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    जानिए 'झूठे का मंदिर' के पीछे की पौराणिक कथा, मां पूर्णागिरि पर आस्था बढ़ाने का भी है केंद्र

    By Skand ShuklaEdited By:
    Updated: Mon, 04 Nov 2019 11:55 AM (IST)

    मां पूर्णागिरि धाम से करीब एक किमी पहले स्थित झूठे का मंदिर मां के दरबार में आने वाले लाखों श्रद्धालुओं को जहां आकर्षित करता है।

    जानिए 'झूठे का मंदिर' के पीछे की पौराणिक कथा, मां पूर्णागिरि पर आस्था बढ़ाने का भी है केंद्र

    टनकपुर, दीपक सिंह धामी : मां पूर्णागिरि धाम से करीब एक किमी पहले स्थित झूठे का मंदिर मां के दरबार में आने वाले लाखों श्रद्धालुओं को जहां आकर्षित करता है वहीं मां के प्रति उनकी सच्ची आस्था व श्रद्धा को भी और बढ़ाता है। यह अलग बात है कि वहां पर पूजा अर्चना नहीं होती है फिर भी वहां पर मां की एक मूर्ति स्थापित की गई है। जहां श्रद्धालु फूल प्रसाद जरूर चढ़ाते हुए आगे बढ़ते हैं।

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    कुमाऊँ मंडल के चम्पावत जिले में प्रख्यात पूर्णागिरी मंदिर से एक किमी की दूरी पर है झूठे का मंदिर स्थित है। मंदिर के अनोखे नाम के पीछे भी एक दिलचस्प कहानी ही जुड़ी हुई है। किंवदंती के अनुसार एक दफा पीलीभीत उत्तर प्रदेश के एक बहुत बड़े सेठ ने माँ पूर्णागिरी के धाम आकर मन्नत मांगी थी। उसने देवी से एक पुत्र रत्न का वरदान माँगा और मनोकामना पूरी हो जाने के बाद एक सोने का घंटा भेंट चढ़ाने का संकल्प लिया। माँ पूर्णागिरी की अनुकम्पा से उक्त सेठ की मन्नत पूरी हुई। जल्दी ही उसके घर एक बेटे का जन्म हुआ। लेकिन जब संकल्प पूरा करने की बारी आई तो उसके मन में लालच आ गया। उसे लगा सोने का घंटा चढ़ाना तो बहुत खर्चीला होगा क्यों न तांबे के घंटे को भेंट कर ही काम चला लिया जाए। उसने मनौती का संकल्प पूरा करने के लिए एक ताम्बे का घंटा बनवाया और उसमें सोने का पानी चढ़वा दिया। ताम्बे का घंटा लेकर वह उसे देवी को समर्पित करने के लिए सेठ अपने मजदूरों संग चल पड़ा। रास्ता लम्बा था तो उसने आराम करने की गरज से दुन्यास पहुंचकर घंटा जमीन पर रखा। जैसे ही वह लेटा थका होने की वजह से उसे झपकी आ गयी। तरोताजा होकर वह उठा और पुन: चलने को उद्धत हुआ। यह क्या घंटा उठाने की कोशिश की तो वह अपनी जगह से हिला ही नहीं। उसने बहुत कोशिश की। उसके साथ मजदूरों ने भी उसे उठाने की काफी प्रयास किया लेकिन घंटा टस से मस नहीं हुआ। सेठ ने इसे घंटे को देवी द्वारा अस्वीकार किया जाना समझा और घंटा उसी जगह पर छोड़कर वापस चला गया।

    बताते हैं कि तभी से यह घंटा इसी जगह पर पड़ा है। सोने के मंदिर के नाम पर उसकी जगह तांबे का मंदिर होने की ही वजह से इस स्थान पर बनाए गए मंदिर का नाम झूठे का मंदिर पड़ गया। इस मंदिर में किसी भी तरह की देवमूर्ति नहीं लगाई गयी है। न ही यहाँ किसी तरह का पूजा-पाठ ही किया जाता है।

    तीन माह तक रहती है चहल पहल

    मां पूर्णागिरि धाम में तीन माह तक लगने वाले मेले में काफी चहल पहल रहती है। मेले के समय में लाखों की संख्या में श्रद्धालु मां के दर्शनों को आते हैं। रास्ते में पडऩे वाला यह झूठा मंदिर लाखों श्रद्धालुओं के लिए विशेष आकर्षण का केंद्र है। मां अपने भक्तों की मुराद किस प्रकार पूरी करती है यह उसका संदेश भी देता है। साथ ही मुराद पूरी करते समय संकल्प लेने वालों के लिए भी यह मंदिर भी अपनी बात पर अडिग होने का संदेश देता है।

    यहां नहीं हाेती पूजा अर्चना

    भुवन चंद्र पांडेय, अध्यक्ष, मां पूर्णागिरि मंदिर समिति ने बताया कि मां पूर्णागिरि धाम से करीब एक किमी पहले झूठे का मंदिर स्थापित है। यहां पर किसी प्रकार की पूजा अर्चना नहीं होती है। मान्यता है कि करीब तीन सौ पूर्व इस मंदिर की स्थापना की गई है। अब पुजारियों ने मंदिर में जरूर एक मूर्ति स्थापित की है। जिस पर श्रद्धालु चढ़ावा चढ़ाते हैं। यह मंदिर मां की आस्था व भक्ति का जीता जागता उदाहरण है। जो श्रद्धालुओं को उत्साहित कर उनके अंदर मां के प्रति श्रद्धा भाव को बढ़ाता है।