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जिम कॉर्बेट पार्क व नंधौर सेंक्‍चुरी को विश्‍व धरोहर बनाने की कवायद तेज, भेजा गया प्रस्‍ताव

नंदा देवी पीक और फूलों की घाटी के बाद अब जिम कॉर्बेट नेशनल पार्क व नंधौर सेंक्‍चुरी को विश्‍व धरोहर बनने की राह पर अग्रसर है।

By Skand ShuklaEdited By: Published: Sun, 23 Feb 2020 03:04 PM (IST)Updated: Sun, 23 Feb 2020 03:04 PM (IST)
जिम कॉर्बेट पार्क व नंधौर सेंक्‍चुरी को विश्‍व धरोहर बनाने की कवायद तेज, भेजा गया प्रस्‍ताव

हल्द्वानी, स्कंद शुक्ला : नंदा देवी पीक और फूलों की घाटी के बाद अब जिम कॉर्बेट नेशनल पार्क व नंधौर सेंक्‍चुरी को विश्‍व धरोहर बनने की राह पर अग्रसर है। वन संरक्षण डॉ. पराग मधुकर धकाते ने यूनेस्को की सूची में इन दोनों प्राकृतिक स्थलों को शामिल कराने के लिए शासन को प्रस्ताव भेजा है। वहीं वन मंत्री ने इसके लिए केंद्र सरकार में भी पुरजोर पैरवी करने की बात कही है।

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जंगल सफारी के लिए विख्‍यात हैं दोनों अभ्‍यारण्‍य

अभी तक उत्तराखंड में दो प्राकृतिक स्थलों फूलों की घाटी और नंदा देवी पीक को यूनेस्को ने अपनी सूची में शामिल किया है। विश्व विख्यात जिम कार्बेट नेशनल पार्क को इस सूची में शामिल कराने के लिए पूर्व में किसी ने भी प्रयास नहीं किया था। शुक्रवार को वन संरक्षक पराग मधुकर धकाते ने जिम कार्बेट के साथ ही नंधौर सेंचुरी को यूनेस्को की सूची में शामिल कराने के लिए  प्रस्ताव तैयार कर मुख्य वन्यजीव प्रतिपालक को प्रेषित कर दिया।

वन मंत्री भारत सरकार के समक्ष रखेंगे प्रस्‍ताव

इस बाबत जब उत्तराखंड के वन मंत्री हरक सिंह रावत से बात की गई तो उन्होंने इस पहल की सराहना की। उन्होंने कहा कि जिम कार्बेट का सुनहरा अतीत रहा है। यह स्थल तमाम देशों की चर्चित हस्तियों के लिए आकर्षण का केंद्र रहा है। इसे तो बहुत पहले ही विश्व धरोहर की सूची में शामिल हो जाना चाहिए था, लेकिन पूर्व में इसके लिए कभी प्रयास नहीं हुआ। उन्होंने कहा कि इसे यूनेस्को की सूची में शामिल कराने के लिए वह प्रदेश से लेकर केंद्र सरकार तक पुरजोर पैरवी करेंगे।

वैश्विक धरोहरों को सहेजता है यूनेस्‍को

दुनियाभर की ऐतिहासिक धरोहर और प्राकृतिक स्‍थलों के संरक्षण के लिए संयुक्‍त राष्‍ट्र महासंघ की शाखा यूनेस्‍को (संयुक्त राष्ट्र शैक्षिक, वैज्ञानिक एवं सांस्कृतिक संगठन) काम करती है। इस संगठन में 193 सदस्य देश शामिल हैं। यूनेस्‍को समिति के सामने मान्यता के लिए प्रस्तावित धरोहरों की सूची में फिलहाल पश्चिम बंगाल का विष्णुपुर मंदिर और कोच्चि केरल का मट्टनचेरी पैलेस शामिल हैं।

