जानिए नंदा देवी महोत्सव और इसके इतिहास के बारे में
नंदा देवी मंदिर देश ही नहीं विदेशी सैलानियों की आस्था का भी केंद्र है।
जासं, नैनीताल : नंदा देवी मंदिर देश ही नहीं विदेशी सैलानियों की आस्था का भी केंद्र है। मा नंदा को पार्वती का रूप माना जाता है। वर्ष 1638-78 के दौरान चंद राजा बाज बहादुर चंद ने पंवार राजा को युद्ध में पराजित किया और विजय के प्रतीक के रूप में बधाणकोट से नंदा देवी की स्वर्ण प्रतिमा को लेकर यहा आए। जिसे उस समय मल्ला महल (वर्तमान कलक्ट्रेट परिसर) में स्थापित किया गया। बाद में कुमाऊं के तत्कालीन कमिश्वर ट्रेल ने नंदा की प्रतिमा को दीप चंद्रेश्वर मंदिर में स्थापित करवाया। मा नंदा की सात बहनें मानी जाती हैं। जो लाता, द़्योराड़ी, पैनीगढ़ी, चादपुर, कत्यूर, अल्मोड़ा और नैनीताल में स्थित हैं। उत्तराखंड में नंदा देवी पर्वत शिखर, रूपकुंड, व हेमकुंड नंदा देवी के प्रमुख पवित्र स्थलों में एक हैं। माना जाता है कि नंदा ने ससुराल जाते समय रूप कुंड में स्नान किया था। उनका सुसराल कैलाश में महेश्वर के यहा था। प्राचीन धार्मिक ग्रंथों में शिव की पत्नी पार्वती को ही मा नंदा माना गया है। कैनोपनिषद में हिमालय पुत्री के रूप में हेमवती का उल्लेख मिलता है। हिंदू धर्मग्रंथों की बात करें तो इनमें देवी के अनेक स्वरूप गिनाए गए हैं। जिनमें शैलपुत्री नंदा को योग माया व शक्ति स्वरूपा का नाम दिया गया है।
मा नंदा से जुड़े हैं प्रदेश के कई उत्सव
मा नंदा से जुड़े अनेक पर्व आज भी कुमाऊं और गढ़वाल में बड़े ही उत्साह से मनाए जाते हैं। मा नंदा के भाई और उनके अंगरक्षक लाटू देवता का पूजन सावन के महीने में हरेला पर्व के रूप में शिव-पार्वती के रूप में किया जाता है। मा नंदा को सुख समृद्धि देने वाली हरित देवी भी माना गया है। प्रदेश के अलग अलग क्षेत्रों में भगवती नंदा से जुड़े उत्सवों को मनाने की परंपरा है। भिटोली का पर्व भी नंदा से जुड़ी मान्यता का रूप माना जाता है। जिसमें भाई बहन के ससुराल जाकर उसे तरह तरह की चीजें भेंट करता है। मा नंदा देवभूमि उत्तराखंड की अगाध आस्था का पर्याय है। यही कारण है कि यहा कई नदियों, पर्वत श्रखलाओं व नगरों के नाम भी मा नंदा के नाम पर रखे गए हैं।
अल्मोड़ा का नंदा देवी मंदिर
अल्मोड़ा में गोरखा काल से इस मंदिर को नंदा देवी मंदिर के नाम से जाना जाता है। जहा अब हर साल नंदा देवी का भव्य मेला यहा आयोजित होता है। नंदा देवी मंदिर में स्थित पार्वतेश्वर और उद्योतचंद्रेश्वर मंदिर की बनावट नागर शैली की है। जिसमें भव्य नक्काशी की गई है। मंदिर की दीवारों में अनेक चित्र बनाए गए हैं। मंदिर के ऊपर आठ खंभों वाला बिजौरा बना हुआ है। मंदिर की दीवारों पर लोक गाथाओं, लोक परंपराओं, दैत्य मानव संग्राम की कलाकृतियों को उकेरा गया है। पत्थर का मुकुट और अन्य कलाकृतिया मंदिर की शोभा को और अधिक बढ़ा देती हैं। जबकि पाषाण काल से आधुनिक सभ्यता के चित्रों को भी सुंदर तरीके से चित्रित किया गया है। मां पार्वती के रूप में की जाती है पूजा
अल्मोड़ा का नंदा देवी मेला धार्मिक आस्था का प्रतीक है। यहा मा नंदा की पूजा शक्ति स्वरूपा मा पार्वती के रूप में की जाती है। नंदा देवी मेला भाद्र माह की शुक्ल षष्ठी से प्रारंभ होता है। इसी दिन मा नंदा की पूजा की जाती है। देवी का अवतार जिस पर होता है उसे देवी का डंगरिया कहा जाता है। मा नंदा की पूजा के लिए केले के वृक्षों से मूर्तियों का निर्माण किया जाता है। केले के वृक्षों के चयन के लिए डंगरिया हाथ में चावल और पुष्प लेकर उसे केले के वृक्षों की ओर फेंकते हैं। जो वृक्ष हिलता है उसकी पूजा कर उसे मा के मंदिर में लाया जाता है। देवी की मूर्तियों के निर्माण का कार्य सप्तमी के दिन से शुरू होता है। जबकि अष्टमी को मूर्ति की प्राण प्रतिष्ठा की जाती है। इस दौरान नंदा देवी परिसर में भव्य मेले का आयोजन भी किया जाता है। केसी सिंह बाबा करते हैं मेले का प्रतिनिधित्व
नंदा देवी महोत्सव का आयोजन सालों पूर्व चंद वंशीय राजाओं की अल्मोड़ा शाखा द्वारा किया जाता था। लेकिन 1938 में इस वंश के अंतिम राजा आनंद चंद के कोई संतान न होने के कारण इस महोत्सव का आयोजन चंद वंश की काशीपुर शाखा द्वारा किया जाने लगा। वर्तमान में इस मेले का प्रतिनिधित्व नैनीताल के पूर्व सासद केसी सिंह बाबा द्वारा किया जाता है।
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