Kumaoni Food : नैनीताल आ रहे हैं तो कुमाऊं के इन व्यंजनों का स्वाद लेना न भूलें
Kumaoni Food उत्तराखंड के कुमाऊं क्षेत्र में खान-पान की अपनी परंपरा रही है। जिस पर भौगोलिक संरचना का काफी प्रभाव पड़ा है। यहां बनने वाले आलू के गुटके झिंगोरे की खीर भांग की चटनी मंडुए की रोटी नैनीताल की नमकीन और पहाड़ के भुट्टे खूब पसंद किए जाते हैं।
नैनीताल, जागरण संवाददाता : Kumaoni Food : मैदानी इलाकों में सूरज की तपिश बढ़ने के साथ ही लोगों ने राहत के लिए पहाड़ों का रुख करना शुरू कर दिया है। कोविड का प्रभाव कम होने के कारण उत्तराखंड के हिल स्टेशनों पर सैलानी जमकर बुकिंग करा रहे हैं। पर्यटन स्थलों पर लोगों की अच्छी खासी तादाद नजर आ रही है। पर्यटक पहाड़ के जायकों का भी खूब लुत्फ उठा रहे हैं। खासकर कुमाऊं का रीजनल फूड खूब पसंद किया जा रहा है। जिनमें आलू के गुटके, झिंगोरे की खीर, भांग की चटनी, मंडुए की रोटी, नैनीताल की नमकीन और पहाड़ के भुट्टे खूब पसंद किए जा रहे है।
आलू के गुटके (aloo ke gutke)
आलू के गुटके कुमाऊं के जायके की पहचान हैं। स्थानीय लोगों के साथ यहा पहुंचने वाले पर्यटक भी इसे खूब पसंद करते हैं। इसे कुमाऊंनी स्नैक्स भी कहा जाता है। इसे बनाने के लिए उबले हुए आलू को इस तरह से बनाया पकाया जाता है कि आलू का हर टुकड़ा अलग-अलग दिखता है। इसमें पानी का इस्तेमाल नहीं होता। यह मसालेदार होता है और लाल भुनी हुई मिर्च और धनिए के पत्तों के साथ इसे सर्व किया जाता है। आलू के गुटके के स्वाद को कई गुना बढ़ाने में ‘जखिया’ (एक प्रकार का तड़का) की बेहद अहम भूमिका होती है।
झिंगोरे की खीर (jhangore ki kheer)
उत्तराखंड में पौष्टिक अनाजों में से एक है झंगोरा। कुमाऊं में बनने वाली बारीक सफेद दाने वाले झंगोरा की खीर यहां के लोगों के साथ पर्यटक भी काफी पसंद करते हैं। झंगोरा की खीर स्वाद में जितनी लाजवाब है, सेहत के लिए उनकी ही लाभदायक है। खीर हर तरह से एक सहज और सुपाच्य भोज्य पदार्थ है। इसमें भरपूर कैलोरी, प्रोटीन, काबोहाइड्रेट्स जैसे पोषक तत्व भरपूर हैं। यह हृदय रोग और शुगर में फायदेमंद है। इसे किसी भी तरह के भोजन के बाद खाया जा सकता है।
नैनीताल की नमकीन (nainital ki namkin)
नैनीताल की नमकीन ने ग्राहकों के बीच जो लोकप्रियता पाई है वह अनूठी है। बिना ब्रांडिंग और विज्ञापन के बावजूद यहां नमकीन का जायका लोग भूल नहीं पाते हैं। प्रतिष्ठान का संचालन खीमानन्द के बाद उनके बेटो अखिलेश बवाड़ी व संजय बवाड़ी करते हैं। खीमानंनद ने बारह 12 तरह की नमकीन बनाने से शुरुआत की थी, और अब करीब 20 तरह की नमकीन बनाई जा रही हैं। लेकिन ज्यादातर लोगों की मांग मिक्स्ड नमकीन की ही रहती है।
भांग की चटनी (bhaang ki chutney)
