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    घने जंगल में खुशबू की 'अपनी पाठशाला'

    By JagranEdited By:
    Updated: Tue, 17 Nov 2020 05:19 AM (IST)

    रामनगर के घने जंगल में जहां लोग जाने से डरते हैं वहा गुजरों के खत्ते में खुशबू ने फैलाया ज्ञान का प्रकाश।

    घने जंगल में खुशबू की 'अपनी पाठशाला'

    विनोद पपनै, रामनगर : घने जंगल में जहां लोग जाने से डरते हैं, वहा गूजरों के खत्ते में 28 वर्षीय खुशबू नौनिहालों को शिक्षित करने में जुटी हैं। तीन वर्षो से 'अपनी पाठशाला' खोलकर निश्शुल्क पढ़ा रही हैं। अपनी पढ़ाई के दौरान ही उन्होंने गरीब बच्चों को पढ़ाने का संकल्प ले लिया था। आज शिक्षा के इस मंदिर में 50 बच्चे अपना जीवन उजियारा कर रहे हैं।

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    नौकरी छोड़ पढ़ाने का संकल्प : खुशबू ने उत्तराखंड टेक्निकल यूनिवर्सिटी से मैनेजमेंट का कोर्स करने के बाद एक निजी कंपनी में जाब की। नौकरी रास नहीं आई तो घर आ गई। अच्छीखासी जाब छोड़ आने पर परिवार की नाराजगी झेलनी पड़ी। शिक्षा के क्षेत्र में कुछ कर गूजरने की चाहत ने एकनिजी स्कूल में इंग्लिश टीचर की जाब की। इस दौरान सड़कों पर भीख मांगते बच्चों को देख उनके उत्थान का संकल्प ले डाला। बच्चों को फ्री शिक्षा देने के लिए एनजीओ बनाई। 21 जून 2017 को कर्म दिशा मनोरथ ट्रस्ट नाम से संस्था दिल्ली में रजिस्टर्ड करवाई।

    पहला प्रयोग विफल रहा : खुशबू बताती हैं कि रेलवे स्टेशन, पार्क, बस स्टेशन में भीख मागने वाले बच्चों को पढ़ाने का प्रयास किया लेकिन आर्थिक तंगी के चलते यह कोशिश असफल रही। खेमपुर गेबुवा (रामनगर) की पूर्व प्रधान भवानी बिष्ट ने हौसला बढ़ाया। बताया कि बैलपड़ाव से सात किमी दूर वन गूजरों का नूनियागंज खत्ता है। गांव का सर्वे करने पर 60 बच्चे अशिक्षित मिले। 15 दिन में बच्चों के लिए कुछ कापी-किताब व स्टेशनरी खरीदी। वन गूजरों से पाठशाला खोलने को झोपड़ी मांगी। बच्चे बढ़े तो वन विभाग की अनुमति से बड़ी झोपड़ी बनाकर अपनी पाठशाला ने चार कक्षाओं में आकार ले लिया। पाठशाला में पूजा गोस्वामी और रितु गिनती बच्चों को पढ़ा रही हैं। अभी प्लेटफाम बनाना बाकी: खुशबू ने बताया कि बच्चों के लिए खेलकूद, कला और संगीत का प्लेटफार्म बनाने की कोशिश जारी है। इसके बाद अन्य क्षेत्रों में भी जरूरतमंद बच्चों तक शिक्षा का उजियारा फैलाने का प्रयास होगा। खुशबू पाठशाला तक स्कूटी से जाती हैं। जंगल का रास्ता होने से शुरुआत में डर जरूरत लगा मगर अब आदत पड़ गई है। जंगल भी अपने लगने लगे हैं। पाठशाला चलाने के लिए खुशबू अपने परिचितों, संस्थाओं से सहयोग लेती हैं।