औषधीय पौधों का परागण करने वाली किंग क्रो तितली उत्तराखंड पहुंची
उत्तर भारत में किंग क्रो तितली (King crow butterfly) अंतिम बार बहराइच में नजर आई थी। किंग क्रो खासियत यह है कि यह विषैले प्रजाति के माने जाने वाले पौधों जैसे मदार अतीश आदि का परागण ज्यादा करती है।
जागरण संवाददाता, हल्द्वानी: बाघ, गुलदार और हाथियों के सुरक्षित ठिकाने के तौर पर पहचान बना चुके उत्तराखंड में लगातार दुर्लभ तितलियां भी नजर आ रही हैं। चार वर्ष पहले ज्योलीकोट के पास वन विभाग ने आमतौर पर सिक्किम और असम में पाई जाने वाली डार्क सफायर को ढूंढ़ा था। अब भुजियाघाट के पास वन अनुसंधान की टीम ने किंग क्रो तितली (King crow butterfly) को खोजा है, जो पहली बार राज्य में रिकार्ड की गई है।
मुख्य वन संरक्षक अनुसंधान संजीव चतुर्वेदी के मुताबिक उत्तर भारत में यह तितली अंतिम बार बहराइच में नजर आई थी। किंग क्रो खासियत यह है कि यह विषैले प्रजाति के माने जाने वाले पौधों जैसे मदार, अतीश आदि का परागण ज्यादा करती है। पेड़ों की इस प्रजाति का दवा बनाने में इस्तेमाल होता है। तितली सर्वे के दौरान अनुसंधान की जेआरएफ अंबिका अग्निहोत्री ने इसे खोजा है।
वन अनुसंधान के मुख्य वन संरक्षक संजीव चतुर्वेदी के मुताबिक भारत में मिलने वाली तितलियों की 1300 में से करीब 500 प्रजाति उत्तराखंड में रिकार्ड की जा चुकी है। इस डेटा में अब एक और दुर्लभ तितली जुड़ गई है। आमतौर पर उत्तर-पूर्वी राज्यों में मिलने वाली किंग क्रो का रंग भूरा और नीला होता है। भुजियाघाट में भूरे रंग की प्रजाति मिली हुई है।
उत्तरी राज्यों में इसके मिलने का यह दूसरा मामला है। इससे पहले यूपी के बहराइच में स्थित कतरनिया घाट वाइल्डलाइफ सेंचुरी में 2016 में यह रिकार्ड हुई थी। अनुसंधान के मुताबिक भुजियाघाट से लेकर नैनीताल तक के जंगल में पूरे साल प्राकृतिक स्त्रोतों की वजह से पानी की मौजूदगी रहती है। बेहतर जैव विविधता के कारण यहां किंग क्रो की मौजूदगी सामने आई है।
मुख्य वन संरक्षक अनुसंधान संजीव चतुर्वेदी ने बताया कि भुजियाघाट के पास किंग क्रो तितली को राज्य में पहली बार रिकार्ड किया गया है। यह आैषधीय गुणों वाली प्रजाति का परागण करती है। भुजियाघाट से लेकर नैनीताल का जंगल जैव विविधता के मामले में समृद्ध होने की वजह से किंग क्रो का वासस्थल यहां मिला है।
परागण का मतलब
वन अनुसंधान के मुताबिक पौधों के पनपने में परागण का विशेष महत्व होता है। जब कोई चिडिय़ा, तितली या मधुमक्खी नर पुष्प पर बैठते हैं तो उस दौरान पुष्प के पराग कण उससे चिपक जाते हैं। वहीं जब मादा पुष्प पर इनके द्वारा यह प्रक्रिया की जाती है तो पराग कण उस पुष्प पर गिर जाते हैं। इस प्रक्रिया को परागण कहा जाता है। जिससे नए पौधों को पनपने का अवसर मिलता है। पोलीनेटर श्रेणी में आने वाली चिडिय़ा, तितली और मधुमक्खी के लिए हल्द्वानी में पोलीनेटर पार्क डेढ़ साल पहले बनाया गया था।