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    कल्पवृक्ष च्यूरा : जड़ से लेकर पत्ती तक गुणकारी है, जीआइ टैग मिलने से बढ़ा महत्‍व

    By Skand ShuklaEdited By:
    Updated: Thu, 30 Sep 2021 10:54 AM (IST)

    पर्वतीय जिलों खासतौर पर चम्पावत जिले में कल्पवृक्ष के नाम से प्रसिद्ध औषधीय गुणों से भरपूर च्यूरा का पेड़ (बटर ट्री) जड़ से लेकर पत्ती तक लाभदायक है। ...और पढ़ें

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    कल्पवृक्ष च्यूरा : जड़ से लेकर पत्ती तक गुणकारी है, जीआइ टैग मिलने से बढ़ा महत्‍व

    विनय कुमार शर्मा, चम्पावत : कुमाऊं के पर्वतीय जिलों खासतौर पर चम्पावत जिले में कल्पवृक्ष के नाम से प्रसिद्ध औषधीय गुणों से भरपूर च्यूरा का पेड़ (बटर ट्री) जड़ से लेकर पत्ती तक लाभदायक है। इसकी औषधीय, धार्मिक एवं बहुपयोगी महत्ता को समझते हुए करीब सवा साल से वन अनुसंधान संस्थान (एफआरआइ) इस रिसर्च कर रहा है। जिला प्रशासन भी बजौन में इसकी नर्सरी तैयार कर रहा है। जिससे इसका उत्पादन बढ़ाया जा सके। च्यूरा से बनने वाले आयल को भौगोलिक संकेतांक (जीआइ टैग) मिलने से इसकी उपयोगिता और महत्व दोनों और बढ़ गया है।

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    इंडियन बटर ट्री के नाम से जाना जाने वाला च्यूरा काली, सरयू, पूर्वी रामगंगा और गोरी गंगा नदी घाटियों में बहुतायत में पाया जाता है। इसका फल बेहद मीठा होता है। च्यूरा का वनस्पतिक नाम 'डिप्लोनेमा बुटीरैशियाÓ है। समुद्र तल से तीन हजार फीट की ऊंचाई वाले क्षेत्रों में इसके पेड़ 12 से 21 मीटर तक लंबे होते हैं। पहाड़ के घाटी वाले क्षेत्रों में इसके फूल खिलने पर शहद का काफी उत्पादन होता है। चम्पावत वन प्रभाग के उप प्रभागीय वनाधिकारी हेम गहतोड़ी ने बताया कि एफआरआइ की ओर से छीड़ा बीट में एफआरआइ ने प्रयोगशाला और नर्सरी तैयार की है। यहां अल्मोड़ा, पिथौरागढ़, बागेश्वर और चम्पावत जिले में उगने वाले च्यूरा प्रजाति के पौधे रोपे गए हैं।

    प्रशासन की ठोस पहल का इंतजार

    च्यूरा का उत्पादन बढ़ाने के लिए सरकार व जिला प्रशासन की ठोस पहल का अभी इंतजार है। इसके महत्व को देखते हुए काश्तकारों को भी उत्पादन से जोड़ा जा सकता है। अभी तक जनपद में स्थानीय ग्रामीण ही इसकी फल, पत्ती व बीजों का उपयोग अपने लिए करते हैं। च्यूरा आयल का व्यावसायिक उत्पादन भी न के बराबर है। 15 साल में पेड़ फल देने योग्य बनता है।

    चम्पावत में इन स्थानों पर होता है च्यूरा

    चम्पावत के पोथ, गंगसीर, स्वाला, बडोली, मझेड़ा, च्यूरानी, सिंगदा, अमोड़ी, साल, सल्ली, आमखेत, बगोड़ी, चल्थी, अमौन, सेरा, बंडा, खेत, दियूरी, नगरूघाट, पंचेश्वर, खाईकोट, रीठा, मछियाड़, साल, खटोली, कजिनापुनौला, पदमपुर, थुवामौनी, सेरा, सिन्याड़ी आदि में च्यूरा के दो-चार पेड़ है। एक साथ च्यूरा के पेड़ कम ही जगहों पर हैं।

    गठिया रोग में इस्तेमाल होता है च्यूरा का तेल

    च्यूरा में पर्याप्त औषधीय गुण हैं। इसके तेल की मालिश गठिया रोग के लिए कारगर है। एलर्जी दूर करने की भी यह अचूक दवा है। इसके दाने को सुखाने के बाद पीसकर घी बनाया जाता है। इस घी को भोजन में उपयोग किया जाता है। साथ ही फटे होंठ और त्वचा के सूखेपन को दूर करता है। इसके फलों की गुठली से ही वनस्पति घी और तेल बनता है। इसमें वसा की मात्रा काफी अधिक होने से इससे साबुन भी बनने लगा है। इसकी खली जानवरों के लिए सबसे अधिक पौष्टिक मानी जाती है। पत्ती व खली आदि को जलाकर इसके धुएं से मच्छर भगाए जाते हैं। च्यूरा के पेड़ की लकड़ी नाव बनाने में प्रयुक्त होती है। गृह प्रवेश से लेकर अन्य मांगलिक कार्यों में च्यूरा के पत्तों की माला बनाकर मकान के चारों तरफ लगाई जाती है।

    बजौन में नर्सरी हो रही तैयार

    चम्पावत के मुख्य विकास अधिकारी आरएस रावत ने बताया कि सरकार की पहल पर च्यूरा का उत्पादन बढ़ाने के लिए बजौन में नर्सरी तैयार की जा रही है। वन विभाग द्वारा च्यूरा की विभिन्न प्रजातियां लगाकर रिसर्च की जा रही है। जिस भी प्रजाति की ग्रोथ अच्छी होगी उसे विस्तार दिया जाएगा। उत्पादन बढ़ेगा तो इससे बनने वाले उत्पादों को बाजार उपलब्ध कराने के लिए प्रयास किए जाएंगे। च्यूरा आयल निकालने की इकाई भी खोलने की कवायद की जाएगी।