कत्यूरी राजा जयपाल ने चंद राजा को दहेज में दी थी काली कुमाऊं, रानी चम्पा के नाम पर पड चंपावत
चंपावत जिला मुख्यालय के बालेश्वर मंदिर समूह में स्थित चम्पा देवी भक्तों की मनोकामना पूर्ण करती हैं। मूल रूप से इसे नगर की कुलदेवी कहा जाता है। इन्हीं के नाम पर नगर का नामकरण चम्पावत हुआ है। कुमाऊं में चंद राजाओं से पहले कत्यूरी वंश का शासन था।
चम्पावत, जेएनएन : चंपावत जिला मुख्यालय के बालेश्वर मंदिर समूह में स्थित चम्पा देवी भक्तों की मनोकामना पूर्ण करती हैं। मूल रूप से इसे नगर की कुलदेवी कहा जाता है। इन्हीं के नाम पर नगर का नामकरण चम्पावत हुआ है। कुमाऊं में चंद राजाओं से पहले कत्यूरी वंश का शासन था। लोहाघाट नगर के समीप शोणितपुर में जिसे अब सुईं कहा जाता है, कत्यूरी राजाओं की राजधानी थी। कहा जाता है कि जब उत्तर प्रदेश के झूसी से कैलाश मानसरोवर की यात्रा में सोमचंद आए तो शोणितपुर के कत्यूरी राजा जयपाल ने अपनी पुत्री चम्पा का विवाह उनसे कर उन्हें काली कुमाऊं (चम्पावत) को दहेज में दे दिया।
उसके बाद यहां चंद शासन की नींव पड़ी और नगर का नाम रानी चम्पा के नाम पर चम्पावत रखा गया। रानी चम्पा रुपवती के साथ ही प्रजा की हितैषी और न्यायकारी थी। इसी दौरान चंद शासक सोमचंद ने चम्पावत के मध्य भाग में राजबुंगा किले की स्थापना की। वहीं समीप के क्षेत्र में नौलों और देवालयों का निर्माण किया। बालेश्वर मंदिर समूह के निर्माण में सैकड़ों वर्ष लगे। इसी दौरान रानी चम्पा का निधन हो गया। प्रजा व राजा बड़े दुखी हुए।
जनता के आग्रह पर बालेश्वर मंदिर में ही चम्पा देवी का भव्य मंदिर बनाया गया। तब से यहां के लोग चम्पा देवी को कुलदेवी के रुप में पूजते आए हैं। मान्यता है कि इनके पूजन से भक्तों की मनोकामना पूर्ण होती है। रोग, शोक के साथ ही संपन्नता का वरदान मिलता है। वैसे तो सालभर इस मंदिर में भक्तों द्वारा आराधना की जाती है। लेकिन चैत्र व शारदीय नवरात्र में यहां पूजा करने के लिए चम्पावत ही नहीं अपितु नैनीताल, अल्मोड़ा से भी लोग पहुंचते हैं।
ऐसे पहुंचे बालेश्वर धाम
चम्पावत नगर के मध्य स्थापित बालेश्वर स्थित चंपा मंदिर में हल्द्वानी और टनकपुर से सीधे सड़क मार्ग के जरिए पहुंचा जा सकता है। जबकि देश की राजधानी दिल्ली, प्रदेश की राजधानी देहरादून से भी सीधी बस सेवा यहां तक जुड़ी हुई हैं।
वास्तुकला का बेजोड़ नमूना है मंदिर
सातवीं सदी के दौरान बालेश्वर मंदिर समूह का निर्माण तराशे गए ग्रेनाइट पत्थरों से हुआ है। इसी मंदिर समूह में चम्पा देवी की स्थापना की गई है। जिसमें वास्तुकला की बेजोड़ नक्काशी है। 1663 ईसवीं में चंद राजा की राजधानी अल्मोड़ा चले जाने के बाद भी चम्पा देवी को कुलदेवी के रूप में पहले की तरह ही पूजा जाता है। हूणों के आक्रमण के दौरान मंदिर केगुंबद क्षतिग्रस्त हुए हैं ।
यह है मंदिर की विशेषता
मंदिर नगर के मध्य भाग में है। यहां नियमित पूजा होती है। नि:संतान दंपत्तियों की मां गोद भरती है। मूर्ति का हर रोज विधिवत श्रृंगार किया जाता है। देवडंगरिये अवतरित होकर यहां आने वाले भक्तों को आशीर्वाद देते हैं।
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