बेजान पेड़ों की छाल को बना लिया "जीवन" का आधार, पोलियो से भी नहीं मानी हार; जीवन चंद्र जोशी बने प्रेरणा
अल्मोड़ा के जीवन चंद्र जोशी ने पोलियो से जूझते हुए हार नहीं मानी। उन्होंने लकड़ी की बेकार छाल से कलाकृतियाँ बनाकर स्वरोजगार शुरू किया। प्रधानमंत्री मोदी ने मन की बात में उनकी प्रतिभा की सराहना की। जीवन युवाओं को भी रोजगार दे रहे हैं और उन्होंने जी20 सम्मेलन को भी अपनी कला से दर्शाया। वे हस्तलिपि से कलाकृतियां बनाते हैं और अपनी कला को अगली पीढ़ी तक पहुंचाना चाहते हैं।

दीप बेलवाल जागरण, हल्द्वानी। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने अपने 'मन की बात' कार्यक्रम में जीवन चंद्र जोशी के कला और जज्बे की दिल खोलकर तारीफ की।
शारीरिक अक्षमता को मात देकर लकड़ी के बेजान टुकड़ों को कला का नायाब नमूना बनाने वाले जीवन की कहानी हर उस इंसान के लिए प्रेरणा है, जो मुश्किलों के आगे हार मान लेता है। उनकी उंगलियां जब लकड़ी को तराशती हैं, तो हर टुकड़ा उत्तराखंड की संस्कृति और परंपरा की कहानी कहने लगता है।
मूलरूप से अल्मोड़ा जिले के जाखन देवी गोविंदपुर गल्ली व हाल कठघरिया घुनी नंबर दो निवासी 65 वर्षीय जीवन चंद्र जोशी जोशी अब पहचान के मोहताज नहीं हैं। दो साल की उम्र तक वह सामान्य बच्चे की तरह थे, लेकिन अचानक पोलियो ने उनके दोनों पैर छीन लिए। 10वीं तक पढ़ाई की।
भाई उन्हें कंधे पर बैठाकर तब स्कूल तक छोड़कर आता था। क्योंकि जीवन चल नहीं सकते थे। जीवन बताते हैं कि 1988 में उनके दोनों पैरों का आपरेशन हुआ और घुटने तोड़ दिए गए। छह महीने तक वह अस्पताल के बाद घर में बिस्तर पर पड़े रहे। परिवार में माता-पिता, भाई-बहनों का भरपूर सहयोग मिला। पिता सिंचाई विभाग में इंजीनियर पद से सेवानिवृत्त थे। जिन्होंने जीवन को सिखाया कि जीवन में हार नहीं माननी।
इसी बात को जीवन ने गांठ बांध ली। उसी दिन समझ लिया कि मैं पैरों से दिव्यांग हूं, मगर दिमाग से नहीं। फिर क्या था पिता ने कठघरिया में सड़क किनारे एक दुकान खरीदकर दे दी। जीवन कहां रूकने वाले थे। उनकी मुलाकात बगड़ आर्टिस्ट संजय बैरी से हुई, जो अब नहीं रहे। बैरी के कहने पर उन्होंने अल्मोड़ा, रानीखेत, भीमताल आदि जगहों से बोरों में चीड़ के गिरे हुए पेड़ व स्वत: गिरे हुए बगेट (चीड़ की छाल) मंगाने शुरू कर दिए।
बगेट पहुंचाने वाले पहाड़ के युवाओं को 700 रुपये एक बोरे के भी दिए। जिससे वह युवाओं को भी छोटा-मोटा रोजगार मिल गया। हल्द्वानी पहुंचने पर बगेट यानी बेजान पेड़ों की छाल में जान डालकर उन्हें कलाकृत्ति का रूप दिया। इसी को अपने जीवन का आधार भी बना लिया।
उनकी मेहनत व तपस्या ऐसी कि प्रधानमंत्री तक उनकी बात पहुंची और वह तारीफ करने से नहीं रूक सके। खास बात ये है कि जीवन क्राफ्ट डिटाइनिंग के लिए किसी मशीन का प्रयोग नहीं करते। छेनी, आरी, रेगमार, रेती से ही हस्तलिपि आकृत्तियां बनाते हैं।