विश्‍व धरोहर में शामिल होने की प्रक्रिया

किसी भी देश को पहले अपने महत्वपूर्ण सांस्कृतिक और प्राकृतिक धरोहरों की एक सूची बनानी होती है। इसे आजमाइशी सूची कहते हैं। इस सूची से किसी संपदा को चयनित कर नामांकन फाइल में डाला जाता है। विश्व धरोहर केंद्र इस फाइल को बनाने में सलाह देता और सहायता करता है। फाइल की समीक्षा अंतर्राष्ट्रीय स्मारक व स्थल परिषद और विश्व संरक्षण संघ करता है। यह संस्थाएं फिर विश्व धरोहर समिति से सिफारिश करती हैं। समिति की वर्ष में एक बार बैठक होती है। समिति ही तय करती है कि प्रस्‍तावित संपदा को विश्व धरोहर सूची में सम्मिलित करना है या नहीं।

महकमे को भेजा गया है इस बाबत पत्र

डॉ. पराग मधुकर धकाते, वन संरक्षक  ने बाताया कि नंधौर सेंक्‍चुरी और सीटीआर को यूनेस्‍को में सूचीबद्ध कराने के लिए मुख्‍य वन्‍यजीव प्रतिपालक उत्‍तराखंड को इस संदर्भ में पत्र भेजा गया है। यदि विश्‍व धरोहर की मान्‍यता मिलती है तो यह स्‍थानीय लोगों के लिए नई संभावनाओं और जैव विविधता को संरक्षित करने के लिए लिहाज से बेहतर होगा।  

यूनेस्‍को में दर्ज हैं भारत की 37 धरोहर 

यूनेस्‍को की सूची में भारत की 37 धरोहर दर्ज है। जिसमें 30 सांस्‍कृति धरोहर और सात प्राकृतिक हैं। उत्‍तराखंड से नंदा देवी पीक को 1988 में लिस्‍ट किया गया था और फूलों की घाटी को 2005 में। पिछले साल यानी 2019 में राजस्‍थान की पिंक सिटी यानी जयपुर को सूचीबद्ध किया गया। 

यूनेस्‍को की मान्‍यता मिलने के फायदे

किसी भी देश के खास स्‍थान का नाम यूनेस्‍को की सूची में आने का मतलब विश्‍व समुदाय की नजरों में आ जाना होता है। पर्यटकों में स्‍थान विशेष को लेकर जिज्ञासा बढ़ती है। ऐसे में इसके संरक्षण और संवर्द्धन पर पूरे विश्‍व बिरदारी की नजरें रहती हैं। हालांकि इस सूची में शामिल होने के पहले बहुत सारी जिम्‍मेदारियों का भी निर्वहन करना पड़ता है। जिसे सीटीआर प्रबंधन पहले से ही कर रहा है।

सूचीबद्ध भारत के सात प्राकृति स्‍थल

  • हिमालयी राष्ट्रीय उद्यान संरक्षण क्षेत्र
  • काजीरंगा नेशनल पार्क असम
  • केवलादेव घना राष्ट्रीय उद्यान राजस्‍थान
  • मानस वन्यजीव अभयारण्य
  • नंदा देवी और फूलों की घाटी उत्‍तराखंड
  • सुदंरबन राष्ट्रीय उद्यान पश्चिम बंगाल
  • पश्चिमी घाट या सह्याद्रि (भारत के पश्चिमी तट पर स्थित पर्वत श्रृंखला) यह गुजरात और महाराष्ट्र की सीमा से शुरू होती है और महाराष्ट्र, गोवा, कर्नाटक, तमिलनाडु तथा केरल से होते हुए कन्याकुमारी में समाप्‍त हो जाती है।