भांग शब्द सुनते ही लोगों के दिमाग में नशे की बात आ जाती है। लेकिन अगर आप उत्तराखंड से हैं तो भांग से सबसे पहले आपको भांग की चटनी याद आयेगी। जिसे आलू के गुटके, मडुवे की रोटी, गहत के पराठे, गडेरी की सब्जी अन्य पहाड़ी व्यंजनों के साथ सर्व किया जाता है। भांग के पौधे के बीज भांग के फल की तरह नशा पैदा करने वाले नहीं होते हैं बल्कि ये सेहत के लिए लाभकारी होते हैं। बीजों में प्रोटीन, फाइबर, ओमेगा-3 और ओमेगा-6 फैटी एसिड होता है। भांग के बीजों से तैयार की जाती है भांग की चटनी। चटनी बनाने के लिए भंग के बीजों को पहले भूना जाता है फिर सिल-बट्टे या मिक्सी में पुदीने के पत्त हरी मिर्च नमक दो से चार चम्मच पानी डाला डालकर तैयार किया जाता है।
कुमाऊंनी रायता (Kumaoni Raita)
कुमाऊंनी रायते का लजीज स्वाद खाने का जायका बढ़ा देता है। स्वादिष्ट होने के कारण कुमाऊंनी रायता गढ़वाल-कुमाऊं में समान रूप से पसंद किया जाता है। गढ़वाल में इसे 'रैलू' कहते हैं। कुमाऊंनी रायता बनाने के लिए मिट्टी या लकड़ी के बर्तन में दो-एक दिन पहले राई या सरसों के बीजों का पाउडर मिलाकर दही जमाने के लिए रख दी जाती है। इस तरह दही को जमाने से रासायनिक क्रिया होती है। दही जमने के बाद उसमें कद्दूकस की हुई ककड़ी, जरूरत के हिसाब से नमक, मिर्च और मसाले मिक्स कर लेते हैं।
मडुए की रोटी (madua-ragi ki roti)
कुमाऊं के ज्यादातर घरो में मडुए के आटे को गेंहू के आटे के साथ मिलाकर रोटी बना कर खाई जाती है। यह शरीर को कई बीमारियों से निजात दिलवाता है। मडुआ के आटे में कैल्शियम, प्रोटीन जैसे तत्व पाएं जाते हैं। इसे अलग अलग जगह अलग अलग नामो से जाना जाता है। जहा कुमाऊँ में इसे मडुवा कहा जाता है तो वहीं तेलगु में इसे रागी के नाम से जाना जाता है। रागी या मडुआ का आटा पोष्टिक तत्वों से भरपूर अनाज की एक किस्म है जिसका इस्तेमाल रोटी, सूप, जूस, केक, चॉकलेट, हलुवा , बिस्किटस, चिप्स, और आर्युवेदिक दवा के रूप में होता है।
पहाड़ के भुट्टे (Pahad ka Bhutta)
पहाड़ के मुलायम और मीठे भुट्टे मक्खन और चटनी के साथ खाने के बाद उसका जायका कौन भूल सकता है। नैनीताल आने के दौरान काठगोदाम से ऊपर और भीमताल रोड किनारे बिकने वाले पहाड़ी भुट्टे पर्यटकों की पहली पसंद हैं। नैनीताल रोड पर ज्योलीकोट से चार किमी पहले भट्ट जी के भुट्टे तो सालों से पर्यटकों की पसंद हैं। दुकान चालने वाले भट्ट जी का कहना है की वो क्षेत्र के पास के सूर्या गांव, अमृतपुर गांव, ज्योलिकोट, डोलमार जैसे गांवों में खेतों को फसल लगाने के लिए लीज पर लेते हैं, जहां वो भुट्टे की फसल लगाते हैं। अप्रैल-मई के महीने से भुट्टे की शुरुआत हो जाती है जो सिलसिला अक्टूबर महीने तक चलता है।
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