Updated: Sat, 26 Jul 2025 01:42 PM (IST)
कारगिल युद्ध में उत्तराखंड के वीर जवानों ने अदम्य साहस का परिचय दिया। कैप्टन सुरेश भट्ट और नारायण पांडे ने बताया कि ऊंची चोटी पर चढ़ते समय पानी खत्म हो गया बारूद मिली बर्फ से प्यास बुझानी पड़ी। दुश्मन हथियारों से लैस थे फिर भी भारतीय सेना ने प्वाइंट 4875 पर विजय प्राप्त की। आतंकियों ने ग्रेनेड फेंके लेकिन जवानों ने मकान उड़ाकर उन्हें मार गिराया।
गोविंद बिष्ट, जागरण, हल्द्वानी। आजादी के बाद से अब तक सरहद और देश के स्वाभिमान की रक्षा के लिए लड़ी गई ऐसी कोई जंग नहीं होगी। जिसमें सैन्यभूमि कहे जाने वाले उत्तराखंड के वीर जवानों ने अपना रक्त न बहाया हो। 1999 में विषम भौगोलिक परिस्थितियों के बाद भी हिंद की सेना ने किस तरह पाकिस्तान के सैनिकों से लेकर आतंकियों तक को खदेड़ने के बाद विजय हासिल की।
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इसके गवाह हल्द्वानी के दो सेवानिवृत्त कैप्टन सुरेश चंद्र भट्ट और नारायण दत्त पांडे भी हैं। पूर्व सैैनिक लीग कार्यालय में जागरण से बातचीत में इन्होंने उस दौर के कई किस्से बयां किए। बताया कि ऊंची चोटी पर चढ़ने के दौरान खाना तो दूर पीने का पानी भी खत्म हो चुका था। इसके बाद बर्फ के टुकड़े को मुंह में डाल गला तर करने की कोशिश की। लेकिन उसमें बारुद मिला होने के कारण प्यासा रहना पड़ा। वरना सेहत बिगड़ जाती। उसके बावजूद हिम्मत हारी न जोश कम हुआ।
सीओ का आदेश था पीछे नहीं देखना, जवानों ने कहा...जी सर
कैप्टन सुरेश चंद्र भट्ट टू नागा रेजीमेंट। छह जुलाई को आदेश पहुंचा कि टाइगर हिल के बाई तरफ प्वाइंट 4875 नाम की चोटी पर कब्जा करना है। इससे पहले बतौर प्लाटून कमांडर घाटी में आतंकियों की रैकी और सर्विलांस की जिम्मेदारी निभा रहा था। प्वाइंट 4875 पर दुश्मन पहले से पूरी तैयारी के तौर पर छह महीने के राशन से लेकर हथियारों संग काबिज था।
जवानों के साथ चढ़ाई करने के दौरान बार-बार ऊपर से फायरिंग हो रही थी। थोड़ी देर रूककर हमनें भी फायर बेस बनाया। लेकिन सात जुलाई की रात एक बजे के आसपास बंदूक, तोप से लेकर ग्रेनेड तक से हमले होने लगे। जिसमें सात भारतीय जवान बलिदानी हो गए। अधिकारियों के आदेश पर सूबेदार मंगल सिंह समेत तीन लोगों को बलिदानियों के पार्थिव शरीर के पास छोड़ दोबारा आगे बढ़ गए। सीओ का स्पष्ट आदेश था कि पीछे नहीं देखना ।
एक जवान के तौर पर अच्छे से समझते थे कि इस बात का क्या अर्थ है। इसलिए आगे बढ़ते गए। चोटी पर पहुंचने पर दुश्मन की गोलीबारी में आठ जवान और खो दिए। अंधेरा और बढ़ता गया। पानी की बोतल खाली होने पर बर्फ को मुंह में डालने की कोशिश की तो पता चला कि भयंकर गोलीबारी की वजह से इसमें बारुद मिला हुआ था। मगर सीओ का आदेश किसी हाल में भूलना नहीं था। इसलिए चोटी में ऊपर पहुंचे और गोलियां चलाते रहे।