वन्‍यजीवों के संरक्षण के लिए कुमाऊं मंडल के जिम कॉर्बेट नेशनल पार्क और नंधौर सेंक्‍चुरी में जंगल सफारी के लिए हर वर्ष बड़ी तादात में पर्यटक पहुंचते हैं। यहां प्रकृति की खूबसूरती निहारने के साथ ही बाघ, हाथी, हिरन, भालू, समेत सैकड़ों रंग-बिरंगे पक्षियों समेत अन्‍य वन्‍य जीवों का दीदार किया जा सकता है। पर्यटकों के ठहरने के लिए यहां खूबसूरत रिसॉर्ट बने हुए हैं। देश-विदेश की गई जानीमानी हस्तियां भी कॉर्बेट पार्क में जंगल सफारी का लुत्‍फ उठा चुकी हैं। पीएम नरेन्‍द्र मोदी ने तो यहां पिछले साल ही डिस्‍कवरी के चर्चित चैनल मैन वर्सेज वाइर्ल्‍ड की शूटिंग की थी।

जिम कॉर्बेट को निहारने आ चुकी हैं यह हस्तियां

जिम कॉर्बेट पार्क के प्राकृतिक सौंदर्य और वन्‍यजीवों को देखने के लिए यहां देश-विदेश की हस्तियां पहुंच चुकी हैं। जिनमें स्वीडन की महारानी सिलविया, आस्ट्रेलिया के पूर्व प्रधानमंत्री मैल्कम फ्रेजर, पूर्व प्रधानमंत्री स्व. इंदिरा गांधी, पूर्व राष्ट्रपति आर वेंकटरमन तक यहां आ चुके हैं।

1936 में हुई थी पार्क की स्‍थापना

1936 में अंग्रेजों ने रामगंगा के अंचल को वन्य जीवों के संरक्षण के लिए 'हेली नेशनल पार्क' की स्‍थापना की थी। आजादी के बाद पार्क का नाम बदलकर पहले 'रामगंगा नेशनल पार्क' और बाद में प्रसिद्ध शिकारी और पर्यावरण प्रेमी जिम कॉर्बेट के नाम पर रख दिया गया। वैसे तो जिम कॉर्बेट नेशनल पार्क को बंगाल टाइगर के संरक्षण के लिए जाना जाता है लेकिन इसके अलावा भी यहां पाए जाने वाले वन्‍यजीवों की संख्‍या सैकड़ों में है। पार्क में तेंदुआ, हाथी, भालू, हिरन, चीतल, सांभर, काकड़, नीलगाय घडि़याल, मगरमच्छ आदि वन्य जीव वास करते हैं। 25 सरीसृप जीवों के अलावा करीब 500 से अधिक रंग-बिरंगे पक्षियों की प्रजातियों का कोलाहल यहां सुना जा सकता है।

नंधौर सेंक्‍चुरी 

नंधौर सेंक्‍चुरी को 15 नवंबर से 15 जून तक पर्यटकों के लिए खोला जाता है। इस अभ्यारण्य में पर्यटक बाघ, हाथी, हिरण, चीतल, घुरड़, सांभर के साथ देसी-विदेशी पक्षी पर्यटकों को अपनी ओर आकर्षित करते हैं। यहां पर्यटकों की सुविधा के लिए सेनापानी, दुर्गापीपल और जौलासार में वन विभाग के शानदार बंगले हैं। इन बंगलों में सभी आधुनिक सुविधाएं हैं। ऐसे में यहां आने वाले पर्यटकों को ठहरने की पूरी व्यवस्था है। अभ्‍यारण्‍य तराई आर्क लैंडस्केप (टीएएल) का हिस्सा है, जो उत्तराखंड से नेपाल तक में फैला हुआ है।

मात्र 100 से 250 रुपये खर्च

नंधौर अभ्यारण्य आने वाले देसी और विदेशी पर्यटकों के लिए जंगल सफारी की अलग-अलग दरें हैं। वन विभाग को प्रति देशी पर्यटक से 100 रुपया पर्यटन शुल्क व 250 रुपया वाहन शुल्क मिलता है। प्रति विदेशी पर्यटक से 600 रुपया पर्यटन शुल्क व 500 रुपया वाहन शुल्क लिया जाता है।

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