेकिन नीतीश और तेजस्वी में तकरार बनी रही, जिसके बाद नीतीश कुमार ने गठबंधन का साथ छोड़कर भाजपा के साथ हाथ मिला लिया।
महाराष्ट्र
2019 में महाराष्ट्र में भाजपा-शिवसेना गठबंधन को बहुमत मिला। लेकिन मुख्यमंत्री पद को लेकर पेंच फंसा और दोनों दल अलग हो गए। इसी दौरान एक नाटकीय घटनाक्रम के बीच 23 नवंबर 2019 को ही सीएम के रूप में देवेंद्र फडणवीस और एनसीपी के अजीत पवार ने डिप्टी सीएम पद की शपथ ले ली। लेकिन फ्लोर टेस्ट पास नहीं कर सके। तभी NCP प्रमुख शरद पवार ने किंगमेकर के रूप में एंट्री ली और पार्टी के विधायकों को अजित के साथ जाने से रोक लिया, जिसके बाद उद्धव ठाकरे ने सीएम पद की शपथ ली। वहीं, अब एकनाथ शिंदे ने शिवसेना से बगावत कर उद्धव सरकार को संकट में ला दिया।
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