गुत्थम-गुत्था होने पर कमर से धारदार हथियार निकालकर भी दुश्मनों की गर्दन पर चलाना पड़ा। आठ जुलाई की सुबह हम प्वाइंट 4875 को फतेह कर चुके थे। दुश्मन या तो मारे गए या बचने के लिए भाग खड़े हुए। इसके बाद 14 महीने बाद छुट्टी लेकर घर पहुंचा। क्योंकि, पोस्टिंग इन पहाड़ियों पर कब्जा बरकरार रखने के लिए हो चुकी थी। 2007 में सेना से तो रिटायर हो गया लेकिन राष्ट्र के लिए लड़ने का जोश 24 घंटे खून बनकर रगों में दौड़ता रहता है।
आतंकियों ने ग्रेनेड फेंका तो राकेट लांचर से उड़ा दिया मकान
कैप्टन नारायण दत्त पांडे टू नागा रेजीमेंट। कारगिल की जंग हो। इसे लेकर पाकिस्तान पहले से हरकतें करने लग गया था। सैनिकों के साथ आतंकियों को भी सीमा पार कराई जा रही थी। प्लाटून कमांडर के ताैर पर सर्चिंग टीम का अहम हिस्सा था। आतंकियों के छिपे होने की सूचना पर तीन जून को पाटन क्षेत्र से जुड़े एक गांव में टीम पहुंची थी। यहां संदिग्ध मकान की निगरानी शुरू कर दी। तड़के तीन बजे के करीब आतंकियों ने गोली चला दी।
सूचना पर हमारा साथ देने के लिए क्विक रिस्पांस टीम भी आ गई। मकसद साफ था निर्दोष ग्रामीणों को कुछ न हो लेकिन दुश्मन बचे न। कमाउंर के आदेश पर मकान को घेरने के बाद नजदीक पहुंचे तो आतंकियों ने ग्रेनेड हमला कर दिया। नायाब सूबेदार बलवंत सिंह आर एक जवान वीरगति को प्राप्त हो गए।
इसके बाद राकेट लांचर से हमले कर पूरे मकान को उड़ाकर तीन आतंकियों को ढेर कर दिया। इसके बाद प्वाइंट 4875 पर कब्जे का आदेश मिलने पर वहां नई जिम्मेदारी मिली। राशन, गोला-बारुद, हथियार, दवाएं साथियोें तक भेजनी थी। जवान के घायल होने पर उसे नीचे लाकर अस्पताल तक पहुंचाना था। गाड़ी का रास्ता खत्म होने के बाद स्थानीय मजदूरों के कंधों पर सामान भेजा जाता।
निगरानी के लिए जवान भी साथ में रखना जरूरी था। मन में एक बात साफ थी कि जरूरत पड़ने पर ऊपर जाकर साथियों के साथ मिलकर दुश्मनों को खदेड़ना भी है। इस बीच कई साथियों के घायल या वीरगति को प्राप्त होने पर उन्हें नीचे लाने के लिए भी दौड़ना पा रहा था। जबकि पाकिस्तानी सेना के कायर अपने जवानों के पार्थिव शरीर को छोड़ भी भागते नजर आ रहे थे। 2003 में सेना से सेवानिवृत्त हो गया। लेकिन आंखों में आज भी जंग और जवानों की बहादुरी के हर किस्से जिंदा हैं।
सेना की गाड़ी में पार्थिव शरीर देख सहम जाता था परिवार
टू नागा रेजीमेंट से सेवानिवृत्त होने के बाद कैप्टन नारायण दत्त पांडे वर्तमान में देवलचौड़ बंदोबस्ती में परिवार संग रहते हैं। सुरेश चंद्र भट्ट पीपलपोखरा के वासी हो गए। बातचीत में इन्होंने बताया कि कारगिल युद्ध के दौरान परिवार के लोग जब भी फौजी की गाड़ी में किसी जवान का पार्थिव शरीर आते देखते तो सहम जाते थे। क्योंकि, उस समय फोन पर अपनी कुशलक्षेम बताने का समय नहीं रहता था।
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