जिम कॉर्बेट ने पहाड़ पर किया था दुनिया की सबसे खतरनाक बाघिन का शिकार nainital news
चंपावत में जिम कॉर्बेट ने 1907 में उस नरभक्षी बाघिन का शिकार किया था जो 436 लोगों को अपना निवाला बना चुकी थी। यह उनका पहला शिकार था।
हल्द्वानी, गोविंद बिष्ट : चलिए आज आपकाे किस्सा सुनाते हैं, दुनिया की सबसे खतरनाक नरभक्षी बाघिन का। यह किस्सा वन विभाग के इस दावे को भी खारिज करेगा, जिसमें पहाड़ की उंचाइयों पर बाघ दिखने की बात को चौंकाने वाला बताया जाता है। बात है सन 1907 की। तब उत्तराखंड के घने जंगलों में बाघ-तेंदुए की तादाद अच्छी खासी हुआ करती थी। इस दौरान एक नरभक्षी बाघिन की दस्तक ने लोगों में खाैफ पैदा कर दिया। उसने नेपाल से लेकर चम्पावत यानी महाकाली नदी के इस और उस पार करीब 436 लोगों को अपना शिकार बनाया था। तक उस रास्ते से गुजरने वाला जब तक अपने घर सुरक्षित नहीं पहुंच जाता था परिजनों के मन में आशंका बनी रहती थी। उस खतरनाक बाघिन का शिकार करने की हिम्मत कोई नहीं कर पा रहा था।
जिम कॉर्बेट ने किया शिकार, गिनीज बुक में दर्ज है रिकार्ड
वक्त गुजरने के साथ ही लोगों में बाघिन का आतंक बढ़ता गया। इसकी खबर जब जिम कॉर्बेट को लगी तो उन्होंने खुद आदमखोर का शिकार कर लोगों को उसके आतंक से निजात दिलाने की तय की। फिर क्या था जिम कॉर्बेट चम्पावत पहुंच गए। इस काम के लिए उन्होंने चौड़ा गांव निवासी डुंगर सिंह से मदद मांगी। डुंगर सिंह की निशानदेही पर ही जिम कॉर्बेट ने चम्पावत के गौड़ी रोड में बाघ-बरूड़ी नामक जंगल में उस खतरनाक नरभक्षी बाघिन का खात्मा कर लोगों को उसके आतंक से निजात दिलाई। सर्वाधिक लोगों का शिकार करने के लिए वह नरभक्षी बाघिन 'वर्ल्ड रिकॉर्ड ऑफ गिनीज बुक' में दर्ज है।
फिर कैसे स्तब्ध करता है बाघ का पहाड़ पर दिखना
बाघों का सुरक्षित और संरक्षित आशियाना बनाने में उत्तराखंड का दुनियाभर में नाम है। मगर वन विभाग पहाड़ पर बाघ की मौजूदगी को आश्चर्यजनक घटना मानता है, जबकि जिम कार्बेट का इतिहास बताता है कि बाघ 113 साल पहले ही पहाड़ पर पहुंच गया था। चंपावत में जिम ने 1907 में उस नरभक्षी बाघिन का शिकार किया था, जो 436 लोगों को निवाला बना चुकी थी। यह उनका पहला शिकार था। अपने जीवन में बाघ को अंतिम निशाना भी उन्होंने पहाड़ पर ही बनाया था। इससे साफ होता है कि उत्तराखंड के पहाड़ शुरू से ही बाघों के लिए मुफीद रहे हैं। पहाड़ पर बाघ का दिखना कोई स्तब्ध करने वाली बात नहीं है।
पहाड़ पर बाघ दिखने से चौंका था वन विभाग