आत्मनिर्भरता की राह से मेहनत का फल
शारीरिक सीमाओं के बावजूद जीवन ने आत्मनिर्भरता का रास्ता चुना। पोस्ट आफिस अल्मोड़ा में लघु बचत योजनाओं के एजेंट बनकर उन्होंने पहाड़ की चढ़ाई-उतार को बैसाखियों के सहारे पार किया। साथ ही, काष्ठ कला को अपनाकर उन्होंने अपनी छोटी सी दुकान को साधना स्थली बना लिया। उनकी बनाई कलाकृतियां, जैसे वाल हैंगिंग, मूर्तियां, फ्लावर पाट और अगरबत्ती स्टैंड, पर्यटकों को खूब भाती हैं।
सीसीआरटी फेलोशिप पा चुके हैं जीवन
जीवन न सिर्फ अपनी कला को जी रहे हैं, बल्कि इसे अगली पीढ़ी तक पहुंचाने का सपना भी देखते हैं। वे सुदूर गांवों में युवाओं को काष्ठ कला सिखाने और स्थानीय शिल्पकारों को मुख्यधारा में लाने के लिए प्रयासरत हैं। उनका मानना है कि पर्यटन स्थलों पर बिक्री केंद्र स्थापित कर शिल्पकारों की आर्थिक स्थिति सुधारी जा सकती है।
2018-20 में भारत सरकार की संस्कृति मंत्रालय की संस्था सीसीआरटी उन्हें सीनियर फेलोशिप अवार्ड के रूप में दो वर्ष तक 20 हजार रुपये प्रति माह दे चुकी है। इसके अलावा जीवन लखनऊ कोलकाता, भोपाल, अहमदाबाद में इंटर इंटरनेशनल साइंस फेस्टिबल में उत्तराखंड का प्रतिनिधित्व कर चुके हैं। लखनऊ में उन्हें बेस्ट अपकमिंग आर्टिस्ट का अवार्ड मिला।
जीवन का सपना: कला का संरक्षण
कठघरिया चौराहे की अपनी छोटी सी दुकान में जीवन आज भी अपनी धुन में मग्न हैं। हैड़ाखान बाबा के भक्त, वे शिवजी का आशीर्वाद लेने का नियम नहीं तोड़ते। उनका सपना है कि उनकी कला को और लोग अपनाएं, ताकि उत्तराखंड की यह अनमोल विरासत जीवित रहे।
उनकी कहानी यह सिखाती है कि जिंदगी की हर लकड़ी में एक कहानी छुपी है, बस उसे तराशने का जज्बा चाहिए। जीवन की प्रदेश सरकार से मांग भी है कि शहर में ट्रैडिंग सिस्टम बनें। जहां पर युवाओं को कलाकृत्ति बनाना सिखाया जाए।
जी-20 की बैठक को कला से समझाया
रामनगर में हुए जी-20 सम्मेलन को भी जीवन अपनी कला से प्रदर्शित कर चुके हैं। बगेट से उन्होंने 20 लोगों को बैठक में शामिल होना दिखाया है। जिसमें हर देश का तिरंगा भी लगा है। इसके अलावा बगेट से कत्यूरी शैली पर मंदिर बना चुके हैं। कुमाऊंनी वाद्य यंत्र के साथ महात्मा गांधी का चरखा व जाखन देवी का मंदिर बनाया है।
पीएम ने तारीफ की तो फूल मालाएं लेकर दौड़े
वहीं जीवन जिसे 65 साल की उम्र में कोई देखने नहीं आया। रविवार को प्रधानमंत्री ने मन की बात कार्यक्रम में उनकी सराहना की तो अधिकारी से लेकर नेता तक फूल मालाएं लेकर दौड़ पड़े।
सांसद अजय भट्ट, मेयर गजराज सिंह बिष्ट के अलावा कई अधिकारी पहुंचे। जीवन कहते हैं कि अभी तक वह इतना कमा पाते हैं कि अपनी स्कूटी में पेट्रोल खुद भर लेते हैं। जिनसे बगेट मंगाते हैं उन्हें पैसे दे देते हैं। बाकी कुछ नहीं बचता। बस जीवन चल रहा है।
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