पिछले साल बाघ गणना का डाटा सार्वजनिक होने पर उत्तराखंड ने बड़ी उपलब्धि हासिल की थी। इनका कुनबा 340 से बढ़कर 442 पहुंच गया था। कार्बेट और मैदानी क्षेत्र के जंगल का हिस्सा गणना में शामिल था। वहीं, पूर्व में पिथौरागढ़ और केदारनाथ वाइल्डलाइफ सेंचुरी में बाघों की फोटो देख वन विभाग चौंक चुका है। उसका कहना है कि मैदानी क्षेत्र को पसंद करने वाला यह वन्यजीव पहाड़ में बेहतर इको सिस्टम और भोजन श्रृंखला की उपलब्धता के कारण वहां भी रुख कर रहा है। लेकिन, जिम कार्बेट ने अपने जीवन का पहला शिकार 1907 और अंतिम शिकार 1946 लधियाघाटी (चंपावत) में किया था। यानी पहाड़ बाघ पर शुरू से रहा है बस कैमरों में अब कैद हो रहा है। मैन ईटर्स ऑफ कुमाऊं समेत अन्य कई किताबों मेंं इन घटनाओं का जिक्र है।
3400 और 3100 मीटर के सबूत
साल 2016 में पिथौरागढ़ के अस्कोट (3100 मीटर) और फिर पिछले साल जुलाई में केदारनाथ वाइल्डलाइफ सेंचुरी के मदमहेश्वर घाटी (3400 मीटर मीटर) में बाघ दिखने से वन विभाग चौंका था। महकमे के मुताबिक सबसे ज्यादा हाइट पर बाघ की प्रमाण सहित मौजूदगी मदमहेश्वर है।
फिर नैनीताल की पहाडिय़ां भी शामिल हुईं
फरवरी 2017 में नैनीताल जिले के दुर्गम ब्लॉक बेतालघाट में ग्रामीणों द्वारा बाघ की मौजूदगी की बात कहने पर करने पर रेस्क्यू अभियान चलाया गया था। उस दौरान डीएफओ और वनकर्मियों पर बाघ ने हमले की कोशिश भी की थी। जिसके बाद एनटीसीए ने नैनीताल डिवीजन की पांच रेंज को बाघ गणना में शामिल कर लिया।
बाघ का भोजन पहाड़ पर उपलब्ध
बाघ आमतौर पर चीतल, हिरण, काकड़ और सांभर को निशाना बनाते हैंं। मैदानी क्षेत्र में नीलगाय भी भोजन में शामिल है। नीलगाय को छोड़ पहाड़ पर हिरण प्रजाति के अन्य सभी वन्यजीव मिलते हैं। उत्तर-पूर्व के पर्वतीय राज्य सिक्किम में भी काफी हाइट पर बाघ की मौजूदगी मिली है। टाइगर वहां ग्रासलैंड पर नजर आया था। अन्य किसी पर्वतीय राज्य में ऊंचाई वाले क्षेत्रों में पुख्ता प्रमाण नहीं मिले। महकमे के मुताबिक बाघ की एक खासियत अकेला चलना भी है। वह शिकार में किसी की मदद नहीं लेता। बाघिन के साथ भी वह ज्यादातर प्रजनन काल में ही रहता है। जंगल में नदी-नालों के किनारे बने रास्तों पर वह लंबी दूरी तय करता है।
नैनीताल में जन्म थे कार्बेट
1875 में नैनीताल में जन्मे जिम कार्बेट ने अपने जीवन में कुमाऊं व गढ़वाल के उन नरभक्षी बाघ व तेंदुओं का खात्मा किया। जिनके आतंक से लोग परेशान थे। फिर बाघों के संरक्षण को लेकर उन्होंने नेशनल पार्क बनवाने में अहम भूमिका निभाई। जिसे अब जिम कार्बेट नेशनल पार्क के नाम से जाना जाता है। 19 अप्रैल 1955 को उनकी मौत हो गई थी। कार्बेट ने अपने जीवन में 19 बाघ व 14 तेंदुओं को मौत के घाट उतारा था।
यह भी पढ़ें : इमरान की शादी का कार्ड दे रहा हिंदू-मुस्लिम एकता का संदेश, भगवान गणेश व देव वंदना से निमंत्रण
यह भी पढ़ें : घायल को कंधे पर लादकर 20 किमी तक पैदल चलीं महिलाएं, अस्पताल में एनेस्थीसिया तक नहीं